शब्दों से ज़िन्दगी की बातें कहना उतना आसान नहीं होता। शब्द उम्मीदों के साथ जुड़कर चलते हैं। कविता तैरे और लय में रहे उसके लिए शब्दों का तानाबाना इस तरह से रचना पड़ता है कि बिखराव न आये और भटकाव की गुंजाइश न के बराबर हो।
स्वानंद किरकिरे फिल्मों में गीत लिखते हैं। वे गायक, अभिनेता, संवाद लेखक, संगीत-निर्देशक भी हैं। ‘आपकमाई’ उनका पहला कविता संग्रह है। इस पुस्तक को राजकमल प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। कविता संग्रह में स्वानंद किरकिरे के दिल की बातों के किस्से बिखरे हैं और उनके विचारों ने शब्दों के माध्यम से एक अलग दुनिया को कागज़ पर साकार कर दिया है।
कवि मन चंचल होता है। वह एक जगह नहीं ठहरता। वह दुनियादारी की बातें अपने तरीके से करता है। कवि वास्तविकता को अपने शब्दों से लयबद्ध करने का प्रयास करता है। उसके लिए कविता ज़िन्दगी का साज़ है।
पुस्तक की भूमिका में स्वानंद किरकिरे लिखते हैं : ‘शब्द, लय, संगीत मुझे विरासत में मिले हैं। ये मेरी बापकमाई हैं। पर मेरे जो विचार हैं वो मेरी ‘आपकमाई’ हैं।’
पहली कविता ‘रे मीता’ में किरकिरे बचपन की अल्हड़ मस्ती का मुआयना कर रहे हैं, देखें :
‘रे मीता, चल भागें, चल दौड़ें...
एक गली ना छोड़ें
कच्ची अमिया तोड़ें
चाहे रोकें लोग निगोड़े
रे मीता, ग़म की बांह मरोड़ें
रे मीता, चल भागें, चल दौड़ें।’
‘आपकमाई’ में उनकी वो कविताएं भी पढ़ने को मिलेंगी जो बाद में फिल्मों के मशहूर गीत बनीं। फिल्म ‘पीके’ के गीत ‘चार कदम, बस चार कदम’ पर ‘बिन बोले’ कविता की पंक्तियां :
‘बिन बोले, बिन कहे-सुने
बस हाथों में हाथ धरे
चार कद़म, बस चार क़दम
इक सांझ चलोगे साथ मेरे!’
स्वानंद किरकिरे ने कविताओं में देश, समाज, व्यवहार, धर्म, विचार, आदि की बात की है। उनका अंदाज़ गंभीर है, लेकिन चुटीलापन पाठकों को रोचक वातावरण उपलब्ध कराने में अहम भूमिका निभाता है। ये पंक्तियां देखें:
‘वक्त नहीं सोना-वोना, बनियों-सी ना बात करो
वक्त तो हैं जागीर मुफ्त की, नाहक बरबाद करो!
मन तो गधा है, थेथर है, इसे क्या समझा के मारो,
खेत बाप का, घास चचे की, जब जहां करे दिल, चरो।’
कविता पर स्वानंद साहब लिखते हैं:
‘ज़ेहन के ऊंचे पहाड़ों से
भड़भड़ा के वो निकलती है
बेबाक उछलती फिसलती है
ख़ुद ख़ुद से नहीं संभलती है
कविता तो ऐसे चलती है।’
ज़िंदगी के जुगाड़ पर स्वानंद किरकिरे लिखते हैं :
‘सांसें महंगी पड़ जाएंगी, क्या पीएंगी क्या खाएंगी
खुद का जरा भी कुछ ख्याल है?
बता ज़िन्दगी क्या जुगाड़ है?’
‘शब्द’ नामक कविता में कवि ने शब्दों की ‘बैसाखी’ और ‘फरेबी’ बताया है लेकिन कविता की शुरुआत शब्दों से होती है, इसकी चर्चा की है। ‘शब्द’ कविता को बार-बार पढ़ने का मन करता है।
चाहें नेपाल भूकंप के बाद लिखी कविता हो या रोहित वेमूला का पत्र पढ़ने के बाद भावनाएं शब्दों में ढल गयी हों, स्वानंद किरकिरे ने मन की कश्ती से विचरण करते हुए उन्हें पन्नों पर लिख दिया। उन्होंने भावों को बोरियत से परे रखा। पाठक स्वानंद किरकिरे को पढ़कर मुस्करायेगा, विचार करेगा, खुद से सवाल करेगा और अंत में एक संतुष्टि का एहसास करेगा।
ये कविताएं आपकी बोली बोलती हैं। हमें ज़िन्दगी की हवाओं के असर से वाकिफ कराती हैं। स्वानंद किरकिरे का पहला कविता-संग्रह एक बार जरुर पढ़ना चाहिए।
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'आपकमाई’
स्वानंद किरकिरे
(सार्थक) राजकमल प्रकाशन
पृष्ठ : 112
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