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समाज को संदेश देने वाली उदय प्रकाश की यह कहानियाँ बेहद दिलचस्प हैं. |
उदय प्रकाश की पुस्तक ‘मैंगोसिल’ का प्रकाशन वाणी प्रकाशन ने किया है। तीन कहानियों की यह किताब बहुत रोचक है।
‘तिरिछ’ नामक कहानी एक बेटे और पिता की कहानी है। प्रारंभ से ही दिल को छूने वाली यह कहानी पिता के चारों ओर घूमती है। लेखक कहता है,‘हम पिताजी पर गर्व करते थे, प्यार करते थे, उनसे डरते थे और उनके होने का अहसास ऐसा था, जैसे हम किसी किले में रह रहे हों। ऐसा किला, जिसके चारों ओर गहरी नहरें खुदी हुई हों, बुर्ज बहुत ऊंचे हों, दीवारें सख्त लाल चट्टानों की बनी हुई हों और हर बाहरी हमले के सामने हमारा किला अभेद्य हो।’
यहां यह सोचा जा सकता है कि अपने पिता के बारे में ऐसा सभी मानते हैं। मगर कहानी का असली मोड़ तिरिछ यानी विषखापर के काटने के बाद आता है। एक प्रकार की जहरीली छिपकली पहले लेखक को सपने में डराती है, उसके बाद उसके पिता को मौत के मुंह में ले जाती है। एक बच्चे के दिमाग में अलग-अलग तरह के विचार आते हैं। अंधविश्वास के भी छींटे यहां पड़े हैं। मौत से पहले के पलों का विवरण जिस खास अंदाज़ में किया गया है, वैसा शायद कहीं पढ़ने को मिले। वाकई इसे बेजोड़ लेखन शैली का मजबूत हिस्सा कहा जा सकता है। जो घटनाएं एक के बाद एक घटती गयीं, एक बेटे की कल्पना से उन्हें पढ़ना सजीव लगता है। मानो सबकुछ आंखों के सामने चल रहा हो।
दूसरी कहानी ‘दिल्ली की दीवार’ का यह अंश पढ़ने के बाद कहानी पढ़े बिना नहीं रहा जा सकता: ‘अगर आप यह कहानी पढ़ लें तो सब्बल और कुदाल लेकर फौरन दिल्ली की ओर रवाना हो लें। करोड़पति बनने और छप्पर फाड़कर आने वाली दौलत पाने का यही एक रास्ता अब बचा है।’
उससे पहले यह भी पढ़ना रोचक है,‘...आजकल हर रोज़ आधी रात, जब सारी दिल्ली नींद में डूबी हुई होती है, मैं काले कपड़े पहनकर, एक हाथ में कुदाल और दूसरे हाथ में एक सब्बल लेकर निकल पड़ता हूं और दिल्ली की दीवारों को अंधेरे में ठोकता रहता हूं। ...मुझे गहरा पछतावा इस बात का है कि मैंने अपने जीवन के पच्चीस साल फालतू बरबाद किये। पच्चीस दिन भी अगर मैंने यहां की दीवारों को ठोकने में लगाये होते, तो अब तक मैं करोड़पति हो गया होता और एक सम्मानित जीवन जी रहा होता।’
उदय प्रकाश की कहानियाँ सस्पेंस पैदा करती हैं। घटनाएं तेजी से बदलती हैं, जिन्हें पढ़ने में अलग आनंद है। एक आम आदमी से करोड़पति बनने का किस्सा और उसके आसपास की दुनिया ज़िन्दगी के एहसासों की तस्वीर पेश करती है। भावनाएं और रिश्ते वक्त के साथ बदलते हैं। इंसानों के लिए पैसे की कीमत और ज़िन्दगी की कीमत अलग-अलग मायने रखती है। अमीरी और गरीबी में बहुत फर्क है। लेखक ने जमीन पर रेंगने वाले जीवों की तरह लोगों की ज़िन्दगी को बारीकी से समझकर लिखा है जो वास्तविकता का अहसास कराता है। हकीकत को बयान करना सरल नहीं होता, मगर जब शब्दों में भावनाओं को जोड़ दिया जाए तो बनावटी कुछ नहीं रह जाता।
‘मैंगोसिल’ अन्य कहानियों से लंबी है। यहां गरीबी और बीमारी से जूझता परिवार है। एक महिला जिसने असहनीय कष्टों को सहा। उसके जीवन में दुश्वारियां किसी मोड़ पर कम नहीं हुईं, उनके रुप जरुर बदल गए।
यह अंश पढ़ें,‘उसको जो रोग था, जिसके चलते उसका सिर हर रोज़ बड़ा होता जा रहा था, जिसके कारण डॉक्टरों ने उसकी ज़िन्दगी की मियाद दो से ढाई साल तक तय की थी और जिस रोग का जिक्र किसी मेडिकल साइंस की किताब में नहीं था, जिसे चन्द्रकान्त और शोभा ‘मैंगोसिल’ कहते थे और जिसके वायरस के बारे में सूरी ने खुद ही पता लगाया था, उस रोग से निश्चित ही उसकी मृत्यु नहीं हुई थी।’
ये कहानी सोचने पर मजबूर करती है। दृश्यों की कल्पना करना भी मजबूरी बन जाता है। विचारों का एक सैलाब आ पड़ता है। चट्टानों से टकराती हवाओं का असर होता मालूम पड़ता है। ज़िन्दगी सवालों में उलझी है, और इंसान उनसे जूझता हुआ पैदा होता है, और नये सवाल खड़े कर मर जाता है।
समाज को संदेश देने वाली उदय प्रकाश की यह कहानियाँ बेहद दिलचस्प हैं। वास्तव में उदय प्रकाश की कहानियाँ विभिन्न अहसासों में लिपटी हुई हैं, जिन्हें बार-बार पढ़ने का मन करता है।