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यह कहानियाँ हमारे देश से लेकर विदेशों में बसे भारतीयों के जीवन की झांकी प्रस्तुत करती हैं. |
भारतीय संस्कृति में रचे बसे भारतीय उपमहाद्वीप के नर-नारी विदेशी जीवन में अपनी सांस्कृतिक विरासत को किस प्रकार नए जमाने के साथ एकाकार कर रहे हैं, कई कहानियाँ यह स्पष्ट करती हैं।
यह पुस्तक प्रतिनिधि महिला रचनाकारों की प्रतिनिधि कहानियों का संकलन है। सभी लेखिकायें हिन्दी साहित्य की मूर्धन्य विद्वान हैं जो इस क्षेत्र में शीर्ष स्थान पर हैं। लम्बे समय से हिन्दी साहित्य मंच को जिन प्रवासी महिला कथाकारों के प्रतिनिधि संकलन की आवश्यकता थी उसे दिव्या माथुर ने पूरा किया है।
इस कथा संकलन की भूमिका में अनिल जोशी ने लिखा है कि यह कहानियाँ मूल रुप से दौड़ते-भागते जीवन, बोर्ड रुम के दाँव-पेंच, राजनीतिक शह-मात की, ख़ून-हत्याओं की ही नहीं हैं। यघपि ऐसे भी उल्लेख हैं। यह कहानियाँ रिश्तों की धीमी आँच पर पकाई गयी हैं, रेशम की तरह महीन काती गयी हैं, इनमें कोयल के स्वर की मधुरता और पपीहे के करुण स्वर हैं। (अनिल जोशी के विचार विस्तार से यहाँ पढ़ें >>)
जो लोग विदेशों में बसे लोगों के जीवन की अंतरंगता में झाँकना चाहें, उस परिवेश में रह रहे समाज के स्त्री-पुरुष सम्बंधों और रिश्तों की गहन पड़ताल करना चाहें, वे इस किताब को उठायें, यह आपको उस दुनिया में ले जायेगी जिसे देखने और दिखाने की दूरबीन प्रवासी महिला के पास ही है। ऐसे में यह पुस्तक आपके पुस्तक शैल्फ के लिए सबसे अनिवार्य है। इस पुस्तक की कहानियाँ आपको आवाज देंगी, आपका ध्यान खींचेंगी, आपसे सवाल करते-करते आपके साथ चलती जायेंगी। कैंसर जैसी बीमारी से लड़ते हुए, विकट और विषम परिस्थिति में विश्वभर में बिखरी अमूल्य हिन्दी कथाओं को एक मंच पर लाकर हिन्दी साहित्य प्रेमियों को उपलब्ध कराना दिव्या माथुर जैसी ऊर्जावान लेखिका के ही सामर्थ्य की बात है। उनका जो भी आभार व्यक्त किया जाये कम है।
"इक सफ़र साथ-साथ"
सम्पादक : दिव्या माथुर
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
पृष्ठ : 395
सम्पादक : दिव्या माथुर
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
पृष्ठ : 395