नये शेखर की जीवनी : जिन्दगी के खट्टे-मीठे फ्लेवर

naye shekhar ki jeevani
अविनाश मिश्र ने एक अनोखी लेकिन बहुत ही मनोरंजक और घुमावदार शैली का साहित्यिक प्रयोग किया है.
‘धूप ने चुभना नहीं शुरु किया था, लेकिन भीतर-भीतर कहीं एक खालीपन चुभने वाली धूप की तरह चुभ रहा था, जब पुनः एक यात्रा की जरुरत महसूस हुई। इस प्रकार की आध्यात्मिकता जो भीतर की यात्राओं पर बल देती है, जब कोई उपचार नहीं बन पाती तब बाहर आकर नए रास्तों को खोजना होता है।
शेखर को इधर कुछ वर्षों से कई बार यह महसूस होता रहा है कि उसने अपना आधे से भी ज्यादा जीवन जी लिया है।
इस आधे से भी ज्यादा जिए जा चुके जीवन में उसने रेगिस्तान नहीं छुए हैं। यह स्पर्श सम्भव हो, इसके लिए वह अब तक अनदेखी एक स्थानीयता के रहस्यों से परिचित होना चाहता है।’

‘नये शेखर की जीवनी’ एक ऐसी किताब है जिसमें लेखक अविनाश मिश्र ने एक अनोखी लेकिन बहुत ही मनोरंजक और घुमावदार शैली का साहित्यिक प्रयोग किया है। पुस्तक पाठक को बांधकर चलती है। वह उसे पढ़ना शुरु कर तभी छोड़ना चाहता है जब पन्ने समाप्त हो जाते हैं। शेखर एक डायरीनुमा लिखी जीवनी का मुख्य पात्र है जिसके जीवन वृत्तांत के साथ देश-दुनिया की तमाम चीज़ों को लेखक ने बहुत ही विद्वतापूर्ण जोड़कर वह सब कुछ ज्यों का त्यों हमारे सामने रख दिया जिसमें दुनिया और मानव जीवन के सभी विषयों का इतिहास निहित है।

shekhar ki jeevni by avinash mishra

शेखर की जीवनी में कवि हैं, लेखक हैं, साहित्यकार हैं, समीक्षक हैं; नेता हैं, अभिनेता हैं, अमीर हैं, गरीब हैं, पत्रकार हैं, सम्पादक हैं, प्रकाशक हैं, मजदूर हैं, पूंजीपति हैं। शहरी जीवन की एक-एक हकीकत का एक-एक पल है। दफ्तरों, किरायेदारों, मकान मालिकों, बेराजगारों, स्त्री विमर्श, प्रेम, विद्वेष, लूट-खसोट, न्याय-अन्याय, सीनाजोरी-मक्कारी, ज्ञान-विज्ञान और अध्यात्म से लेकर प्राचीन साहित्य की चर्चाओं की अलग-अलग कहानियाँ हैं जो सभी मिलकर पुस्तक के नायक के साथ-साथ चलती हैं।

अविनाश मिश्र का अंदाज़ इतना पैना है कि वह महीनता से अपना काम करता जाता है। वे आपके मन पर छप जाते हैं। उनकी लिखी एक-एक बात इतनी गहरी है कि आप सोचने पर विवश हैं, ख़ामोशी से विचार करने की आवश्यकता महसूस होती है, कि लेखक ने इसे ऐसा क्यों लिखा है। शेखर ने सदियों का लेखा-जोखा हमारे सामने रख दिया है। यह किताब समाज को कई सच्चाईयों से रूबरू कराती है।

पुस्तक में एक-एक घटना को इस तरह चित्रित किया गया है कि पाठक उसी के साथ प्रवाहित होने लगता है -ज़िन्दगी के डूबते-उतराते सपनों के बीच शेखर कहता है -‘जी में साँस है और मुझमें काबिलियत भी है। पता नहीं कल मेरी ज़िन्दगी में क्या होगा या फिर कौन मुझे मिलेगा या मैं कहाँ रहूँगा। एक रात मैंने पुल के नीचे गुज़ारी तो दूसरी दुनिया के सबसे शानदार जहाज़ पर आप लोगों के साथ शैम्पेन पी रहा हूँ।’

naye shekhar ki jeewani

नगरीय हकीकत और इतिहास बार-बार यहाँ आता है। देखिए -
‘कभी कानपुर दिल्ली से भी ज्यादा हिंसक और बदतमीज़ था और फैजाबाद लखनऊ से भी ज्यादा रंगीन। कभी इलाहाबाद रानीखेत से भी ज्यादा रुमानी था और कभी गोरखपुर में ज्यादा धूल नहीं थी। बनारस में आलस कभी कम नहीं था, लेकिन कभी नोएडा में जंगल था।’

अविनाश मिश्र ने इस पुस्तक में जिन्दगी के मसालों के खट्टे-मीठे फ्लेवर डाले हैं जिनसे एक खूबसूरत दस्तावेज तैयार हो पाया।

"नये शेखर की जीवनी"
लेखक : अविनाश मिश्र
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
पृष्ठ : 160