प्यार की कोई उम्र नहीं होती। प्यार का वक्त कोई नहीं होता। प्यार सीमाओं को नहीं मानता। प्यार कभी भी, कहीं भी हो सकता है। यह सच है कि प्यार महसूस किया जाता है और जिसे महसूस न किया जाये वह प्यार नहीं हो सकता। लेखक रविंदर सिंह ने प्रेम कहानियों को अपनी तरह से रचा है। उन्होंने पाठकों को इस कदर प्रभावित किया है कि वे प्यार की बात करने वाले शीर्ष उपन्यासकारों में आज गिने जाते हैं। उनकी प्रेम कहानियां उलझी हुई नहीं होतीं बल्कि सरल भाषा और शानदार घटनाओं के साथ घुलकर पन्नों पर तैरती हैं।
सवि शर्मा की बात करें तो उनके लेखन में प्रेम की परिभाषा थोड़ी ठहरकर चलती है. वे शब्दों में समय का सम्मान करती हैं. प्रेम है, लेकिन एक अलग कायदे के साथ उम्र लेखन को, उसके अनुभवों को शब्दों से जोड़ती है. चेतन भगत की प्रेम कहानियां विश्वास के साथ मथकर, जागरूकता के साथ पिरोई जाती है. वहां तकनीक का चमत्कार है. रविंदर सिंह का केस अलग है. वे प्रेम के बीज बोते हुए चलते हैं. कायदे का प्रेम, एक-एक कदम फूंक-फूंक कर रखने वाले शब्दों की ताकत जो उन्हें अलग पहचान देती है.
‘ये प्यार क्यों लगता है सही’ रविंदर सिंह की अंग्रेजी में लिखी पुस्तक प्रकाशित ‘This love that feels right’ का हिन्दी अनुवाद है। मंजुल प्रकाशन ने हिन्दी में प्रकाशित किया है। प्रभात रंजन ने खूबसूरती से इस पुस्तक का अनुवाद किया है। उन्होंने भाषा को सरल, सजीव और प्रभावपूर्ण बनाये रखा है।
‘मेरा नाम नैना सिंघानिया है। मेरी उम्र 25 साल है और मैं शादीशुदा हूं।मेरी ज़िन्दगी में, शादी पहले हुई और प्यार बाद में हुआ। मुश्किल बस एक थी - मुझे जिस आदमी से प्यार हुआ था वह मेरा पति नहीं था। यह मेरी कहानी है...’
इन पंक्तियों को पढ़कर किसी के भी मन में जिज्ञासा पनप सकती है। उम्र 25 साल है और वैवाहिक है। शादी पहले और प्यार बाद में। सबसे हैरान करने वाली बात यह कि जिससे कहानी की मुख्य किरदार को प्यार हुआ वह उसका पति नहीं कोई ओर था। वह एक जिम ट्रेनर था जिससे उसकी मुलाकात भी काफी रोचक घटनाओं के बाद हुई।
नैना की ज़िन्दगी ठीक-ठाक चल रही है। अचानक उसे समय बीतने के लिए जिम जाने की इच्छा होती है। उसकी मुलाकात टीवी एंकर मानविका से होती है। बस यहीं से उसकी ज़िन्दगी में ट्विस्ट आ जाता है।
‘काश प्यार सोच-समझ कर किया जा सकता, या फिर कभी किसी को प्यार होता ही नहीं -तो ज़िंदगी कितनी आसान होती!
‘मुझे कभी प्यार-व्यार नहीं होगा.’ वह अपने आप से कहती रहती. पर अंदर ही अंदर, किसी भी और लड़की की तरह, वह भी चाहती थी कि कोई उसे प्यार करे. ज़िन्दगी की वास्तविकता से उसने आखिर समझौता कर ही लिया था कि अचानक एक दिन बिन बताए, बिन बुलाए उसका प्यार उसके सामने आ खड़ा हुआ!’
‘प्यार की फितरत ही ऐसी है - वह किसी से इज़ाजत नहीं लेता और ऐसे ही बिन बुलाए, बिना किसी आहट के ज़िन्दगी में आ धमकता है. प्यार से रुबरु होने पर उसने खुद से पूछा,‘क्या यही मेरा प्यार है? क्या यही प्यार मेरे लिए सही है?’ इस सवाल का कोई आसान जवाब नहीं है... न कभी था और न कभी होगा।
यह मर्मस्पर्शी प्रेम-कथा रिश्तों के बारे में आपकी हर धारणा को झकझोर कर रख देगी।’
यह पुस्तक उन लोगों की ज़िन्दगी में झांक रही है जिनके पास पैसा है, शोहरत है लेकिन सच्चे प्यार की तलाश है। उनकी शादी एक तरह का समझौता है; दो दिलों का मिलन नहीं।
‘पति और पत्नि दो सामाजिक प्राणी होते हैं, जो साथ रहने के लिए एक होते हैं.... यह कि विवाह एक दूसरे के जीवन को साझा करने का एक वादा है, एक दूसरे को काबू में करने का नहीं.’
मानविका का किरदार बीच-बीच में आता रहता है। उसके जरिये लेखक ने मुख्य पात्र नैना को परंपराओं को तोड़ने या यों कहें निजि ज़िन्दगी की हद लांघने की कोशिश करने को उकसाने का जिम्मा सौंपा है। रविंदर सिंह इसमें कामयाब भी हुए हैं।
नैना को यदि मानविका न मिलती तो कहानी कुछ और होती। शायद जिम ट्रेनर आरव की उस तरह नैना की ज़िन्दगी में दस्तक न हुई होती। उपन्यास को इस तरह बुना गया है ताकि पात्रों के विचारों में उथलपुथल रहे। पाठक भी गंभीरता से जैसा लेखक चाहता है, उसी के साथ नये सफर पर चल पड़ता है। यह कशमकश हमें नये माहौल से मिलाती है जो शानदार तरीके से रचा गया है। बंधनों को तोड़ने की बात नहीं हो रही, बल्कि दिल की बात हो रही है।
गिने-चुने पात्रों का होना भी कहानी को बोरियत से बचा रहा है। प्रेम एक नये अंदाज़ में बह रहा है। प्रेम सोच-समझकर किया जा रहा है। चीज़ें एकदम से नहीं बदल रहीं, सब धीरे-धीरे घट रहा है। प्रेम के छीटें मामूली नहीं हैं, उनका असर हुआ है।
किताब के अंत में लेखक ने कई सवाल छोड़े हैं जिनका उत्तर पाठक को तलाश करना है। क्या ऐसा प्यार सही है?
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'‘ये प्यार क्यों लगता है सही’’
लेखक : रविंदर सिंह
अनुवाद : प्रभात रंजन
प्रकाशक : मंजुल प्रकाशन/पेंगुइन रैंडम हाउस
पृष्ठ : 246
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