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गौरव सोलंकी पूरी मासूमियत और उत्साह के साथ आपको किस्सा सुना रहे हैं. |
बस पैसे कम थे, पर यह उतना महसूस भी नहीं होता था। क्योंकि पैसे कमाने का जो ऑप्शन था उस वक्त, जो डिग्री थी मेरे पास, मैं उससे दूर जाना चाहता था। आईआईटी का बहुत नाम था। बहुत मुश्किल से दाखिला होता था। इसलिए सब कहते थे कि अब दाखिल ही रहो, इसी दुनिया में। पर मैं भाग निकलना चाहता था, इसलिए भाग निकला।’
गौरव सोलंकी वह लड़का है जो कभी न खत्म होने वाली कहानियाँ लिखता है। मोड़ आयेंगे, फिर कुछ ऐसा घटेगा जो दिलचस्पी जगाएगा। शिद्दत से कहानियों में जीने वाला इंसान, कहानी कहता हुआ अपना-सा लगता है। गौरव हिन्दी में नयी चमकदार कोंपल की तरह हैं। उनकी कहानियों का अंदाज़ इतना अलग है कि अच्छे-अच्छों को गंभीर कर दे। सवाल खुद से पूछने बैठ जाए कोई। मुस्कान इतनी लंबी खिंचे कि खिंचती जाए। अलग शैली जो भावों को नई जमीन तलाश करने में मदद करने लगे। ज़िन्दगी की वास्तविक पहेलियाँ जिनका हल तो हमारे आसपास है।
इन कहानियों की दुनिया बेहद सरल है, और ये कल्पना और वास्तविकता में डूबी खट्टी-मीठी और स्याह कहानियाँ हैं जिन्हें बार-बार पढ़ा जा सकता है, याद रखा जा सकता है, और हर पन्ने में ऐसे वाक्य खूब हैं जिन्हें अंडरलाइन किया जा सकता है, पन्ना मोड़ कर रखा जा सकता है।
गंभीर बातें और जीवन की मुश्किलें कभी जिद नहीं करतीं, माहौल देखकर चिपक जाती हैं। शब्दों के जरिए गौरव बारीकी से चीज़ों को पकड़ते हैं, और लिखते हैं -‘उदासी एक अलग ही किस्म का नशा है। बाकी नशे सुकून देते हैं, संतुष्टि देते हैं, जीवन के प्रति आस्था पैदा करते हैं, नशे के प्रति लगाव पैदा करते हैं जबकि उदासी वैराग्य जगाती है, उदासी से दूर भाग जाने की इच्छा जगाती है और एक प्यास बढ़ाती रहती है। उदासी धरती की सबसे पुरानी धरोहर होगी। यह प्यार से हज़ारों साल पुरानी होगी।’
उन्होंने किस्सों को तहजीब भी दी है, तो उन्होंने समाज के छिछोरपन पर जमकर तंज कसा है। उन्होंने हमारे भीतर के उस मन और सोच को बाहर निकाल कर रख दिया है, जिसे ज्यादातर लोग छुपाकर रखते हैं। किशोर जीवन की नादानियाँ अलग किस्म की होती हैं। किताब की मुख्य कहानी ‘ग्यारहवीं-A के लड़के’ में उस हिस्से को दिखाया गया है जो आमतौर पर लिखा कम गया है। खुले में शायद उसपर चर्चा नहीं की जाती।
हमारे भीतर जो हलचल है, वह अश्लीलता के पैमाने पर मौजूद है, लेखक ने उसे लिख डाला। मन अश्लील होता है, इंसान नहीं। यह अटपटा लग सकता है, क्योंकि हरकतों की वजह से अश्लीलता आती है। कुछ लड़के जिन्होंने हिमाकत की, हदों को पार किया। ज़िन्दगी के रंगीन अनुभवों को असली जवानी से पहले समेटने की कोशिश की। उस आग को बुझाया जो हर किसी के भीतर किसी न किसी रुप में धधक रही है। कुछ इसे पाप कह सकते हैं, कुछ यूँ ही पल्ला झाड़ कर निकल सकते हैं।
यह कहानी इस पुस्तक में प्रकाशित होने से पहले भी चर्चित रही है। खट्टी-मीठी प्रतिक्रियाओं के बीच गौरव सोलंकी की इस कहानी को कई लोग जादू और अश्लीलता के बीच झूलता हुआ भी कहते हैं।
‘हम तब ग्यारहवीं-A में पढ़ते थे और हमें लगता था कि जल्दी ही ऐसा कोई दिन आएगा, जब धरती सूरज को छोड़कर हमारे चारों ओर घूमेगी। रानी भाभी ही क्या, मल्लिका शेरावत भी उन दिनों हमें दूर की कौड़ी नहीं लगती थी। हम एक अनजानी तरह से पत्थर होते जा रहे थे। हमारे आसपास या हमारे ख्यालों में भी जो नर्मी थी, उसे जब तक नहीं कुचल देते, हम परेशान रहते।’
गौरव सोलंकी उन कहानियों को लिखते हैं जिनके किस्से दूर तलक जाने का हुनर रखते हैं। यह युवा चंचलता की बातें करता नहीं थकता और पाठक इसे पढ़ता नहीं थकता। यह समाज को चिढ़ाता भी है, उसे हिदायत देते हुए भी नजर आता है। अपनी बात करते हुए सबकी बात करता है। कहानियों को ज़िन्दगी के अनगिनत रंगों में रंगने की कला वह जानता है, तभी शब्दों की बुनाई से कुछ बेहद शानदार लिख जाता है। यह कुछ, बहुत कुछ बनकर एक किस्सा बन जाता है जिसे चटकारे लेकर भी पढ़ा जा सकता है, गंभीर होकर भी, और मुस्कान के साथ भी।
लेखक ने ज़िन्दगी के स्याह किस्सों को मासूमियत के साथ बताया है। ये वे बातें हैं जो होती हैं, हर समय कहीं न कहीं घटती हैं, किसी न किसी की ज़िन्दगी को तोड़-मरोड़कर रख देती हैं। कोई चुप्पी साध जाता है, किसी को मालूम नहीं होता कि यह क्या हो रहा है और कोई अनजान बना रहता है। आवाज उठाने वाले तो गिनती के हैं।
‘नहीं, डर के आगे जीत नहीं है। डर के आगे सरकारी स्कूल का एक कमरा है, जिसमें घुसते हुए अतुल का हाथ शिप्पी के ऊँचे फ्रॉक को और भी ऊँचा उठाता हुआ ऊपर तक चला जा रहा है। डर के आगे मेरा उस कमरे के बहर अँधेरा होने तक खड़ा रहना और फिर मेरे सिर पर अपना हाथ फेरकर जाते अतुल के बाद रोती-बिलखती शिप्पी को देखते रहना है। डर के आगे घुप्प अँधेरा है, जिसके बाद मैं शिप्पी से कभी नहीं पूछता कि भगवान कौन होते हैं?’
वह मासूमियत और उत्साह के साथ आपको किस्सा सुना रहा है। उसके पास सरलता है, जो आपको कहानी में खो जाने को मजबूर करती है।
गौरव को आप पहले उतना न जानते हों, उसकी कहानियाँ पढ़कर जरूर अपनी मंडली का समझने लगेंगे। उसकी उम्र आपसे कम हो या ज्यादा या बराबर, वह रहेगा तो आपका दोस्त ही- ‘अपना कहानी वाला दोस्त गौरव।’
"ग्यारहवीं-A के लड़के"
लेखक : गौरव सोलंकी
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
पृष्ठ : 110
लेखक : गौरव सोलंकी
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
पृष्ठ : 110