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‘कॉल सेंटर’ 29 कहानियों का संग्रह है. |
चंचल शर्मा और दिलीप पाण्डेय ने कहानियों में नए रंग भरे हैं, जिनके कारण रोचकता, उत्सुकता और जिंदगी की सच्चाई बयान होती है। खट्टा, मीठा, रसीला सब कुछ है यहां। इन कहानियों की सबसे अच्छी बात यह कि इन्हें जिंदगी को महसूस कर लिखा गया है। इसलिए पाठक भी महसूस कर पढ़ता है।
‘कॉल सेंटर’ कहानी संग्रह को दिलीप पांडे और चंचल शर्मा ने लिखा है। राजकमल प्रकाशन के उपक्रम राधाकृष्ण पेपरबैक्स ने इसका प्रकाशन किया है। शुऐब शाहिद ने सुन्दर आवरण तैयार किया है जो पुस्तक के शीर्षक के साथ सटीक है।
इन कहानियों में हर वह स्वाद है जो आज का पाठक पढ़ने की इच्छा रखता है। सुख-दुख, हंसी-खुशी, उतार-चढ़ाव, अमीर-गरीब, बच्चे-बूढ़े, आदि। कहानियां छोटी हैं ताकि भारीपन महसूस न हो और पढ़ते हुए ताज़गी बनी रहे। ये कहानियां आपकी बोली बोलती हैं और समाज को एक आईना भी दिखाती हैं। कहना सही है कि हर कहानी में अपनी बात है। हर कहानी की अपनी जिम्मेदारी है जो पाठक को उसके आसपास के संसार से रुबरु करा रही है।
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‘कॉल सेंटर’ : नये रंगों की नयी कहानियां जो समाज को आईना दिखाती हैं. |
‘‘दिलीप पाण्डेय और चंचल शर्मा की कहानियां हिन्दी कहानियों में कुछ नए ढंग का हस्तक्षेप करती हैं। इस संग्रह की ज्यादातर कहानियां दो-ढाई पेज से ज्यादा की नहीं हैं और सबका अपना प्रभाव है। कई कहानियां तो इतने नए अनुभव लिए हुए हैं कि वे हिन्दी कहानी में दुलर्भ हैं।
आप ‘टेढ़े-मेढ़े रास्ते’ पढ़िए। आपको लगेगा कि आप एक नए महाभारत से जूझ रहे हैं जहां से स्त्री-स्वाभिमान की एक नई दुनिया खुलती है। पारंपरिक स्त्री-विमर्श से अलग यहां एक नए तरह का स्त्री-विमर्श है। चौसर पर यहां भी स्त्री है लेकिन अबकी स्त्री अपनी देह का फैसला खुद करती है। इसी के उलट ‘कॉल सेंटर’ स्त्री स्वाधीनता के दुरुपयोग की अनोखी कथा है जो बहुत सीधे-सपाट लहजे में लिखी गयी है। इस संग्रह की विशेषता यह है कि यहां कहानियों में विविधता बहुत है। यहां आप अल्ट्रा-मार्ड समाज की विसंगतियों की कथा पाएंगे तो बिल्कुल निचले तबके के अनोखे अनुभव भी, जो बिना यथार्थ अनुभव के संभव नहीं हैं। जैसे एक कहानी है -‘कच्चे-पक्के आशियाने’। यह कहानी गरीबी रेखा से नीचे जीने वाले बच्चों की कहानी है जहां एक लड़की सिर्फ जीने के लिए अपनी देह का सौदा करती है। इसका अंत तो अद्भुत है जब देह बेचने वाली लड़की उस पर आरोप लगाने वाले संभ्रांत मेहता से उनकी पत्नि के सामने कहती है कि मेहता साहब, आपके पांच सौ रुपये मुझ पर बाकी हैं, आपकी बीवी को दे दूंगी। कहानी यहां संभ्रांत समाज के पाखंड पर एक करारा तमाचा बन जाती है।
कुल मिलाकर ये कहानियां इसलिए भी पढ़ी जानी चाहिएं कि इन्होंने हिन्दी कथा को कुछ नए और अनूठे अनुभव दिए हैं।’
पहली कहानी ‘सिर की छत’ आपको भावुकता के सागर में भिगो देती है। यहां लोग बिछुड़ते जाते हैं, और कहानी आगे बढ़ती रहती है। लालो कहती है,‘इस जीवन में जीते जी हम दोनों इतनी बार मर लिए हैं, तुम मरने की बात करते हो?’ इस कहानी का अंत लालो की संसार से विदाई के साथ हो जाता है। ‘खाट से उतरकर लालो दरवाजा पार न कर सकी। उसकी देह मुर्दा-सी दरवाजे पर गिरी पड़ी थी।’ यह पढ़कर किसी के भी मुख से ‘ओह!’ निकल सकता है। कहानी सरल शब्दों में लिखी गयी है और शुरु से आखिर तक आपको बांधे रख सकती है।
जो भी कहानी आप पढ़ेंगे, कुछ नया पढ़ने को मिलेगा। आप अगली कहानी के लिए भी उत्सुक होंगे। सोचेंगे कि उसमें क्या रोचक होगा? कई प्रश्न भी बीच-बीच में आपके मन में उतरते-गिरते रहेंगे। आप उनका उत्तर भी कहानी में खोजते रहेंगे और आप हर कहानी के बाद एक संतुष्टि का एहसास करेंगे।
कहानियां वही शानदार होती हैं जो खत्म होने पर पाठक को सोचने पर मजबूर कर दें। इस पुस्तक में यही हुआ है। हर कहानी का अपना अलग रस है, अलग विचार हैं और सबसे अच्छी बात कि जीवन के विभिन्न रंगों में रंगी ये कहानियां उत्साह जगाती है, नयी सोच विकसित करती हैं।
यहां भाषा को कठिन या वाक्यों को इस तरह नहीं रचा गया कि बोझिल लगे। इस पुस्तक की कहानियां पढ़कर समाज के कई पहलुओं का पता चलता है। उन रास्तों का भी ज्ञान होता जहां खालीपन है, सड़ांध है और अंधेरा है। चंचल शर्मा और दिलीप पाण्डेय ने अपनी कहानियों से जीवन के स्याह और उजले पहलुओं का बखान करते हुए पाठकों को एक खास पुस्तक दी है।
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‘कॉल सेंटर'
दिलीप पाण्डेय और चंचल शर्मा
प्रकाशक: राधाकृष्ण पेपरबैक्स (राजकमल प्रकाशन)
पृष्ठ: 160
‘कॉल सेंटर'
दिलीप पाण्डेय और चंचल शर्मा
प्रकाशक: राधाकृष्ण पेपरबैक्स (राजकमल प्रकाशन)
पृष्ठ: 160
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