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रश्मि बंसल की पुस्तक 'छू लो आसमान' का कवर. |
रश्मि बंसल की यह पुस्तक महिलाओं की प्रेरणादायक कहानियों से सजी हुई है. इसमें कोई शक नहीं कि उनकी कलम हर किसी को प्रभावित करती है. यह किताब कोरबा से लेकर कश्मीर तक की साहसी और आत्मविश्वास से भरी महिलाओं को एक सलाम है. हरेक की जीत में एक बड़ी कहानी छिपी है -बिंदासपन की, बड़े बदलाव की.
यह किताब रश्मि बंसल द्वारा अंग्रेजी में लिखी किताब ‘Touch the Sky’ का हिंदी अनुवाद है और अनुवाद उर्मिला गुप्ता ने किया है.
लेखिका : रश्मि बंसल
अनुवाद : उर्मिला गुप्ता
प्रकाशक : वैस्टलैंड/यात्रा
पृष्ठ : 149
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'Have a Safe Journey' का हिंदी अनुवाद है 'शुभ यात्रा'. |
शुभ यात्रा भारत में प्रकाशित होने वाला संभवतः कहानियों का ऐसा पहला संग्रह है जो सड़क-सुरक्षा पर केंद्रित है. सड़क दुर्घटनाओं पर प्रकाशित साहित्य आमतौर पर शैक्षणिक अध्ययन या तकनीकी रिपोर्ट और कभी-कभार बाल-कथाओं के रूप में ही मिलता है. इस बहुत ही गंभीर और प्रासंगिक विषय को कहानियों के माध्यम से प्रस्तुत करने का यह अपनी तरह का पहला प्रयास है, जिसमें कुछ जाने-माने और कुछ उदीयमान लेखकों की कहानियाँ शामिल की गयी हैं. इन कहानियों की शैली एक दूसरे से काफ़ी अलग है. कुछ में असहाय पीड़ितों की बदकिस्मती भरा रुदन सुनाई देता है तो कुछ में सख़्त नैतिकता का संदेश निहित है. कुछ में उन दुर्घटनाओं का भयावह चित्रण है जिन्हें लेखकों ने देखा या कल्पना की. कुछ कहानियों में आशा और नेकी की भी झलक मिलती है. इन कहानियों का मकसद भयभीत करना नहीं, बल्कि पाठकों को झकझोरना और सड़क सुरक्षा के प्रति जागरूक करना है. इसकी हर कहानी पाठकों पर प्रभाव छोड़ेगी और उन्हें सोचने तथा अमल करने के लिए भी प्रेरित करेगी.
प्रकाशक : मंजुल प्रकाशन
पृष्ठ : 236
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'न बैरी न कोई बेगाना' सुरेन्द्र मोहन पाठक की जीवनी है. |
सुरेन्द्र मोहन पाठक की जीवनी है यह किताब जिसमें उनके जीवन के अनछुए पहलुओं को करीब से जानने का मौका मिलेगा. हम यह भी जानेंगे कि विभाजन के समय उनका परिवार दिल्ली किन हालात में रहा. क्यों रिफ्यूजी कैम्प में उन्हें रहना पड़ा? उनका बचपन और किशोरावस्था किस तरह गुज़री? ऐसे तमाम सवाल हमें उनकी इस पुस्तक में पढ़ने को मिलेंगे.
अभी तक हम उनके आपराधिक कहानियों से रचे-बसे संसार को पढ़ते आये हैं. पहली बार उनकी खुद की कहानी एक किताब की शक्ल में वैस्टलैंड ने प्रकाशित की है. तीन भागों में आने वाली आत्मकथा का पहला हिस्सा तैयार है.
लेखक : सुरेद्र मोहन पाठक
प्रकाशक : वैस्टलैंड
पृष्ठ : 412
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शशि थरूर की पुस्तक 'अंधकार काल' का आवरण. |
इस पुस्तक में डॉ. शशि थरूर ने लिखा कि उपनिवेश शासन की वजह से भारत की अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचा है. इसका प्रमाण है कि जिस दौरान ब्रिटेन में औद्योगीकरण की लहर चल रही थी, उसी दौरान भारत में उद्योगों को खत्म करने की मुहिम चलाई जा रही थी. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना के एक-तिहाई फौजी भारतीय थे. इनमें से 54,000 ने युद्ध में अपनी जान गंवाई थी। भारत ने टैक्स, हथियार और कपड़ों के रूप में इस युद्ध में मदद की थी. यही हाल दूसरे विश्व युद्ध के समय भी था. इस समय (1945) ब्रिटेन पर 3 बिलियन पाउंड का कर्ज था, जिसमें से 1.25 बिलियन को भारत के नाम कर दिया गया था. ब्रिटिश इंडिया में भूख की वजह से मरने वालों की संख्या भी काफी ज्यादा थी. पूरे ब्रिटिश काल में भारत में भूख से 29 मिलियन लोगों की मौत हुई थी. 1940 में यदि तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री विन्स्टन चर्चिल ने खाद्य आपूर्ति को यूरो न भेजा होता तो बंगाल में लाखों लोगों की मौत न होती.
लेखक : डॉ. शशि थरूर
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
पृष्ठ : 380
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गीताश्री की पुस्तक 'लेडीज़ सर्कल' का कवर. |
‘लेडीज़ सर्कल’ वह बेबाक परिसर है जहाँ कोई परदेदारी नहीं होती. जहाँ सबकुछ खुला है। किसी भी शहरी खुलेपन को मात देती स्त्रियाँ सेक्सुआलिटी के मामले में कितनी वाचाल होती हैं. उनकी जमात में बैठने का मौका न मिलता तो कहाँ जान पाती कि कस्बाई औरतें अपनी तकलीफ़ों को कैसे हँसी में उड़ा कर खुद ही मज़े ले सकती हैं. उनकी दुनिया में ‘नो’ का मतलब ‘नो’ नहीं होता है.
हमारे देश में यथार्थ तेज़ी से बदल रहा है. जो आज है, कल नहीं है. हम ऐसे अनिश्चित दौर में कहानी लिख रहे हैं जब पल-पल दुनिया बदल रही है. अपने समय के बदलते यथार्थ से जूझते हुए कहानी लिखना बहुत आसान नहीं है. ये मात्र मनोरंजक कथाएँ नहीं हैं, यथार्थ को आभासीय सत्य के सहारे, उसमें जोड़-तोड़ करते हुए हमारे समय के सच को सामने ला रही हैं.
लेखिका : गीताश्री
प्रकाशक : राजपाल एंड सन्ज
पृष्ठ : 144
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