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अंग्रेजी हुकूमत के समय भारत ऐसे अंधकार में डूबा हुआ था जिससे निकलना आसान नहीं था. |
‘मुगल शासकों की समाप्ति के बाद फैली अव्यवस्था के बीच ईस्ट इंडिया कंपनी ने देश का नियंत्रण संभाला, उस समय विश्व जीडीपी में भारत की 23 प्रतिशत हिस्सेदारी थी। ब्रिटिश शासक जब छोड़ कर गये तो वह 3 प्रतिशत से कुछ ही अधिक थी।’
लेखक शशि थरुर की किताब के ये वाक्य ही काफी हैं यह बताने के लिए कि ब्रिटिश राज ने भारत का किस तरह पतन किया। अंग्रेज़ों ने जितना दिया उससे कहीं अधिक भारत की धरती से लिया। एक तरह से उन्होंने भारत को खोखला कर दिया था। शशि थरुर ने लिखा है कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने ब्रिटिश सरकार के सहयोग से लूट-खसोट, कपट, व्यापक भ्रष्टाचार के साथ-साथ हिंसा एवं बेहतरीन बलों की सहायता से शासन किया। यह पुस्तक हमें ब्रिटिश शासन का काला इतिहास बताती है।
‘अंधकार काल : भारत में ब्रिटिश साम्राज्य’ जानेमाने स्तंभकार और राजनीतिज्ञ शशि थरुर ने लिखी है। वाणी प्रकाशन ने इसे प्रकाशित किया है। यह किताब ‘An Era of Darkness: The British Empire in India’ का हिन्दी अनुवाद है। अनुवाद नीरु ने किया है और हिंदी अनुवाद का सम्पादन युगांक धीर के द्वारा किया गया है।
जब कोहरा हो तो सब धुंधला नजर आता है। जब अँधेरा हो जाए तो वह धुंधलापन अंधकार बन जाता है। अंग्रेजी हुकूमत के समय भारत ऐसे अंधकार में डूबा हुआ था जिससे निकलना आसान नहीं था। ऐसा माहौल बनता जा रहा था कि भारत दयनीय हो चला था।
‘ब्रिटिश शासन के भूलचूक के कार्यों से 35 मिलियन भारतीय अकालों, महामारियों, साम्प्रदायिक दंगों एवं 1857 में स्वतंत्रता की लड़ाई के बाद प्रतिशोधपूर्ण हत्याओं एवं 1919 में अमृतसर के जनसंहार जैसे बड़े स्तर पर किये गये कत्लेआम में मृत्यु का ग्रास बन गये। भारतीयों की मृत्यु के अलावा ब्रिटिश शासन ने भारत को वर्णनातीत ढंग से दरिद्र बना दिया।’
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शशि थरूर की पुस्तक अंधकार काल (वाणी प्रकाशन). |
‘लेखक शशि थरुर ने सटीकता, प्रामाणिक शोध एवं अपनी चिर-परिचित वाक्पटुता से यह उजागर किया है कि ब्रिटिश शासन भारत के लिए कितना विनाशकारी था। उपनिवेशकों द्वारा भारत के अनेक प्रकार से किये गये शोषण जिनमें राष्ट्रीय संसाधनों के ब्रिटेन पहुंचने से लेकर भारतीय कपना उद्योग, इस्पात निर्माण व नौवहन उद्योग और कृषि का नकारात्मक रुपान्तरण शामिल है, पर प्रकाश डालने के अतिरिक्त वे साम्राज्य के पश्चिमी व भारतीय समर्थकों के ब्रिटिश शासन के प्रजातंत्र एवं राजनीतिक स्वतंत्रता, कानून व्यवस्था और रेलवे के तथाकथित लाभों के तर्कों को भी निरस्त करते हैं। अंग्रेजी भाषा, चाय और क्रिकेट के कुछ निर्विवादित लाभ वास्तव में कभी भी भारतीयों के लिए नहीं थे अपितु उन्हें औपनिवेशकों के हितों के लिए लाया गया था। भावपूर्ण तर्कों के साथ शानदार ढंग से वर्णित यह पुस्तक भारतीय इतिहास के एक सर्वाधिक विवादास्पद काल के संबंध में अनेक मिथ्या धारणाओं को सही करने में सहायता करेगी।’
शशि थरुर ने इतिहास को हमारे सामने फिर से जीवित कर दिया है। उन्होंने युवाओं के लिए उसे समझने का एक शानदार जरिया उपलब्ध कराया है। हम कई ऐसे तथ्यों को नकार नहीं सकते जिनके विषय में हमारे पास भ्रमित जानकारियां थीं या अन्य कारण रहे हों।गुलामी की जंजीरों में जकड़े होने की वजह से देशवासी अंदर ही अंदर उबल रहे थे। इस वजह से विद्रोह होते रहे, लेकिन उन्हें दबाया जाता रहा। हम अपनी आंखों के सामने अपने देश को लुटता हुआ देख रहे थे। यह बेहद दुख की बात है।
लेखक शशि थरुर ने भारत में चाय उद्योग के विषय में विस्तार से चर्चा की है। ब्रिटिश शासकों ने कृषि जासूसी की खोज की और चीन में एक सीक्रेट एजेण्ट को भेजा जिसने ब्रिटिश भारत में वहां से चारी की चाय की हज़ारों किस्में भेजीं। हालांकि उनमें से अधिकतर समाप्त हो गयीं, लेकिन संयोग से फिर कुछ हैरान करने वाली घटना हुई।
एक घुमन्तू ब्रिटिश व्यक्ति ने चाय की एक भारतीय किस्म को आसाम में जंगली पौधे के रुप में उगा पाया। उसने इसे उबलते पानी में डाला और उसका स्वाद चखकर देखा तो उसने पाया कि उसे सोना मिल गया था; उसने चाय बना ली थी।
पुस्तक में लेखक ने कई पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की है जो इसे इतिहास की अन्य पुस्तकों से अलग बनाता है। इसकी खासियत यह भी है कि थरुर ने रोचक भाषा शैली से अपनी बात रखी है। उत्सकुता जगाती यह पुस्तक हर किसी के पढ़ने के लिए है।
किताब में ईस्ट इंडिया के कारनामों की कहानी को स्पष्टता से समझाया गया है। लेखक ने उदाहरण दिये हैं जिससे साबित हो रहा है कि वह अंधकार-काल ही था। राजनीतिक और आर्थिक तौर पर भारत को क्षति पहुंचायी गयी। हम भूखे मर रहे थे। देश अकाल से जूझ रहा था। भारत में अंतिम बड़ा अकाल ब्रिटिश शासन के समय पड़ा। 1770 से 1900 के मध्य तकरीबन ढाई करोड़ भारतीयों की अकाल से मौत हुई। इनमें डेढ़ करोड़ लोग उन्नीसवीं सदी के दूसरे भाग में पांच अकालों के दौरान मौत का शिकार हुए।
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यह किताब ‘An Era of Darkness: The British Empire in India’ का हिन्दी अनुवाद है. (Aleph Book Company) |
लेखक लिखते हैं कि ब्रिटिश साम्राज्य की आय बढ़ रही थी और भारत कर्जदार होता जा रहा था। हमारी आधी आमदनी बाहर मुख्यतः इंग्लैण्ड चली जाती। उसपर पर्दा डालने के लिए आंकड़ों से हेरफेर की जाती थी। ब्रिटिश राज को विस्तार देने के लिए भारत से भारी संख्या में सैनिक भेजे गये। उन्हें विश्व युद्ध में भी लड़ाया गया। इसमें जहां अंग्रेजों ने अपना फायदा सोचा वहीं भारतीयों को उसका कुछ खास हासिल नहीं हुआ। थरुर ने लिखा है कि ‘बांटो और राज करो’ की नीति के तहत भारतीय राजाओं के बीच विभाजन को उकसाकर उन्हें अपने अधीन कर लिया गया। हर वह हथकंडा अपनाया गया जिससे ब्रिटिश शासकों के हाथ में राज मजबूती से बना रहे। उन्हें इसकी फ्रिक बिलकुल नहीं थी कि जिस देश पर उनका शासन है वहां के लोगों पर क्या गुजर रही है? उनके हालात कैसे हैं? यानि वह सब हो रहा था जिसकी उम्मीद कभी की नहीं गयी थी।
यह किताब हमें सोचने पर मजबूर करती है कि इतिहास की उन घटनाओं को जिनसे हम जुड़े हैं। यह हमें भावनात्मक तौर पर उस समय से भी सहज ही जोड़ती है जब भारतीय असहयनीय पीढ़ा सहन कर रहे थे। कुछ घटनाओं का विस्तारपूर्ण वर्णन पढ़ने के बाद मन में आक्रोश उत्पन्न हो सकता है।
शशि थरुर ने कई तरह के आंकड़ों को इस पुस्तक में प्रस्तुत किया है। उन्होंने इतिहास का बारीकी से अध्ययन करने के बाद यह बेहतरीन पुस्तक तैयार की है जिसे इतिहास का एक शानदार दस्तावेज कहा जा सकता है।
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‘अंधकार काल: भारत में ब्रिटिश साम्राज्य'
लेखक : शशि थरुर
अनुवाद : नीरू
हिंदी अनुवाद संपादन : युगांक धीर
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
पृष्ठ : 380
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‘अंधकार काल: भारत में ब्रिटिश साम्राज्य'
लेखक : शशि थरुर
अनुवाद : नीरू
हिंदी अनुवाद संपादन : युगांक धीर
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
पृष्ठ : 380
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