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शिव-सती का मिलन और सारा घटनाक्रम एक ब्रह्माण्डीय योजना और अनिवार्यता बताया गया है. |
प्रखर वक्ता, विचारक और लेखिका अरुण मुकिम का पहला उपन्यास ‘दक्षायणी’ वाणी प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। लेखिका ने शिव पार्वती के पौराणिक इतिहास को बहुत ही सरल, स्पष्ट रुप से अपनी अलग शैली में प्रस्तुत किया है। उन्होंने इस उपन्यास में स्वयं को सती के रुप में परिकल्पित कर नारी जीवन के संघर्षों, पवित्रता और विषमताओं को बहुत ही प्रभावशाली ढंग से कथाबद्ध किया है।
समस्त सृष्टि और ब्रह्माण्ड के कर्ताधर्ता शिव हैं। यह उपन्यास सती की समग्रता की बेजोड़ दास्तान है।
शिव पुराण की तर्ज पर लेखिका ने राजा दक्ष, जो पार्वती का पिता है, को शिव का प्रबल विरोधी और भला-बुरा कहने वाला करार दिया है। यह घटना सांसारिकता की हकीकत है। शिव के प्रति अपमानजनक शब्दों को बार-बार दोहराया गया है।
एक जगह दक्ष कहता है -‘सती मैं तुमसे अपार प्रेम करता हूँ। मैं किसी भी प्रकार तुम्हें उस औघड़, असंस्कारी शिव के साथ अपनी कल्पना में भी नहीं देख सकता।’
और देखें -‘मुझे दुख है कि मैं एक ऐसी पुत्री का पिता हूँ जो बुद्धिभ्रष्ट, पथभ्रष्ट होकर एक ऐसे व्यक्ति के संग रह रही है जिसके नाम लेने मात्र से घृणा का भाव उत्पन्न होता है। जितना हीन वह है, उतना ही हीन उसका सम्पूर्ण आचरण है। उसे प्रबुद्ध और शिष्ट समाज में स्थान देकर हम सारे समाज को पतन के गर्त में धकेल देंगे।’
सती शिव को अपना सबकुछ मान चुकी है। वह शिव से इस कदर जुड़ी है, कि वह अपने पिता को कहती है कि उनकी ’बुद्धि भ्रष्ट’ हो गयी है। सती दक्ष को ‘मन्दबुद्धि’, ‘महामूर्ख’ भी कहती है।
लेखिका लिखती हैं -‘..फिर मैंने स्वयं अपने योग से अग्नि की ज्वाला उत्पन्न कर अपने को उसमें समर्पित कर दिया। मैं उसमें धू-धू कर जलने लगी।’ इस तरह सती ने स्वयं को अग्नि के हवाले कर दिया। उसके बाद क्या हुआ, उसे भी रोचकता से लिखा गया है। संवादों को बहुत ही कुशलता से लिखा गया है जो उपन्यास को शानदार बनाते हैं।
भले ही यह उपन्यास पूरी तरह शिव पुराण की कथा पर आधारित है, लेकिन इसमें शिव-सती का मिलन और सारा घटनाक्रम एक ब्रह्माण्डीय योजना और अनिवार्यता बताया गया है। जबकि तमाम बुराईयों की जड़ राजा दक्ष को ठहराया गया है।
लेखिका ने स्वयं को सती की कल्पना से जोड़कर पूरी कहानी आदी से अन्त तक सती के मुख से कहलवायी है। यह उनकी इस अत्यंत महत्वपूर्ण पौराणिक कथा को एक अलग ढंग से औपन्यासिक शैली में सफलतापूर्वक कहने की एक अनूठी कला है। 'दक्षायणी' शिव और शक्ति के प्रेम स्वरुप की अद्भुत व्याख्या है। उपन्यास शिवभक्तों के लिए पठनीय है।