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अटलजी के प्रेरणाप्रद जीवन और कर्त्तव्य की विहंगम अंतर्दृष्टि देनेवाला पठनीय उपन्यास. |
न जाने कितनी देर से लेटा हुआ मैं अपने कमरे की खिड़की से बाहर देख रहा हूँ। मुँड़ेर पर बैठी चिड़ियाँ चहचहा रही हैं। मुझे अचरज होता है कि ये चिड़ियाँ दिन भर खुशी से कितनी चहकती रहती हैं! ...हालांकि मेरे आसपास मेरे अपनों की आवाजें भी उठती-थमती रहती हैं। वे लोग बार-बार मेरे कमरे में आते हैं और बिस्तर पर लेटी मेरी इस देह को सकुशल देख प्रसन्न होकर लौट जाते हैं। उन सबके लिए यह ही बहुत है कि 'मैं हूँ’...मगर मैं कहाँ हूँ? मुझमें अब बचा ही क्या है? दिन भर बस इन आवाजों को ही सुनता रहता हूँ। मेरे आसपास से उठती-थमती ये आवाजें जितनी बाहर सुनाई देती हैं, उतनी ही मेरे भीतर भी उमड़ती'घुमड़ती रहती हैं। अब मैं उम्र के इस पड़ाव में बस दो ही चीज़ें सुनता हूँ -बाहर से उठती आवाजें और मन के भीतर घुमड़ती यादें।’’
बहुआयामी प्रतिभा के धनी, ओजस्वी वक्ता, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन पर आधारित आत्मकथात्मक उपन्यास प्रभात पेपरबैक्स ने प्रकाशित किया है। वाजपेयी जी के जीवन पर आधारित यह उपन्यास डॉ. रश्मि ने लिखा है। लेखिका ने कबीर काव्य पर शोध किया है। उनकी दर्जन भर पुस्तकें महत्वपूर्ण विषयों और महापुरुषों पर प्रकाशित हुई हैं।
डॉ. रश्मि ने अटल जी पर 'अटल जीवनगाथा’ शीर्षक से जिस उपन्यास को लिखा है उसमें उनके बचपन से लेकर छात्र जीवन, पत्रकारिता, लेखन, रचनाशीलता से होते हुए राजनीतिक जीवन की विभिन्न लेकिन महत्वपूर्ण गतिविधियों को चित्रित किया है। इस उपन्यास में एक प्रकार से वाजपेयी जी अपना जीवन वृत्तांत कहते हुए चलते हैं। लेखिका पूर्व प्रधानमंत्री से उनका जीवन वृत्तांत कहलवाते हुए आगे बढ़ती हैं।
हालांकि 240 पृष्ठों का यह उपन्यास अटल जी के जीवन के बारे में सभी प्रमुख घटनाक्रमों को अपने में समेटने में सफल रहा है लेकिन लेखिका के मुताबिक अटल जी का व्यक्तित्व और कृतित्व इतना विराट है कि यह उपन्यास उसके लिए छोटा है।
इस पुस्तक में वैसे तो सभी कुछ महत्वपूर्ण है लेकिन कारगिल युद्ध, उसके कारण और विजय पर अच्छी सामग्री है, जबकि इंदिरा गाँधी के द्वारा इमरजेंसी लगाने से संबंधित सामग्री भी विस्तार से दी गई है। विपक्षी नेताओं की धरपकड़, उस दौरान वाजपेयी जी की भूमिका तथा कांग्रेस की बाद में पराजय पर वाजपेयी जी के विचार पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए पठनीय हैं।
पुस्तक में वाजपेयी द्वारा अपनी शक्ति के दुरुपयोग का कोई उदाहरण नहीं है। वे प्रधानमंत्री रहते हुए हमेशा आम सहमति के पक्षधर रहे। उन्होंने उस समय राज्यों में विपक्षी सरकारों के होते हुए उनके वाजिब हक को उन्हें दिया। यही कारण है कि आज भी कांग्रेस सहित तमाम विपक्ष के नेता उनकी प्रशंसा करते हैं। हालांकि पीएम नरेन्द्र मोदी पर विपक्षी सरकारों से भेदभाव के आयेदिन आरोप लगते हैं।
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उपन्यास में अटल जी ने स्वीकारा है कि उन्होंने ब्राह्मण होने के बावजूद जनेऊ बचपन में ही उतार दिया। इसके अलावा कई अन्य ख़ुलासे भी पढ़ने को मिलेंगे। वे धर्मनिरपेक्ष नेता रहे हैं। यह पुस्तक नरेन्द्र मोदी के प्रशंसकों को जरुर पढ़नी चाहिए।
अटलजी की कविता के अंश :
"हार नहीं मानूँगा
रार नहीं ठानूँगा
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ
गीत नया गाता हूँ."
"अटल जीवनगाथा"
लेखिका : डॉ. रश्मि
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन
पृष्ठ : 240
लेखिका : डॉ. रश्मि
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन
पृष्ठ : 240