आज के आईने में राष्ट्रवाद : आधुनिक परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रवाद पर स्वस्थ बहस

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यह किताब संकीर्ण राष्ट्रवाद के कारण देश में पनप रहे नफरत और हिंसा से मुकाबिल एक रचनात्मक प्रतिशोध है.

विचार कभी मरा नहीं करते। विचार हर बार नयी बहस को जन्म देते हैं। संकीर्ण विचारधाराओं को धराशायी करने के लिए देशहित के विचार सींचे जाते हैं ताकि प्रगति की राह आसान हो सके। यह पुस्तक प्रगतिशील सोच को विस्तार देती है और कुंठित मानसिकताओं को धराशायी करने वाले विचारों का स्वागत करती है।

‘आज के आईने में राष्ट्रवाद’ रविकांत द्वारा सम्पादित पुस्तक में जेएनयू के विद्वान प्रोफेसरों तथा सामाजिक सरोकारों से जुड़े बुद्धिजीवियों के पन्द्रह लेखों का संग्रह है। किताब को राजकमल प्रकाशन ने प्रकाशित किया है।

फरवरी 2016 की घटना को जेएनयू से जुड़ा बुद्धिजीवी तथा राष्ट्रवादी तबका दक्षिणपंथी सत्तातंत्र और उसके समर्थक मीडिया को साम्यवादी विचारधारा पर बड़ा हमला मानता है। सम्पादक रविकान्त के मुताबिक जेएनयू भारत में मानविकी और समाज विज्ञान का सबसे प्रतिष्ठित संस्थान है। यह एक संस्था नहीं बल्कि एक संस्कृति का नाम है।

यह पुस्तक देश के सत्तातंत्र और उसके वैचारिक पथप्रदर्शक आरएसएस के संकीर्ण राष्ट्रवाद के कारण देश में पनप रहे नफरत और हिंसा से मुकाबिल एक रचनात्मक प्रतिशोध है। इसमें अनिल सदगोपाल, अनुराग मोदी, अपूर्वानन्द, अशोक वाजपेयी, आनन्द कुमार, गोपाल प्रधान, तनिका सरकार, निवेदिता मेनन, पी. साईंनाथ, प्रभात पटनायक, पुरुषोत्तम अग्रवाल, ब्रदी नारायण, योगेन्द्र यादव, वीर भारत तलवार, सतीश देशपांडे जैसे बुद्धिजीवियों के राष्ट्रवाद पर बहुमूल्य विचार हैं।

अनुराग मोदी ने कहा है कि ये लड़ाई बहुत लंबी है। यदि हम नतीजों की उम्मीद करेंगे तो निराश हो सकते हैं। उन्होंने सत्ता को बड़ी ताकत बताते हुए कहा कि सत्ता कभी सीधे सामने नहीं आती। उसके बहुत सारे एजेंट होते हैं। यदि सरकार वर्टिकल जाती है तो हमें हॉरिजॉन्टल जाना पड़ेगा। उन्होंने कई अहम सवाल उठाये हैं।

अपूर्वानन्द कहते हैं:‘गांधी जो कर रहे थे वह एक जटिल और मुश्किल प्रयोग था। इसे जनता को समझना मुश्किल था। उसी जनता के लिए हिंसा को समझना आसान है, देशभक्ति को समझना आसान है। देशभक्ति एक सरल भावना है। क्या हम सरल भावना का पालन करना चाहते हैं या एक जटिल भावना की तरफ बढ़ना चाहते हैं। विश्वविद्यालयों का काम सरलता से जटिलता की ओर बढ़ना है।’

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आज के आईने में राष्ट्रवाद (राजकमल प्रकाशन).
अनिल सदगोपाल देशप्रेम के विषय में कहते हैं:‘हमारे देशप्रेम की परिभाषा में देश के मेहनतकश आवाम से प्रेम, देश की धार्मिक, नस्लीय, भाषायी, लैंगिक, भौगोलिक और रहन-सहन, खान-पान व रीति-रिवाज़ों की विविधता के प्रति सम्मान और देश की सम्पदा व प्राकृतिक संसाधनों पर हो रहे कॉर्पोरेट पूंजी के हमलों का प्रतिरोध शामिल है।’

यह बात सच है कि छात्रों की आवाज इन दिनों मुखर हो रही है। इसे अशोक वाजपेयी भी मानते हैं कि युवा छात्र साहस से बोल रहे हैं और उनकी आवाज बहुत ध्यान से सुनी जा रही है। ऐसा पहले नहीं हुआ।

पुरुषोत्तम अग्रवाल ने बहुत महत्वपूर्ण बात कही कि विचारधारा विशेष के लोगों के पास स्वस्थ और समावेशी सेंस ऑफ़ ह्यूमर तक नहीं होता, बल्कि उन्हें तकलीफ होती है सेंस ऑफ़ ह्यूमर से।

योगेन्द्र यादव ने राष्ट्रवाद की चुनौतियों पर चर्चा के साथ उसका मतलब समझाया है। वे कहते हैं कि हमारे देश में राष्ट्रवाद केवल नकारात्मक चीज़ों का प्रतीक नहीं है। हमारे देश में नेशन या राष्ट्र एक यूनिटी का प्रतीक है। जिसे हम आज भारत कहते हैं, उसका निर्माण, एक तरह से उसका आविष्कार, उसकी खोज हमारी राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान हुई है।

यह पुस्तक हमारे विचारों को उन्नत करते हुए उन्हें विस्तार देती है। ऐसा लगता है कि आज के समय में राष्ट्रवाद को समझना बेहद जरुरी हो गया है। उसपर बहस तेज हो रही है। यह केवल विचाराधाराओं के टकराव के कारण नहीं पनपा बल्कि इसके पीछे कई ऐसे सवाल हैं जिनका उत्तर इस किताब में खोजा जा सकता है।

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आज के आईने में राष्ट्रवाद'
सम्पादक : रविकान्त
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
पृष्ठ : 192
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