सुधीर तैलंग के चर्चित कार्टूनों की अनूठी पुस्तक

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राजनीतिक हालात हकीकत कोई बेहतर ढंग से रेखाओं में समेट सकता था, तो वे तैलंग थे.
‘‘वे थे मात्र एक कार्टूनिस्ट, लेकिन उनका जलवा किसी सितारे से कम नहीं था। कागज़ पर भले उन्होंने हमेशा काली स्याही से काम चलाया हो, पर उनकी ज़िन्दगी कई रंगों से भरी थी। वह उन कार्टूनिस्टों में से कतई नहीं थे, जो मात्र एक कॉलम पाकर खुश रह सकते थे। वह उनमें से भी नहीं थे, जो अपनी व्यस्तता में अपने कॉलम की गरिमा को भूल जाते हैं। वह काम के वक्त कार्टूनिस्ट थे, जबकि उसके इतर एक स्टार। वह एक स्टार कार्टूनिस्ट थे।’’ -माधव जोशी.

प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट सुधीर तैलंग के चर्चित कार्टूनों का संग्रह एक पुस्तक के रुप में प्रतिभा प्रतिष्ठान ने प्रकाशित किया है। संग्रह का नाम है -‘सुधीर तैलंग के तीर’। 176 पृष्ठों की इस पुस्तक में प्रकाशक ने कई सौ महत्वपूर्ण तथा मनोरंजक व्यंग्य चित्र प्रकाशित कर जहाँ नए पाठकों को दशकों पुरानी राजनीतिक सामाजिक तथा अंतर्राष्ट्रीय एतिहासिक घटनाओं से रेखाओं और सीमित शब्दों में सुधीर तैलंग की सोच का स्मरण कराया है। वहीं सुधीर तैलंग के कार्टूनों को पसंद करने वाले पुराने पाठकों में एक बार फिर से उनका स्मरण कराया है। उन्हें एक पुस्तक में जिल्दबद्ध कर प्रशंसनीय कार्य किया है।

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प्रकाशक ने पुस्तक के प्रथम पृष्ठ पर रीतिकालीन कवि बिहारी के ‘सतसई’ नामक ग्रंथ पर लिखे एक दोहे को अंकित कर तैलंग के व्यंग्य चित्रों की विशेषता व्यक्त की है -
‘‘सतसैया के दोहरे, ज्यों नाविक के तीर।
देखन में छोटन लगें, घाव करें गंभीर।।’’

सुधीर तैलंग ने स्वयं कहा था -‘कई बार मुझे लगता है, यह देश कार्टूनिस्टों के लिए ही आविष्कृत किया गया था। आजादी की लड़ाई में हजारों लोगों ने इस लिए कुर्बानी दी थी कि एक दिन हमारे देश के सारे नेता मिलकर कार्टूनिस्ट नामक जीव की सेवा करेंगे, न कि जनता की।’

‘सुधीर जी के कार्टून दस वर्ष की बाल्यावस्था से ही राष्ट्रीय अखबारों में छपने लगे थे। 1983 में नवभारत टाइम्स में कार्य शुरू करने तक 5000 कार्टून छप चुके थे। पाँच वर्ष बाद 1989 में हिन्दुस्तान टाइम्स में भी अंग्रेजी में कार्टून छपने के साथ-साथ अनुवादित कार्टून हिन्दी हिन्दुस्तान में भी रोजाना छपते रहे। यह किताब उनके राजनीतिक व समसामयिक विषयों पर तटस्थ लेकिन मारक क्षमता रखनेवाले चर्चित कार्टूनों का सफरनामा है, जो आपको मुस्कराने के लिए नहीं, समाचारों के अतीत में जाकर उस समय के इतिहास को उकेरने के लिए विवश कर देंगे।’ -विभा तैलंग.
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उन्होंने किसी भी नेता को नहीं क्षमा किया। जब भी मौका मिला सुधीर तैलंग ने तत्कालीन सभी प्रमुख नेताओं पर सटीक व्यंग्य किया। वे स्वस्थ व्यंग्यवादी व्यंग्य चित्रकार थे। उन्होंने केवल नेताओं ही नहीं बल्कि समसामयिक सभी घटनाओं को चित्रित किया। आतंकी घटनाओं और सामाजिक विषयों पर वे बराबर अपनी कूची और कलम चलाते रहे। इंदिरा गाँधी, अटल बिहारी, लालकृष्ण आडवाणी तथा तत्कालीन मुख्यमंत्रियों की कारस्तानियों को व्यंग्य चित्रों में वर्णित कर वे लोगों का मनोरंजन और ज्ञानवर्द्धन एक साथ करते रहे। जिस समय लक्ष्मण, ठाकरे, रंगा और मारियो जैसे कार्टनिस्टों की रेखाएं कार्टून कला का मानक बन चुकी थीं, उस समय उनके बीच प्रकट होकर इस क्षेत्र में कारनामा कर दिखाना बहुत बड़ा कमाल था।

यह किताब सुधीर तैलंग के विभिन्न रंगों की रेखाओं से सजी है, जिसे बार-बार पढ़कर मन खिल उठता है। उनके विषय गंभीर हैं, गहरे अर्थ वाले, सजग करने वाले, और सच्चाई से रुबरु कराने वाले; ऐसे विषय जो मुस्कान के साथ सोचने पर मजबूर करते हैं।

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राजनीतिक हालात की कड़वी हकीकत कोई बेहतर ढंग से रेखाओं में समेट सकता था, तो वे सुधीर तैलंग थे।

उनके लिए यह मायने नहीं रखता था कि कौन क्या है, मायने रखता था कि कौन क्या कर रहा है, और देश-दुनिया को जागरुक करना कि आजकल क्या चल रहा है। उनका ह्यूमर बेजोड़ था, जो ज़िन्दगी के अनगिनत पहलुओं को सवालों में घेरकर चलता हुआ सच बयान करने से पीछे नहीं हटा।

"सुधीर तैलंग के तीर"
प्रकाशक : प्रतिभा प्रतिष्ठान
पृष्ठ : 176