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सुधीर मोता ने ज़िन्दगी के जज़्बे को इस भावनात्मक पहलुओं पर लिखी किताब में संजोया है. |
जब हमारी जिंदगी में कोई ऐसा तूफान आता है और हम समझ भी नहीं पाते। तब स्थिति बहुत ही विचित्र बन जाती है। हम इंसान भावुक होते हैं। और सामाजिक प्राणी होने के नाते हम में भावनाएं कूट-कूट कर भरी हुई हैं जो मौके-बेमौके निकल कर बाहर आती रहती हैं। परिवार का मतलब आपसी मेलजोल और हर सुख दुख का भागी बनने से है। जब इस संस्था की कोई कड़ी प्रभावित होती है तो मानो भूचाल-सा जाता है। लेकिन इसी मौके पर परिवार की एकजुटता का भी असली इम्तिहान होता है।
जाने माने कवि सुधीर मोता ने कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी से जूझ रहे परिवार के एक सदस्य और परिवार पर होने वाले उसके असर का अपनी पुस्तक में वास्तविक वर्णन किया है। 'उसका कैंसर, मेरा कैंसर' पुस्तक का प्रकाशन मंजुल पब्लिशिंग हाउस ने किया है। यह किताब हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में उपलब्ध है।
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Cancer Weds Cancer by Sudhir Mota (Manjul Publishing House) |
मैं पूरी दुनिया के रोगियों और उनके परिजनों के मन में उतर सकता तो कितना अच्छा होता। जब कोई यह किताब पड़ेगा तब शायद मैं अपने ही लिखे शब्दों द्वारा उन तक पहुंच सकूंगा। तब क्या मैं उन्हें बता पाने में सफल हो पाऊंगा कि समुद्र की तरह अथाह इस जीवन में अकल्पनीय घटनाएं समाई हुई हैं। अगर तूफान और ज्वार हैं तो स्थिरता और विस्तार भी है। कई मायनों में हमारा जीवन भी समुद्र की तरह है। मेरी नानी अक्सर कहा करती थी - यह दिन भी चला जाएगा। और सच में, हर दिन गुज़र जाता है।'
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उसका कैंसर, मेरा कैंसर- सुधीर मोता (मंजुल पब्लिशिंग हाउस) |
सुधीर मोता ने ज़िन्दगी के जज़्बे को इस भावनात्मक पहलुओं पर लिखी किताब में संजोया है। उन्होंने उस कुदरती जुड़ाव की गहराई से समीक्षा की है जो हम इंसानों को रिश्तों में पिरोकर रखता है; ऐसा कुछ जिसपर ज़िन्दगी की गाड़ी बढ़ती है। जब परिवार का कोई अपना ऐसे रोग से ग्रस्त हो जाये जिसे आम भाषा में कैंसर कहा जाता है, तो उस झटके को झेलना हर किसी के बस की बात नहीं. मरीज के साथ-साथ परिवार भी हताश हो सकते हैं।
लेकिन सुधीर मोता के परिवार ने एक-दूसरे को समझा और बीमारी से घबराए नहीं। सुधीर जी की पत्नी को कैंसर रोग हो जाता है। उन्होंने हर उस स्थिति का विस्तार से यहां उल्लेख किया है जो दूसरों के लिए भी प्रेरणा का काम करेगा। यह पुस्तक एक नई सोच के साथ जीने की ललक जगाती है।
यह पुस्तक हमें भावनात्मक रूप से भी लेखक से जोड़ती है। जिस तरह सुधीर मोता कैंसर से जूझते अपने परिवार की व्यथा बताते हैं, हमें भी वे अपने साथ उस सफ़र का साथी बना लेते हैं। पाठक को ऐसा लगता है जैसे सब सामने चल रहा है। उसे ऐसा भी लगता है कि वह ज्योति जी से बात करे तथा परिवार से मिले। ऐसा कम लिखा जाता है जो अपना-सा लगे, ऐसा कुछ जिसमें पाठक इस तरह तल्लीन हो जाये। लेखक ने अपनी बात को दुनिया के सामने रखकर उस भावनात्मक पहलू को जगाया है जो ज़िन्दगी को ज़िन्दगी से जोड़ता है। उन्होंने प्रेरणा दी है कि हौंसला और विश्वास हमें बिखरने से बचाता है, तथा मुश्किल घड़ी में मजबूत भी बनाता है।
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‘उसका कैंसर, मेरा कैंसर'
(Cancer Weds Cancer)
लेखक : सुधीर मोता
प्रकाशक : मंजुल प्रकाशन
पृष्ठ : 138
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‘उसका कैंसर, मेरा कैंसर'
(Cancer Weds Cancer)
लेखक : सुधीर मोता
प्रकाशक : मंजुल प्रकाशन
पृष्ठ : 138
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