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वह समझ नहीं पाता कि संसार में वाक़ई अँधेरा है या उसकी आँखें उसे धोखा दे रही हैं. |
मंजुल प्रकाशन ने विश्व के प्रसिद्ध लेखकों की श्रेष्ठ कथाओं का खूबसूरत संकलन प्रकाशित किया है. 'चुगलखोर दिल और अन्य कहानियाँ' का अनुवाद मदन सोनी ने किया है. इस संचयन में दस देशों की सात भाषाओँ की चौदह कहानियाँ संग्रहीत हैं जो संसार के कथा-परिदृश्य की समृद्धि की एक व्यापक झलक देती हैं. इसमें प्राचीन साहित्यकारों से लेकर बीसवीं सदी के आधुनिक कहानी के महान लेखकों की रचनाएँ शामिल हैं.
संकलन से पढ़ें चेक रिपब्लिक के लेखक फ़्रांत्ज़ काफ़्का की कहानी :
विधि के समक्ष -
विधि के समक्ष एक द्वारपाल खड़ा है। इस द्वारपाल के पास एक ग्रामीण आता है और उससे विधि के भीतर प्रवेश के लिए प्रार्थना करता है। लेकिन द्वारपाल कहता है कि वह उसे फ़िलहाल प्रवेश की अनुमति नहीं दे सकता। वह आदमी उसकी बात पर विचार करता है और फिर पूछता है कि क्या बाद में उसे अंदर जाने दिया जाएगा। ”हो सकता है,“ द्वारपाल कहता है, ”लेकिन अभी नहीं।“ चूँकि दरवाज़ा, हमेशा की तरह, खुला हुआ है और द्वारपाल एक ओर को हट जाता है, वह आदमी अंदर की झलक पाने के लिए झुककर दरवाज़े में झाँकता है। यह देख द्वारपाल हँसता है और कहता है: ”अगर यह तुम्हें इतना ही आकर्षित कर रहा है तो मेरे मना करने के बावजूद ज़रा भीतर जाकर देखो। लेकिन ध्यान रहे: मैं शक्तिशाली हूँ। मैं तो सबसे छोटा द्वारपाल हूँ। एक हॉल से दूसरे हॉल तक एक के बाद दूसरा द्वारपाल मौजूद है जिनमें से प्रत्येक पिछले के मुक़ाबले ज़्यादा शक्तिशाली है। तीसरा ही द्वारपाल इतना भयानक है कि मुझ तक में उसकी ओर देखने का साहस नहीं है।“
ग्रामीण को इन कठिनाइयों का अंदाज़ा नहीं रहा है; उसका ख़याल है कि विधि को हर समय हर व्यक्ति की पहुँच में होना चाहिए, किंतु अब जबकि वह फ़र का कोट पहने, बड़ी तीख़ी नाक और लंबी, पतली, काली तातारी दाढ़ी वाले इस द्वारपाल को क़रीब से देखता है तो फ़ैसला करता है कि जब तक उसे प्रवेश की अनुमति नहीं मिलती तब तक इंतज़ार करना ही बेहतर होगा। द्वारपाल उसे एक स्टूल देता है और उसको दरवाज़े के एक ओर बैठ जाने देता है। वहाँ वह वर्षों बैठा रहता है। वह प्रवेश पाने की अनेक कोशिशें करता है और बारबार के अपने आग्रह से द्वारपाल को परेशान कर देता है। द्वारपाल उससे छोटे-मोटे सवाल करता रहता है, उससे उसके घर और कई दूसरी चीज़ों के बारे में पूछता रहता है, लेकिन ये सवाल तटस्थ भाव से पूछे गए होते हैं, जैसे महान लोग पूछते हैं, और जिनकी तान हमेशा इस बात पर टूटती है कि उसको अभी प्रवेश नहीं दिया जा सकता। यह आदमी जो अपनी यात्रा के लिए बहुत-सी चीज़ें साथ बाँधकर लाया है, अपनी हर क़ीमती से क़ीमती चीज़ द्वारपाल को घूस देने में गँवा डालता है। यह कर्मचारी सब कुछ लेता जाता है, हमेशा यह कहते हुए: ”मैं यह सब इसलिए स्वीकार किए ले रहा हूँ ताकि तुम यह न सोचो कि तुमने कोई कसर तो नहीं रख छोड़ी है।“
इन तमाम वर्षों में यह आदमी लगभग निरंतर अपना ध्यान द्वारपाल पर केंद्रित रखता है। दूसरे द्वारपालों को वह भूल जाता है, और यह पहला ही उसे विधि तक पहुँचने से रोकने वाली एकमात्र बाधा प्रतीत होता है। शुरुआती वर्षों में वह अपने दुर्भाग्य को बेबाक और मुखर रूप से कोसता है, बाद में, जब वह बूढ़ा हो जाता है, भीतर ही भीतर बुड़बुड़ाता रहता है। वह बच्चों जैसा हो जाता है, और चूँकि द्वारपाल पर वर्षों ध्यान गड़ाए रखने के कारण वह उसके फ़र कोट के कॉलर के पिस्सुओं तक को जानने लगा है, वह इन पिस्सुओं तक से गुज़ारिश करता है कि वे उसकी मदद करें और द्वारपाल के निश्चय को बदल दें। आख़िरकार उसकी दृष्टि का कमज़ोर होना शुरू हो जाता है और वह समझ नहीं पाता कि संसार में वाक़ई अँधेरा है या उसकी आँखें उसे धोखा दे रही हैं। फिर भी अपनी इस अंधता में वह उस दीप्ति के प्रति सजग है जो विधि के दरवाज़े से अच्युत प्रवाहित हो रही है। अब वह ज़्यादा वक़्त तक जीवित रहने वाला नहीं है। मरने से पहले, इन लंबे वर्षों के उसके तमाम अनुभव एक बिंदु पर आकर ठहर जाते हैं, एक प्रश्न पर जो उसने अब तक द्वारपाल से नहीं पूछा है। क्योंकि अपनी अकड़ती हुई देह को खड़ा कर पाना उसके लिए संभव नहीं रह गया है, वह उसे इशारे से अपने क़रीब बुलाता है। द्वारपाल को उसकी ओर झुकना पड़ता है क्योंकि दोनों के बीच की लंबाई का फ़र्क़ ग्रामीण के दुर्भाग्य से काफ़ी उलटा हो गया है। ”अब तुम क्या जानना चाहते हो?“ द्वारपाल पूछता है, ”तुम कभी संतुष्ट नहीं हो सकते।“ आदमी कहता है, ”हर कोई विधि तक पहुँचने के लिए व्यग्र रहता है, फिर ऐसा क्यों है कि इन तमाम वर्षों में मेरे सिवा किसी ओर ने प्रवेश के लिए याचना नहीं की?“ द्वारपाल जान जाता है कि आदमी का अंत आ गया है, और इसलिए कि उसकी विफल होती इंद्रियाँ शब्दों को ग्रहण कर सकें, वह उसके कान में चीख़ता है: ”किसी दूसरे आदमी को यहाँ कभी प्रवेश दिया ही नहीं जा सकता था, क्योंकि यह दरवाज़ा केवल तुम्हारे लिए ही बनाया गया था। अब मैं इसे बंद करने जा रहा हूँ।“
इसी संग्रह से पढ़ें फ्रांस के लेखक गी दा मोपासौं की कहानी - 'एक पत्नी की स्वीकारोक्ति'>>
"चुगलखोर दिल और अन्य कहानियाँ"
अनुवाद एवं संकलन : मदन सोनी
प्रकाशक : मंजुल प्रकाशन
पृष्ठ : 258
अनुवाद एवं संकलन : मदन सोनी
प्रकाशक : मंजुल प्रकाशन
पृष्ठ : 258