हताशा के बीच आशा का द्वार खोलती हस्तीमल ‘हस्ती’ की शायरी

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कम शब्दों में सच्चाई, ईमानदारी, समझदारी की बात ‘हस्ती’ की ग़ज़लों की विशेषता है.
‘‘ग़ज़ल ने न कभी माँग में अफशाँ भरी न सिन्दूर की लकीर खींची, न माथे पर चन्दन टीका लगाया न गले में मंगलसूत्र पहना लेकिन सदा सुहागन रही। दुनिया चाँद पर हो आयी लेकिन चाँद चेहरों जैसे हुस्न के आगे हस्तीमल ‘हस्ती’ मुझे इसलिए पसंद हैं कि जब वो फुर्सत के लम्हों में पत्थर शब्दों को हीरा बनाकर महबूब के आँचल पर टाँक देते हैं तो ग़ज़ल नयी नवेली सुहागन लगने लगती है। जब वे ज़िन्दगी के तज़रुबात को उँगलियों से रेत पर लिखने की कोशिश करते हैं तो अदब उनको सलाम करता है।’’ मशहूर शायर मुनव्वर राना के ये शब्द शायरी-शिल्पी हस्तीमल ‘हस्ती’ के लिए हैं। उनकी पुस्तक ‘प्यार का पहला ख़त’ वाणी प्रकाशन ने बेहतरीन शायरी के शौकीनों के लिए प्रकाशित की है।

हस्तीमल ‘हस्ती’ की शायरी पर मुनव्वर राना ने उनकी उपरोक्त पुस्तक पर जो टिप्पणी की है वह ‘हस्ती’ साहब की शायरी के एक-एक शब्द से झलकती है। एक नमूना प्रस्तुत है -
उनको पहचाने भी तो कैसे कोई पहचाने
अम्न के चोले में हैं आग लगाने वाले

वे मुहब्बत की ताकत का इज़हार इस तरह करते हैं -
वो करिश्माई जगह है ये मुहब्बत की बिसात
हार जाते हैं जहाँ सबको हराने वाले

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हस्तीमल हस्ती की ग़ज़लों में आदमी की खुद्दारी की लौ जहाँ-तहाँ दिखती है। हालात पर खीझ है, गुस्सा है, पर उसे ललकारने की कूवत भी है। प्रेरणा भीतर से देते हैं वे। ग़ज़ल दो पंक्तियों में दस-बीस पन्ने की संवेदना उतार देती है। कम शब्दों में सच्चाई, ईमानदारी, समझदारी की बात ‘हस्ती’ की ग़ज़लों की विशेषता है। वे हर उलझन से बाहर आने की तरकीब भी सुझाते हैं, आत्मीय सलाह भी देते हैं -
किस जगह रास्ता नहीं होता
सिर्फ हमको पता नहीं होता
बरसों रुत के मिज़ाज सहता है
पेड़ यूँ ही बड़ा नहीं होता

हस्तीमल ‘हस्ती’ की रचनाएँ जहाँ सत्ता के लिए कथित लोकतंत्रवादी व्यवस्था को आईना दिखाती हैं, वहीं समय को सचेत भी करती हैं -
कुछ नए सपने दिखाए जाएँगे
झुनझुने फिर से थमाए जाएँगे
आग की दरकार है फिर से उन्हें
फिर हमारे घर जलाए जाएँगे

‘हस्ती’ साहब की गज़ल ऐसी चुनौतियों का मूक दर्शक नहीं बनतीं बल्कि वह जनमानस को साहस के साथ उनका सामना करने का आहवान भी करती हैं -
खुद-ब-खुद हमवार हर इक रास्ता हो जाएगा
मुश्किलों के रुबरु जब हौंसला हो जाएगा
तुम हवाएँ लेके आओ मैं जलाता हूँ चिराग
किसमें कितना दम है यारो फैसला हो जाएगा

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यह ग़ज़ल संग्रह व्यवस्था की खामियों के खिलाफ पूरे जोश, आक्रोश, विद्रोह और सख्ती की आवाज़ है। इसी के साथ नए प्रकाश और ऊर्जा की ओर आगे बढ़ने की राह भी दिखाता है। सभी ग़ज़लें बेहद पठनीय हैं। पाठक शुरु से आखिरी पन्ने तक उनमें एकाकार होकर पूरी पुस्तक को पढ़ने के बाद ही विराम लेता है। पाठक इस पुस्तक को जरुर पसंद करेंगे।

"प्यार का पहला ख़त"
रचनाकार : हस्तीमल ‘हस्ती’
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
पृष्ठ : 118