‘पॉपकॉर्न विद परसाई’ के बनने की कहानी

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लेखक निलय उपाध्याय के जो मन में था उसे एक बेहद रोचक नाटक में रच डाला.

अमूमन मैं अपनी किताबों की भूमिका लिखने से बचता हूं, लेकिन वह क्या है जो कहने के लिए बेचैन हूं। शायद बेचैनी मेरे मन की है। एक तो यह नाटक है भी या नहीं। एक मित्र ने कहा कि यह तो लेख है। अब ना भी नहीं कह सकता क्योंकि मुम्बई के हिट नाटकों में एक है। दया शंकर पाण्डेय जो ‘लगान’ जैसी फिल्म के अभिनेता हैं, परसाई का अभिनय करते हैं। मनोज शाह जो गुजराती के जाने-माने निर्देशकों में एक हैं।

टिकट लगता है और हाउस फुल रहता है।

अब अगर यह मैं कहूं कि नाटक नहीं है तो कहीं का न रहूं।

जीवन में इतनी विधाएं शरीक हो गयी थीं कि नाटक लिखूंगा नहीं यह तय था। एक कसक थी मन में। किसी से एक बार बात हो रही थी, नाटक को सिनेमा की तरह गतिशील बनाया जा सकता है या नहीं। यह एक भाव था मन में मगर जगह नहीं थी। अब यह अनहोनी कैसे होनी बनी।

मुम्बई के एक कार्यक्रम में था।

अभिनेता दया शंकर पाण्डेय ने परसाई जी के रचना के अंश का पाठ किया और पाठ सुन उसी दिन मेरे मन में यह बात आयी कि इनको परसाई बनाना चाहिए था। कुन्दन शाह के लिए परसाई जी की कहानियों पर मैंने चौदह-पन्द्रह एपीसोड लिखे थे जो दूरदर्शन पर प्रसारित भी हुए। जब लेखन कार्य पूरा हुआ तो कुन्दन जी ने सबसे पहले मुझसे पूछा था निलय जी, परसाई किसे बनाना चाहिए। तब मैं नया था और कम बोलता था। अगर उस समय यह अभिनेता मुझे मिला होता तो कमाल हो गया होता।

और कमाल हुआ कि अगले दिन दया शंकर का फोन आया मेरे पास परसाई पर नाटक लिखने के लिए।

अभी-अभी मैं गंगा यात्रा पूरी कर आया था। मेरे भीतर उसे लिख देने की बेचैनी थी। मैं लगातार छोटी घटनाओं की लिस्ट बना रहा था। जिस ललक के साथ दया शंकर ने अपने परसाई प्रेम के बारे में बताया, मैं ना नहीं कह सका। दया शंकर के पाठ की लय मेरे स्मरण में आयी।

"हर पाँच साल में देश की मिट्टी बदलती है.
हर दस साल में देश बदलता है.
हर बीस साल में नस्ल बदल जाती है.
हर नस्ल पॉपकॉर्न बनाने का अपना तरीका लेकर आती है."
('पॉपकॉर्न विद परसाई' से..)

गंगा यात्रा का पहला भाग पूरा हो चुका था।

आगे का काम रोक कर मैंने काम ले लिया।

अगले दिन मेरे घर पर मनोज भाई और दया शंकर पाण्डेय आये।

मनोज भाई यानी मनोज शाह के बारे में थोड़ा बताना जरुरी है।

गुजराती नाटक की दुनिया में उनका बड़ा नाम है और उन गिने चुने नाट्य निदेशकों में एक हैं जो अश्लील नहीं है। उन्होंने मुझसे कहा कि मुम्बई में अश्लील नाटकों का बाजार है, इसे परसाई ही खत्म कर सकता है। परसाई को मुम्बई में कोई नहीं जानता। कह कर मनोज शाह भावुक हो गये।

उन्होंने अब तक का अपना सारा शोध दिया, परसाई रचनावली मंगाई गयी और काम शुरु हो गया।


हमने तय किया कि रुसो के दर्शन के आधार पर पहले परिवार, फिर समाज और धर्म, राजनीति का मजाक उड़ायेंगे परसाई जी मगर सारी चीज़ें आज ही होगी। एक दिन अचानक मनोज भाई का फोन आया कि निलय जी परसाई के साथ पॉपकॉर्न को जोड़ना कैसा रहेगा और मैं खिल गया।

मुम्बई के दाने पर मेरी कविता भी है।

एक मक्के के आते ही सभ्यता का संकट साफ-साफ सामने नज़र आने लगा।

मकई के खेत ने एक छोर दे दिया जहां से मैं प्रस्थान कर सकता था।

लिखने के बाद पाठ सुनने भी गया। दया शंकर बड़ी लगन से काम में लगे थे। उस श्रम का क्या कहूं। निलय जी, क्या बताऊं कितना श्रम लगता है, मंच पर लगातार 80 मिनट तक नाचते खड़ा रहना, और आपकी इतनी कठिन बातें याद करना आसान नहीं है।

बस हम गले ही मिल सकते थे।

"हर आदमी अपनी जीवन-यात्रा में या तो बीज बन कर फूटता है या पॉपकॉर्न बनकर.
दाना जो बीज बन कर फूटता हा वह किसी किसान की चाहत है."
('पॉपकॉर्न विद परसाई' से...)

दया शंकर पाण्डेय के परसाई प्रेम की कथा तब खुलकर सामने आयी जब पृथ्वी थियेटर में शो खत्म हुआ। बाहर मैं अपने मित्रों के बीच खड़ा था तभी नेहा शरद आ गयी और उन्होंने इस प्रेम का खुलासा किया। नेहा शरद और दया शंकर स्कूल में एक साथ पढ़ते थे। नेहा को शरद जोशी की बेटी होने का गर्व था। किसी को भी उनकी बेटी होने का गर्व होगा और अपने बचाव में दया शंकर के पास अस्त्र की तरह रहते थे हरिशंकर परसाई। बचपन का यह खेल से अब अब दया शंकर के मन में बसे थे परसाई। मनोज भाई को मुम्बई की अश्लीलता से लड़ने के लिए कार्ल मार्क्स के बाद दूसरा नाटक चाहिए था और मुझे सभ्यता के आक्रमण को समझाने की जगह। इस तरह अलग-अलग दिशाओं से आकर तीन नदियां मिलीं और बना परसाई का पॉपकॉर्न।

लोग पसंद कर रहे हैं, सुकून मिल रहा है।

खुश हूं सुनकर कि अब यह पुस्तक रुप में आपके पास जा रही है।

-निलय उपाध्याय.

'पॉपकॉर्न विद परसाई
लेखक : निलय उपाध्याय
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
पृष्ठ : 60