![]() |
'यह एक छोटी-सी ‘लव स्टोरी’ भी है जो बहुत-सी ‘हेट स्टोरीज़’ के बरअक्स जन्म लेती है.' |
जानेमाने लेखक सुधीश पचौरी व्यंग्य को किसी सीमा में नहीं बांधते। उनके पास ऐसी कूची है जो रंगों को अलग स्तर तक ले जाने की क्षमता रखती है। सुधीश के विचार समाज की वास्तविकता को दर्शाते हैं। वे व्यंग्य के जरिये समाज की बात कहते हैं और इसमें उनका कोई सानी नहीं। उन्होंने जो देखा, जो जाना, जो महसूस किया, उसे शब्दों में उतार दिया। जब कुछ ऐसा पढ़ा जाए जो सीधे असर करे, तो पाठक संतुष्ट हो जाता है। कुछ ऐसा लिखा जाए जो हकीकत बयान करे तो वह लेखक उम्दा हो जाता है। सुधीश पचौरी साहित्य के हरफनमौला हैं।
‘मिस काउ – ए लव स्टोरी’ सुधीश जी की ऐसी किताब है जिसे पढ़कर देश के बदलते माहौल पर नये सिरे से चर्चा करने का मन करता है। इस पुस्तक का प्रकाशन वाणी पेपरबैक्स ने किया है।
"यह एक हिन्दू कथा है। यह एक छोटी-सी ‘लव स्टोरी’ भी है जो बहुत-सी ‘हेट स्टोरीज़’ के बरअक्स जन्म लेती है। यहां कुछ कलिकथा हैं, कुछ कल्कि अवतार कथा हैं और यहां मैकाले भी है। इस आख्यान का नायक ‘आत्मा’ एक हिन्दू चित्त है जो त्रिधा-विभक्त है, जिसके नाम अनेक कीर्तिमान दर्ज हैं। नाना उपाख्यानों के बीच जिज्ञासावश वह अपने गुरुदेव से अपना ‘संशय’ प्रकट कर बैठता है और ‘संशयात्मा विनश्यति’ के शाप का भागी बनता है। गुरुदेव के शाप से बचाती है इस कहानी की नायिका ‘मिस काउ’। यह एक जटिल उत्तर-आधुनिक विमर्शात्मक आख्यान है जो कल्पना की शुद्ध आवरगी से उपजा है। इसका नायक अपनी तमाम खूबियों और दुष्टताओं के बावजूद लेखक की हमदर्दी का पात्र है।"
प्रस्तुत है किताब का अंश :
लल्लू लाल की अमर कथा -
सड़क के जिस ठिकाने पर मैं था, उसके बाजू में एक गांव था जिसमें कथा चल रही थी। मैंने वक्त काटने के इरादे से कथा-श्रवण का निर्णय किया और चलती कथा के बीच में एक पेड़ के नये पत्ते पर चुपके से बैठ गया ताकि कथा का अनुपान कर सकूं। मैं अमर कथा की ताकत को जानता था कि इसे जब तक सुना जाता है, तब तक कोई आपको टच तक नहीं कर सकता!
क्या पता डॉक्टर शुकदेव शर्मा जी अमर कथा इसी तरह सुनाना चाहते हों? ना जाने किस भेष में बाबा मिल जायें भगवान रे! मैंने डॉक्टर शुकदेव शर्मा जी का ध्यान किया और कथा की ओर बढ़ा।
एक बड़ी-सी चौपाल पर बैठकर लल्लू जी लाल अमर कथा, जिसे भगवान शिव ने पार्वती को सुनाया, जिसे चोरी-छिपे शुकदेव ने सुना और अमर हो गये, उसी अमर कथा को प्रीतिपूर्वक सुना रहे थे।
मैंने देखा कि स्वयं मैकाले बैठा है और बड़े ध्यान से कलि की लीला को सुन रहा है:
एक दिन महाराज परीक्षित शिकार खेलने जंगल में जा रहे थे कि अचानक उनको एक गऊ माता और एक बैल डर के मारे आगे-आगे भागते दिखे। गऊ मामा की आंख में आंसू थे। बैल कृशकाय होकर हांफ रहा था। राजा ने गऊ माता से पूछा कि माता! मेरे राज्य में आपकी यह दुर्दशा किसने की? आप इस तरह से डरकर क्यों भाग रही हो? क्या कोई आपको सता रहा है? तो डरते-डरते गऊ माता बोली कि हे महाराज! हमारे पीछे एक शूद्र पड़ा हुआ है जिसके हाथ में एक भारी मूसल है। वह काले रंग का कलि है जो हमें तरह-तरह से सता रहा है। मार-पीट रहा है, हम अपने प्राण बचाने के लिए भाग रहे हैं।
गऊ माता को पीड़ित करने वाला वो जो कोई भी है, वह सामने आये और जवाब दे कि उसने मेरे राज्य में कानून का दुरुपयोग क्यों किया?
यह सुनकर राजा को क्रोध हुआ। वे सोचने लगे कि उनके राज्य में सबको सुख है। कोई दुखी नहीं है। तब भी गऊ माता इतनी परेशान है कि प्राणों की भीख मांग रही है। यह तो बहुत बड़ा अनर्थ हो रहा है। मुझे इसका उपचार करना ही होगा। सो उन्होंने सक्रोध गर्जना की कि गऊ माता को पीड़ित करने वाला वो जो कोई भी है, वह सामने आये और जवाब दे कि उसने मेरे राज्य में कानून का दुरुपयोग क्यों किया? अवध्य को क्यों मारा? क्यों सताया?
निहायत ही काले रंग का डरावना विराटकाय कलि तब हाथ जोड़कर राजा के समक्ष हुआ और कहने लगा कि हे पृथ्वीनाथ! मैं अब आपकी शरण में आया हूं। मुझे रहने को ठौर बताइए क्योंकि तीन काल और चारों युग जो ब्रह्मा जी ने बनाए हैं, सो किसी भांति मेटे न मिटेंगे। इतना सुनते ही राजा परीक्षित ने कलियुग से कहा कि तुम इतनी ठौर रहो-जूए, झूठ, मद की हाट, वेश्या का घर, चोरी और सोने में।
राजा की वाणी तुरत फलीभूत होते ही कलि इन जगहों में रहने लगा। राजा भी अपने महल में लौट आए।
एक दिन की बात है राजा शिकार खेलने जा रहे थे कि मार्ग में उनको एक तपस्वी तप करते समाधिस्थ दिखे। उन्होंने देखा कि उनके जैसे महाराजा के वहां आने के बावजूद उस तपस्वी ने उनकी ओर एक आंख तक न देखा। इस उपेक्षा को उन्होंने अपना घोर अपमान समझा। राजा ने समझा कि तपस्वी बड़ा अहंकारी है, इसीलिए उसने उन जैसे पराक्रमी, दयावान और राजकाल में निपुण राजा का उचित सम्मान नहीं किया। जिसका सम्मान देवता तक करते हैं, उसकी जानबूझकर उपेक्षा की है। इसलिए उसे दण्ड दिया जाना जरुरी हो है। उन्होंने आसपास नज़र दौड़ाई तो पाया कि तपस्वी के पास ही एक मरा हुआ काला सर्प पड़ा है। राजा ने क्रोध में आकर वह सर्प उस ध्यानलीन तपस्वी के गले में माला की तरह डाल दिया और घर लौट आया।
उसने अपना मुकुट उतारकर रखा लेकिन ज्यों ही मुकुट उतारकर रखा ज्यों ही राजा को अनुभव हुआ कि उसने जो व्यवहार उस तपस्वी के प्रति किया वह उचित नहीं था। उसको अहंकार हो गया था, इसलिए वह ये सब अपराध कर बैठा। अब क्या उपाय करे कि उसका यह अपराध क्षम्य हो सके।
राजा को अपने अहंकार का संज्ञान तब हुआ, जब उसने मुकुट को उतारकर रख दिया। मुकुट को उतारकर रख देने से मुकुट में सवार कलि का असर राजा की बुद्धि से हट गया और उसे तुरत अपनी गलती का भान हो गया। राजा सोचने लगा कि वह अपने अपराध का शमन किस भांति करे कि अनजाने में हुई उसकी भूल की माफी उसे मिल सके!
उधर जिस तपस्वी के गले में राजा ने काला सर्प डाला था, वे और कोई नहीं लोमश ऋषि थे जो तपस्यालीन थे। सर्प के पड़े रहने पर भी वे ध्यानस्थ और अविचल रहे लेकिन कुछ ही देर बाद कुछ बालक खेलते हुए वहां जा पहुंचे, जहां लोमश ऋषि तपस्यालीन थे। उन्होंने देखा कि किसी ने ऋषि के गले में मरे हुए सर्प की माला डाल दी है। यह ऋषि का घोर अपमान है। फिर उन्होंने सोचा कि इस घटना की खबर उनके पुत्र श्रंगी ऋषि को दी जाए। एक लड़का दौड़कर श्रंगी ऋषि के पास गया और सारा वृत्तान्त बताया। अपने पिता का ऐसा अपमान सुनकर श्रंगी ऋषि को तत्क्षण ही क्रोध आ गया और उन्होंने कौशिकी नदी के जल का चुल्लू लेकर राजा परीक्षित को शाप दे डाला कि जिस सांप को तूने मेरे पिता के गले में डाला है, वही सात दिन बाद तुझे डंसेगा।
जिस राजा के राज में सिंह और गाय एक घाट पर पानी पीते हैं, उसको तूने ऐसा कठोर शाप देकर बड़ा पाप किया है
उसके बाद श्रंगी पिता के पास आये और उनके गले से सांप को निकालकर बोले कि मैंने उसको शाप दे दिया है, जिसने आपके गले में मरा हुआ सर्प डाला था। इसे सुनकर लोमश ऋषि ने नेत्र खोल दिये और पुत्र से कहा कि ये उसने क्या किया? जिस राजा के राज में सिंह और गाय एक घाट पर पानी पीते हैं, उसको तूने ऐसा कठोर शाप देकर बड़ा पाप किया है। लोमश ऋषि ने तुरन्त एक चेले को बुलाकर कहा कि जाओ, राजा को शाप के बारे में बताओ ताकि वह सावधान हो जाए। चेले ने जाकर राजा को बताया कि उसे शाप दिया गया है जिसके अनुसार सात दिन बाद तक्षक सर्प उनको डंसेगा, इसलिए अपना कारज करो।
यह सुनते ही राजा परीक्षित बड़ा प्रसन्न हुआ और कहने लगा कि शाप देकर ऋषि ने बड़ा उपकार किया कि मुझे शाप देकर माया-मोह से निकालकर बाहर किया। मुनि के शिष्य के विदा होते ही राजा ने वैराग्य ले लिया और राजपाट अपने पुत्र जनमेजय को देते हुए कहा कि ब्राह्मण और गऊ की रक्षा कीजो और प्रजा को सुख दीजो!
यह सब सुनते ही उसकी रानियां उदास होकर रोने लगीं। उधर राजा गंगा के तीर पर योग साधने के लिए जा बैठे। जब यह समाचार अन्य ऋषियों-मुनियों ने सुना तो सब गंगा के तीर पर आने लगे। व्यास वशिष्ठ, विश्वामित्र, कात्यायन, जमदग्नि आदि अट्ठासी सहस्त्र ऋषि वहां पधार गए और अपने-अपने शास्त्र के अनुसार शास्त्र-विचार करने लगे। राजा की श्रद्धा को देख वेश बदलकर अपनी पोथियां कांख में दबाकर श्री शुकदेव जी भी वहां पहुंच गये। सब मुनियों ने उनको आदर दिया। राजा ने दण्डवत कर शुकदेव जी से प्रार्थना की कि भगवन्! कृपा कर मुझे धर्म का ज्ञान दीजिए ताकि कर्म के बन्धन से छूट सकूं और यह भी बताइए कि इन सात दिनों में क्या करुं?
शुकदेव जी बोले कि राजा! सब धर्मों में वैष्णव धर्म सबसे बड़ा है और पुराणों में सबसे बड़ा भागवत है। सो मैं उसके दशक स्कन्ध की कथा सुनाऊंगा!
कथा चल रही थी। सब श्रद्धाविगलत होकर जय-जय कर रहे थे। मैकाले की मुंडी हिल रही थी और मैं देख रहा था कि भागवत का जलवा किस कदर है कि न जाने कब से अब तक वह उसी तरह प्रभाव डालता है, जिस तरह उसके बारे में कहा गया है कि वह अमर कथा है।
सोचा कथा समाप्त हो तो मैकाले से मिला जाए और जरा उसके विचार जाने जायें क्योंकि मैकाले तो ओरियंटलिज्म का सबसे बड़ा विधाता माना जाता है और अगर वृजरत्नदास की गवाही मानें तो वह इस कथा का भी विधाता था क्योंकि गिलक्राइस्ट और मैकाले की जोड़ी ने ही कल्लू जी लाल को संस्कृत में लिखित ‘श्रीमद्भागवत’ को हिन्दी में लिखने के लिए कलकत्ता के कालेज में अध्यापक नियुक्त किया था।
"मिस काउ – ए लव स्टोरी"
लेखक : सुधीश पचौरी
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
पृष्ठ : 143
लेखक : सुधीश पचौरी
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
पृष्ठ : 143