फ्रांस के लेखक गी दा मोपासौं की कहानी - 'एक पत्नी की स्वीकारोक्ति'

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'चुगलखोर दिल और अन्य कहानियाँ' संकलन से एक खूबसूरत कहानी पढ़ें...

मंजुल प्रकाशन ने विश्व के प्रसिद्ध लेखकों की श्रेष्ठ कथाओं का खूबसूरत संकलन प्रकाशित किया है. 'चुगलखोर दिल और अन्य कहानियाँ' का अनुवाद मदन सोनी ने किया है. इस संचयन में दस देशों की सात भाषाओँ की चौदह कहानियाँ संग्रहीत हैं जो संसार के कथा-परिदृश्य की समृद्धि की एक व्यापक झलक देती हैं. इसमें प्राचीन साहित्यकारों से लेकर बीसवीं सदी के आधुनिक कहानी के महान लेखकों की रचनाएँ शामिल हैं. 

संकलन से पढ़ें फ्रांस के लेखक गी दा मोपासौं की कहानी :

एक पत्नी की स्वीकारोक्ति -

मेरे दोस्त, आपका आग्रह है कि मैं आपको अपनी ज़िंदगी की सबसे दिलचस्प यादें सुनाऊँ। मैं बहुत बूढ़ी हूँ, मेरे कोई रिश्तेदार नहीं हैं, कोई बच्चे नहीं हैं; इसलिए मैं आपके सामने अपनी स्वीकारोक्ति करने के लिए आज़ाद हूँ। मुझसे एक वादा करो - मेरा नाम कभी उजागर नहीं करोगे।

मुझे बहुत प्रेम मिला है, जैसाकि आप जानते हैं; मैंने ख़ुद भी अक्सर प्रेम किया है। मैं बहुत ख़ूबसूरत थी; यह बात मैं आज कह सकती हूँ, जब मेरी ख़ूबसूरती जाती रही है। प्रेम मेरे लिए आत्मा का जीवन था, वैसे ही जैसे हवा देह का जीवन होती है। मैं ऐसी ज़िंदगी की बजाय मर जाना पसंद करती जिसमें प्रेम न होता, जिसमें मेरी परवाह करने वाला व्यक्ति हमेशा मौजूद न होता। औरतें ज़िंदगी में सिर्फ़ एक बार अपने दिल की पूरी सामर्थ्य के साथ प्रेम करने का दिखावा करती हैं; मेरी ज़िंदगी के लगाव अक्सर इतने ज़बरदस्त रहे हैं कि मुझे लगता था कि मेरे भावावेगों का कभी भी अपने अंत पर पहुँचना असंभव होगा। लेकिन वे हमेशा स्वाभाविक ढंग से ख़त्म हो जाते थे, उस आग की तरह जो ईंधन ख़त्म हो जाने पर बुझ जाती है।

आज मैं आपको अपने पहले साहसिक कारनामे के बारे में बताऊँगी, जिसमें मैं बेहद मासूम थी, लेकिन जो दूसरे कारनामों तक ले गया। पेक़ के उस ख़ौफ़नाक कीमियागर का भयावह प्रतिशोध मुझे उस घिनौने नाटक की याद दिलाता है जिसकी मैं, अनचाहे ही, एक दर्शक थी।

साल भर पहले मेरा विवाह एक रईस आदमी, कोंत हेग्वे दे केख़, से हुआ था - ब्रितन के एक प्राचीन खानदान का शख्स, जिसको मैं प्यार नहीं करती थी, आप समझ सकते हैं। वैसे भी मेरा मानना है कि सच्चा प्रेम एक साथ स्वतंत्रता और अवरोध की माँग करता है। जो प्रेम आरोपित होता है, क़ानून द्वारा अनुमोदित, और पुरोहित का आशीर्वाद लिए होता है - क्या हम उसको वाक़ई प्रेम कह सकते हैं? क़ानूनी तौर पर लिया गया चुंबन किसी चुराए गए चुंबन जितना आनंददायी कभी नहीं होता। मेरा पति क़द में लंबा, सुंदर, और अपने बरताव में वाक़ई नफ़ासतपसंद भला आदमी था। लेकिन उसमें अक़्लमंदी की कमी थी। वह मुँहफट ढंग से बात करता था, और अपने विचारों को ऐसे रखता था जैसे चाकू से काटकर पेश कर रहा हो। उसकी बातों से लगता था जैसे उसका दिमाग़ ऐसी तैयारशुदा धारणाओं से भरा हुआ था जो उसके माँ-बाप ने उसमें ठूँस-ठूँस कर भर दी थीं, उन लोगों ने जिन्होंने ख़ुद उन धारणाओं को अपने पूर्वजों से हासिल किया हुआ था। वह कभी हिचकिचाता नहीं था, बल्कि हर मसले पर तुरंत संकीर्ण क़िस्म की सलाहें पेश कर देता था, बिना किसी संकोच के और बिना इस बात के अहसास के कि चीज़ों को देखने का कोई दूसरा नज़रिया भी हो सकता है। लगता था जैसे उसके दिमाग़ में ताला लगा हुआ था, जैसे उसमें किसी तरह के विचारों का संचार नहीं होता था, ऐसे किन्हीं भी विचारों का जो, किसी मकान की खुली खिड़की से आती ताज़ा हवा के झोंकों की तरह, इंसान के दिमाग़ में ताज़गी लाते हैं और उसको स्वस्थ रखते हैं।

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जिस शातो में हम रहा करते थे वह देहात के एक उजाड़ इलाक़े में स्थित था। वह बहुत ही उदास इमारत थी, विशाल दरख़्तों से घिरी हुई, सेवार के गुच्छों से लदी हुई जो किसी बूढ़े की दाढ़ी जैसे लगते थे। पार्क, जोकि वाक़ई जंगल था, हा-हा नाम की एक गहरी खाई से घिरा हुआ था, और उसके छोर पर, दलदली भूमि के क़रीब, हमारे बड़े-बड़े सरोवर थे जो सरकंडों और जलकुम्भियों से भरे हुए थे। ऐसे ही दो सरोवरों के बीच, उस नाले के किनारे जो उन दोनों को जोड़ता था, मेरे पति ने जंगली बतखों के शिकार के लिए एक झोपड़ी बनवा रखी थी।

हमारे सामान्य नौकर-चाकरों के अलावा हमारे पास एक रखवाला भी था, एक क़िस्म का निर्दयी जो मेरे पति के प्रति आमरण समर्पित था, और एक नौकरानी, जो लगभग एक सहेली की तरह मुझसे बेतहाशा प्रेम करती थी। उसको मैं पाँच साल पहले अपने साथ स्पेन से वापस लाई थी। वह एक परित्यक्त बच्ची थी। उसकी त्वचा साँवली थी, आँखें काली, और काठ की तरह मोटे बाल थे जो हमेशा उसके माथे पर फैले रहते थे, और इन तमाम वजहों से उसको एक जिप्सी समझा जा सकता था। वह उस वक़्त सोलह बरस की थी, लेकिन बीस की लगती थी।

पतझड़ की शुरुआत हो रही थी। हम बहुत शिकार किया करते थे, कभी पड़ोस की ज़मीनों पर, कभी अपनी ख़ुद की; और मेरा ध्यान एक नौजवान पर गया, बैरॅन दे सी - जिसका शातो में आना एकदम अक्सर होने लगा था। इसके बाद उसका आना बंद हो गया; मैंने इसके बारे में सोचना बंद कर दिया; लेकिन मैंने पाया कि मेरे प्रति मेरे पति के व्यवहार में बदलाव आ गया था।

वह ख़ामोश और अपने आप में डूबा हुआ-सा रहने लगा; वह मुझको चूमता नहीं था; इसके बावजूद कि वह मेरे कमरे में नहीं आता था, क्योंकि मैं थोड़ा अकेला रहने की इच्छा से अलग कमरों में रहने का इसरार करती थी, मुझे अक्सर रातों में अपने दरवाज़े की तरफ़ बढ़ती और फिर कुछ मिनटों बाद वापस लौटती दबे क़दमों की आहट सुनाई देती।

चूँकि मेरी खिड़की निचले तल पर थी, मुझे लगता था कि मुझे अक्सर शातो के चारों ओर अँधेरे में किसी के चहलक़दमी करने की आहटें भी सुनाई देती थीं। मैंने अपने पति को इसके बारे में बताया, और उसने कुछ देर तक मेरी ओर तीख़ी नज़रों से देखने के बाद कहा:

”कुछ नहीं है - वह रखवाली करने वाला है।“

अब, एक शाम, डिनर के ठीक बाद, हेग्वे, जो असामान्य रूप से ख़ुश लग रहा था, एक क़िस्म के अंदरूनी उल्लास के साथ मुझसे बोला :
”क्या तुम बंदूकों के साथ तीन घंटे बाहर गुज़ारना पसंद करोगी, ताकि उस धूर्त लोमड़ को मारा जा सके जो मेरी मुर्गि़यों को खाने हर शाम आ जाता है?“

मुझे अचरज हुआ। मैं हिचकिचा रही थी; लेकिन चूँकि वह मुझे अजीब नज़रों से लगातार देखे जा रहा था, मैंने आख़िरकार जवाब दिया :
”क्यों नहीं, बेशक, मेरे दोस्त।“ मैं आपको बता दूँ कि मैंने किसी मर्द की तरह भेड़िये और जंगली सूअर का शिकार किया था। इसलिए यह एकदम सहज बात थी कि वह इस शिकार के लिए मुझसे कहता।

लेकिन मेरे पति के चेहरे पर अचानक ही असामान्य-सा बेचैन भाव उभर आया; और फिर पूरी शाम वह विक्षुब्ध लगता रहा, जिस दौरान वह उत्तेजित-सा बारबार खड़ा होता और बैठ जाता था।

क़रीब रात दस बजे वह अचानक मुझसे बोला :
”तुम तैयार हो?“

मैं उठ खड़ी हुई; और चूँकि वह ख़ुद मेरी बंदूक लेने जा रहा था, मैंने पूछा :
”हम उसमें गोलियाँ भर रहे हैं या डियरशॉट?“

”ओह! सिर्फ़ डियरशॉट; अपने दिमाग़ को ढीला रखो! इतना काफ़ी होगा।“

फिर, कुछ पल बाद, उसने एक ख़ास अंदाज़ में कहा :
”तुम शानदार धीरज का परिचय दे सकती हो।“

मैं ज़ोर से हँस पड़ी।

”मैं? प्लीज़, ऐसा क्यों? धीरज क्या इसलिए कि मैं एक लोमड़ को मारने जा रही हूँ? तुम्हारे दिमाग़ में क्या चल रहा है, मेरे दोस्त?“

हम चुपचाप पार्क में निकल पड़े। सारा घर सोया हुआ था।

पूर्णिमा का चाँद उस प्राचीन मनहूस इमारत को पीली आभा से भरता प्रतीत होता था, जिसका सलेटी छप्पर जगमगा रहा था। उसके दोनों ओर खड़े दो बुर्जों की चोटियों पर रोशनी की दो पट्टियाँ थीं, और उस नीरभ्र, उदास, मीठी और शांत रात की ख़ामोशी को भंग करने वाली कहीं कोई आवाज़ नहीं थी, जो किसी मौत की-सी समाधि में डूबी हुई थी। हवा का एक झोंका नहीं, किसी मेंढक की टरटराहट नहीं, किसी उल्लू की पुकार नहीं; एक मलिन स्तब्धता हर चीज़ पर गहरे छाई हुई थी। जब हम पार्क में वृक्षों के नीचे थे, तो झड़ी हुई पत्तियों की गंध के साथ-साथ चुपचाप ताज़गी का एक अहसास मुझ पर छा गया। मेरे पति ने कुछ नहीं कहा; लेकिन वह सुन रहा था, वह नज़र रखे हुए था, शिकार को लेकर सिर से पैर तक जुनून से भरा हुआ वह सायों को सूँघ रहा था।

हम जल्दी ही सरोवरों के किनारों तक जा पहुँचे।

उन पर फैली घास निश्चल थी; हवा का एक झोंका भी उनको हिला नहीं रहा था; लेकिन पानी के भीतर बमुश्किल पकड़ में आ सकने वाली हलचलें थीं। जब कभी उसकी सतह किसी चीज़ से काँप उठती, और रोशनी के वृत्त अंतहीन फैलती जगमगाती सलवटों की भाँति उभरने लगते।

जब हम झोपड़ी पर पहुँचे, जहाँ हमें इंतज़ार करना था, मेरे पति ने पहले मुझे अंदर भेजा; इसके बाद उसने धीरे-से अपनी बंदूक को लोड किया, और बारूद की सूखी चरचराहट ने मुझ पर विचित्र-सा असर डाला। उसने देखा कि मैं काँप रही हूँ और मुझसे पूछा:
”क्या इतनी परीक्षा तुम्हारे लिए काफ़ी थी? अगर ऐसा है, तो वापस चली जाओ।“

मुझे आश्चर्य हुआ और मैंने जवाब दिया :
”क़तई नहीं। मैं कुछ भी किए बग़ैर वापस जाने के लिए नहीं आई थी। तुम आज शाम कुछ विचित्र-सा व्यवहार करते लग रहे हो।“

वह बुदबुदाया :
”जैसी तुम्हारी मर्ज़ी।“ हम बिना हिलेडुले वहीं बने रहे।

लगभग आधा घंटे बाद, जब मैंने पाया कि पतझड़ की उस चमकीली रात की दमघोंटू ख़ामोशी को कोई चीज़ नहीं तोड़ रही थी, तो मैंने धीमे स्वर में कहा :
”क्या तुम पक्के तौर पर जानते हो कि वह इसी रास्ते से गुज़रेगा?“

हेग्वे ने इस तरह मुँह बिगाड़ा जैसे मैंने उसको काट लिया हो, और अपना मुँह मेरे कान के एकदम क़रीब लाकर बोला :
”इस बारे में ज़रा भी ग़लती मत करना! मुझे पक्के तौर पर पता है।“

एक बार फिर निस्तब्धता छा गई।

मैं समझती हूँ मैं उनींदी होने को थी कि तभी मेरे पति ने मेरी बाँह दबाई, और फुसफुसाहट में बदलते स्वर में उसने कहा :
”वह दिखाई दे रहा है तुम्हें उस पेड़ के नीचे?“

मैंने व्यर्थ नज़र दौड़ाई; मुझे कुछ भी पहचान में नहीं आ सका। हेग्वे ने धीरे-से अपनी बंदूक का घोड़ा चढ़ाया, जिस दौरान उसकी आँखें लगातार मेरे चेहरे पर बनी रहीं।

मैं ख़ुद भी गोली चलाने को तैयार हो रही थी, और अचानक, हमसे कोई तीस क़दमों की दूरी पर, चंद्रमा की पूरी रोशनी में एक आदमी दिखाई दिया जो तेज़ क़दमों से चलता हुआ आगे को बढ़ रहा था। उसका शरीर झुका हुआ था, जैसे वह भागने की कोशिश कर रहा हो।

मैं इस क़दर विस्मय से भर उठी कि मेरे मुँह से ज़ोर की चीख़ निकल गई; लेकिन, इसके पहले कि मैं मुड़ती, मेरी आँखों के सामने एक कौंध उभरी; बहरा कर देने वाला एक धमाका मुझे सुनाई दिया; और मैंने बंदूक की गोली से घायल भेड़िये की तरह उस आदमी को ज़मीन पर लुढ़कते हुए देखा।

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मैं इस क़दर भयभीत हो उठी कि लगभग पागल होने को थी और मेरे मुँह से भयानक चीखें निकल पड़ीं; इसके बाद एक क्रुद्ध हाथ ने - जोकि हेग्वे का था - मेरा गला पकड़ लिया। मैं ज़मीन पर गिर पड़ी, और फिर उसके मज़बूत हाथों ने मुझे उठाया। वह मुझे ज़ोर से पकड़े हुए उस वक़्त तक भागता रहा जब तक कि हम घास पर पड़ी हुई उस लाश तक नहीं पहुँच गए, और फिर उसने मुझे पूरी ताक़त से उसके ऊपर पटक दिया, जैसे वह मेरा सिर तोड़ देना चाहता हो।

मुझे लगा कि मैं गई; वह मुझे मार डालने वाला है; और उसने मेरे माथे पर दे मारने के लिए अपनी ऐड़ी उठाई ही थी कि तभी, इसके पहले कि मैं कुछ समझ पाती, उसको जकड़ लिया गया और ज़मीन पर पटक दिया गया।

मैं झटके से उठ खड़ी हुई, और मैंने देखा कि उसके ऊपर सवार यह पोरक़ीता थी, मेरी घरेलू नौकरानी, जो उसको किसी जंगली बिल्ली की तरह जकडे़ हुए, भयानक ऊर्जा के साथ, उसकी दाढ़ी, मूँछें और उसके चेहरे की खाल को नोच रही थी।

फिर, जैसे अचानक उसके मन में कोई दूसरा ख़याल आया हो, वह उठी, ख़ुद को उस शव पर फेंकते हुए उसको अपनी बाँहों में भर लिया, उसकी आँखों और मुँह को चूमने लगी, उसके मृत होंठों को अपने होंठों से खोलते हुए उनमें प्राणवायु की और प्रेमियों के दीर्घ, दीर्घ चुंबनों को तलाशने की कोशिश करने लगी।

मेरे पति ने, किसी तरह ख़ुद को खड़ा करते हुए, मेरी ओर देखा। वह समझ गया, और, मेरे पैरों पर गिरता हुआ बोला :
”ओह! मुझे माफ़ कर दो डार्लिंग, मैंने तुम पर शक किया और इस लड़की के प्रेमी को मार डाला। यह मेरा रखवाला था जिसने मेरे साथ छल किया।“

लेकिन मैं उस मृत व्यक्ति और उस जीवित स्त्री के चुंबनों को देख रही थी, उसकी सिसकियों और उसके संतप्त प्रेम की छटपटाहटों को, और उस पल में मुझे समझ में आया कि मैं अपने पति के प्रति बेवफ़ाई कर सकती हूँ।

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"चुगलखोर दिल और अन्य कहानियाँ"
अनुवाद एवं संकलन : मदन सोनी
प्रकाशक : मंजुल प्रकाशन
पृष्ठ : 258