जनवरी की सर्दी अभी बाकी है. किताबों का सीज़न कभी ख़त्म नहीं होता. यह साल किताबों के लिए खास रहने वाला है. कुछ ऐसी किताबें सामने आयेंगी जो इतिहास बना सकती हैं, और कुछ ऐसी भी जो ऐसे विषय पर होंगी जिसकी चर्चा भी नहीं की जाती है. लेखकों और प्रकाशकों के पास वह सब है जिसकी पाठक चाह रखता है.
नज़र डालते हैं कुछ नई किताबों पर...
गुप्त भारत की ख़ोज
इस पुस्तक का विषय रोचक है और रहस्य से भरा हुआ. पॉल ब्रन्टन की किताब 'गुप्त भारत की खोज' आध्यात्मिक यात्रा-वृत्तांत की एक महान कालजयी रचना है. विवरण प्रस्तुत करने की अपनी अद्भुत क्षमता और अपने उदार दृष्टिकोण के संयोग से भारत की यात्रा का अनूठा वर्णन किया है. वे योगियों, सन्यासियों और गुरुओं के बीच रहकर एक ऐसे व्यक्ति की खोज करते रहे हैं, जो उन्हें आत्म-ज्ञान से मिलने वाली शांति प्रदान कर सके. उनकी यह जीवंत खोज, तमिलनाडु में स्थित अरुणाचल पर्वत पर श्री रमण महर्षि के पास समाप्त होती है.
लेखक : पॉल ब्रन्टन
अनुवाद : आशुतोष गर्ग
प्रकाशक : मंजुल प्रकाशन
पृष्ठ : 192
लाइक ए लव सॉन्ग
युवा लेखिका निकिता सिंह की कहानियां खूबसूरती से बुनी हुई होती हैं. वे प्यार की भाषा को अपने अंदाज़ में कहती हैं. उनकी मखमली सादगी भरी प्रेमपूर्ण यात्राएं शब्दों के साथ पन्नों पर तैरती हैं, जो उनके प्रशंसकों के दिल में उतर जाती हैं. 'लाइक ए लव सॉन्ग' कहानी है माही की जो चार साल पहले दिल टूट जाने पर प्यार से मुँह फ़ेर लेती है और खुद को ज़िन्दगी में व्यस्त कर लेती है, लेकिन एक दिन उसका अतीत उसके सामने आ खड़ा होता है. नये सिरे से संजोई ज़िन्दगी में उथल-पुथल मच जाती है. माही का दिल कुछ कहता है लेकिन दिमाग कुछ. अजीब कशमकश में उलझी माही क्या फैसला करती है, पढ़िये इस बेहद दिलचस्प उपन्यास में.
लेखिका : निकिता सिंह
प्रकाशक : राजपाल एंड सन्ज़
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मदारीपुर जंक्शन
इस पुस्तक की चर्चा खूब हो रही है. मजेदार कहानी को किस तरह लेखक बालेन्दु द्विवेदी ने संजोया है, यह भी तारीफ के काबिल है. यदि बहुत दिनों से कुछ अच्छा नहीं पढ़ा तो मदारीपुर के जंक्शन पर जाना बनता है. मदारीपुर गाँव उत्तर प्रदेश के नक्शे में ढूँढें तो यह शायद आपको कहीं नहीं मिलेगा, लेकिन निश्चित रूप से यह गोरखपुर जिले के ब्रह्मपुर नाम के गाँव के आस-पास के हजारों-लाखों गाँवों से ली गई विश्वसनीय छवियों से बना एक बड़ा गाँव है जो भूगोल से गायब होकर उपन्यास में समा गया है.
लेखक : बालेन्दु द्विवेदी
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
पृष्ठ : 284
लेखक : बालेन्दु द्विवेदी
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
पृष्ठ : 284
जब नील का दाग़ मिटा : चम्पारण 1917
यह पुस्तक को पढ़कर अच्छी और रोचक जानकारी मिल सकती है. कुछ ऐसा जिसका पाठकों को पता नहीं था या कम ही ज्ञान था. सन् 1917 का चम्पारण सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में महात्मा गांधी के अवतरण की अनन्य प्रस्तावना है, जिसका दिलचस्प वृत्तान्त यह पुस्तक प्रस्तुत करती है। सत्य और अहिंसा पर आधारित सत्याग्रह का प्रयोग गांधी हालाँकि दक्षिण अफ्रीका में ही कर चुके थे, लेकिन भारत में इसका पहला प्रयोग उन्होंने चम्पारण में ही किया. इसमें हमें अनेक ऐसे लोगों के चेहरे दिखलाई पड़ते हैं, जिनका शायद ही कोई जिक्र करता है, लेकिन जो सम्पूर्ण अर्थों में स्वतंत्रता सेनानी थे. इसका एक रोचक पक्ष उन किम्वदन्तियों और दावों का तथ्यपरक विश्लेषण है, जो चम्पारण सत्याग्रह के विभिन्न सेनानियों की भूमिका पर गुजरते वक्त के साथ जमी धूल के कारण पैदा हुए हैं. सीधी-सादी भाषा में लिखी गई इस पुस्तक में किस्सागोई की सी सहजता से बातें रखी गई हैं, लेकिन लेखक ने हर जगह तथ्यपरकता का खयाल रखा है.
लेखक : पुष्यमित्र
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
पृष्ठ : 152
लेखक : पुष्यमित्र
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
पृष्ठ : 152
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