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यह लघु उपन्यास अलग माहौल में ले जाता है जहां भावनाओं के रहस्य खुलते चले जाते हैं. |
‘जब वेदनाएं दबाना मुश्किल हो जाए, तो आंसू सबसे पहले निकलते हैं लेकिन जब वह सूख जाते हैं, तो किसी लत के भेष में बीच चौराहे पर नौटंकी करने लगते हैं।’
जिंदगी की सच्चाई छिपी हुई नहीं रहती और वह बाहर भी आ जाती है। जिंदगी के कुछ हिस्से हमसे हर बार कुछ न कुछ सवाल करते हैं। उनका उत्तर तलाशते हुए हम इधर-उधर दौड़ते फिरते हैं। खुद को समझना मुश्किल है, समाज के हिस्से हम हैं और जिंदगी की परतें बेहिसाब हैं। यह किताब ऐसे तामाम विचारों को सामने रखने का अनूठा प्रयास है जो हमारे आसपास तो हैं, मगर उनकी तह तक जाने की कोशिश कम ही की जाती है। दिलचस्प कहानी और पात्रों से सजा यह लघु उपन्यास अलग माहौल में ले जाता है जहां भावनाओं के रहस्य खुलते चले जाते हैं।
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अभिलेख द्विवेदी का उपन्यास 'चार अधूरी बातें' अपनी तरह का अलग उपन्यास है. |
अभिलेख द्विवेदी का लिखा ‘चार अधूरी बातें’ युवा पीढ़ी के अंर्तद्वंद और पारिवारिक रिश्तों की आधुनिक पहचान के बीच घिसटती जिंदगी पर पठनीय लघु उपन्यास है। रश्मि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक में एक अलग तरह की लेखन शैली का प्रयोग किया गया है, जिसमें स्त्री और पुरुष के बीच प्राकृतिक, सामाजिक तथा नैतिक संबंधों को लेकर जहां गहन चर्चा है। वहीं इससे हमारे प्राचीन संयुक्त परिवारों की जीवन-शैली के विपरीत आधुनिक जीवन जीने की युवा परिपाटी से उत्पन्न संबंधों एक सरल, सटीक तथा पठनीय लेकिन अलग तरह की शैली का प्रयोग करते हुए जीवंत व्याख्या का प्रयास किया है।
उपन्यास में चार युवा महिलाओं के जीवन के एक-दूसरे से अलग रस-रंग और अपनी अलग-अलग समस्याएं हैं। जिनके समाधान के लिए वे एक मनोचिकित्सक के पास जाती हैं। जहां काउंसलिंग के दौरान मनोचिकित्सक के सामने भी नई समस्याएं पैदा हो जाती हैं जिसकी निराशा अंत तक उसके साथ बनी रहती है।
‘बातों में कुछ बातें किसी मेले की तरह होती हैं, जहां हर बात के अपने मायने होते हैं और बातों में किस बात पर कहां मौन आ जाएगा, यह किसी को भी पता नहीं होता, लेकिन उस मौन की मौजूदगी यह जता देती है कि इस मेले में कुछ खास भी मिलेगा।’
वास्तव में लेखक ने इस उपन्यास के कथानक को एक अलग तरह का रचनात्मक रुप दिया है। इसमें एक पात्र देर तक शेर और शायरी में वार्तालाप जारी रखता है। लगभग चारों पात्रों की कहानी एक एकांकी की तरह समाप्त होती है तथा कहानी कला की तरह अंत में पाठक के लिए एक जिज्ञासा छोड़ जाती है जिस पर प्रत्येक पाठक अपने हिसाब से कल्पना कर चारों अधूरी बातों को पूरा समझने में उलझ जाता है। कुल मिलाकर नए तरह का यह लघु उपन्यास आजकल की पढ़ी लिखी पीढ़ी के अंतर्द्वंद की अभिव्यक्ति है।
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‘चार अधूरी बातें'
लेखक : अभिलेख द्विवेदी
प्रकाशक : रश्मि प्रकाशन
पृष्ठ : 92
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‘चार अधूरी बातें'
लेखक : अभिलेख द्विवेदी
प्रकाशक : रश्मि प्रकाशन
पृष्ठ : 92
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