भाग मिल्खा, भाग : हौंसले और विश्वास की दौड़ जो प्रेरणा से भरी है

मिल्खा सिंह ने कुछ भी छिपाने या बनावटी बनाने की कोशिश नहीं की. जो जैसा था और है, उसे बस लिख दिया.

मिल्खा सिंह का जीवन संघर्ष और प्रेरणाओं से भरा है। उन्होंने जिंदगी की कड़वी सच्चाईयों को बेहद करीब से देखा है और विभाजन का दंश भी झेला है। उनका परिवार उनकी आंखों के सामने मार दिया गया था। अपने गांव से उजड़ने के बाद नयी जिंदगी शुरु करना और दुनिया को अपना दम दिखा देना मिल्खा को महान बनाता है। उन्हें हम ‘उड़न सिख’ के नाम से भी जानते हैं।

‘भाग मिल्खा भाग’ कहानी है मिल्खा सिंह की, उनके संघर्षों की और उनसे मुकाबला करते आगे बढ़ते बच्चे से एक सैनिक बनने की। मिल्खा सिंह ने इस पुस्तक को सोनिया संवाल्का के सहयोग से लिखा है। इसका अनुवाद वीणा शर्मा ने अंग्रेजी से हिन्दी में किया है। पुस्तक की भूमिका मशहूर फिल्म निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने लिखी है। मिल्खा सिंह के पुत्र और जानेमाने गोल्फ खिलाड़ी जीव मिल्खा सिंह ने भी अपने पिता के बारे में विचार व्यक्त किये हैं। प्रभात प्रकाशन ने ‘भाग मिल्खा भाग’ को प्रकाशित किया है।

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इस पुस्तक को 20 अध्याय में बांटा गया है। पहले अध्याय में मिल्खा सिंह ने अपने बचपन और परिवार की चर्चा की है। ‘अविभाजित भारत में जीवन’ नामक अध्याय में वे लिखते हैं कि पढ़ाई में उनका बिल्कुल मन नहीं लगता था। वे तो सिर्फ छुट्टी होने का इंतजार करते थे। उनके भाई मक्खन सिंह घर भागकर सेना में भर्ती हो गये थे।

‘भाग मिल्खा, भाग’ शीर्षक से दूसरे अध्याय में मिल्खा सिंह ने उस त्रासदी की चर्चा की है जिसने उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी। वे लिखते हैं:‘मैंने पिताजी को वीरता के साथ लड़ते हुए देखा। उसके बाद मैंने देखा कि वे नीचे गिर गये। वे घुड़सवार हत्यारे के घोड़े के पैरों के नीचे बुरी तरह फंस गए थे। पिताजी जैसे ही गिरे, वे चिल्लाए,‘‘भाग मिल्खा, भाग।’’ वह नज़ारा देखकर मैं पत्थर की भांति चेतना-शून्य हो गया था और बड़ी मुश्किल से वहां से हिल पाया था। जबतक नरसंहार जारी रहा, मुझे ऐसा लगा जैसे मैंने अपने गांव के गुरुद्वारे से अपनी मां के रोने की आवाज सुनी, जहां पर उन्होंने शरण ली हुई थी। सबकुछ आग की लपटों में जल गया था। उसके बहुत देर के बाद मुझे पता चला कि मेरे परिवार के बाकी लोगों के साथ उस रात क्या हुआ।’

मिल्खा सिंह के साथ दिल दहला देने वाले हादसे हुए। किताब पढ़कर हम खुद को भावुक होने से रोक नहीं पाते। वे दौड़ते रहे, पहले अपनी जान बचाने को पाकिस्तान में, फिर दिल्ली में चोरी करने के बाद बचने को। वे सेना के सिपाही के तौर पर भी दौड़े क्योंकि जीतने वाले को दूध का एक गिलास अतिरिक्त मिलना था। फिर वे दौड़े मैडल के लिए और देश का सम्मान और लोगों का दिल जीतने के लिए। दुनिया के नामी धावकों में उन्हें गिना जाता है और फ्लाइंग सिख कहा जाता है।

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यह सच्ची दास्तान तेजी से पढ़ी जाने वाली किताब है। यह पुस्तक आपको रुलाती है, हंसाती है, जिज्ञासू बनाती है, सम्मान जगाती है, देशभक्ति से परिचय कराती है और सोचने पर मजबूर करती है कि जिंदगी कितनी भी हो, कैसे भी हालात रहें, हौंसले और विश्वास की दौड़ कभी थमती नहीं, हर बार अच्छे परिणाम लाती है।

‘भाग मिल्खा, भाग’ इंसानी मस्तिष्क की ताकत को भी साबित करती है। एक एथलीट के जुनून को परिभाषित करती है। बताती है उस जस्बे को और उस सपने को जिसे पूरा करना हर किसी के बस की बात नहीं। कुछ ही विरले होते हैं जो जिंदगी की जंग में आग से खेलते हुए दौड़ लगाते हैं और जीत पाते हैं।

बहुत ही सरल शब्दों में मिल्खा सिंह ने दिल की बात कही है। उन्होंने कुछ भी छिपाने या बनावटी बनाने की कोशिश नहीं की। जो जैसा था और है, उसे बस लिख दिया।

मिल्खा सिंह पहले भारतीय थे जिन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण जीता था। वे लिखते हैं,‘‘मेरी जीत ने भारत को दुनिया के खेल मानचित्र में एक महत्वपूर्ण स्थान पर स्थापित कर दिया।’

पाकिस्तान में जीत मिल्खा सिंह की ऐतिहासिक जीत थी। वे लिखते हैं,‘दौड़ के बाद जब मैं अपनी जीत का ऐलान करते हुए स्टेडियम में दौड़ रहा था तो लाउडस्पीकर पर घोषणा की गयी-‘‘आपके सामने जो धावक दौड़ रहा है, वह मिल्खा सिंह है। यह दौड़ता नहीं, उड़ता है! इसकी जीत को पाकिस्तानी खेल के इतिहास में दर्ज किया जाएगा और हम ‘फ्लाइंग सिख’ के उपनाम को इसे प्रदान करते हैं।’’ वे जनरल अयूब खान थे, जिन्होंने मुझे ‘फ्लाइंग सिख’ उपनाम दिया। जब मैं महिला दीर्घा से होते हुए गुजरा तो महिलाओं ने अपने मुंह से बुरका हटा दिया, जिससे कि वे मुझे पास से देख सकें। यह एक ऐसी घटना थी, जिसे पाकिस्तानी प्रेस में व्यापक तौर पर स्थान दिया गया।’

मिल्खा सिंह ने बेबाकी से लिखा है कि जीवन में दो ही ऐसी घटनाएं हैं जो मुझे आज भी डराती हैं -‘विभाजन के दौरान मेरे परिवार का कत्ल और रोम में मेरी हार.’

रोम ओलंपिक में वे पदक से सेकंड के बहुत छोटे हिस्से से चूक गये थे। हालांकि उन्होंने 45.6 सेकंड का नया रिकार्ड बनाया था और चौथे स्थान पर रहे। तीसरे स्थान वाला खिलाड़ी 45.5 सेकंड में रेस पूरी कर चुका था। मिल्खा सिंह मानते हैं कि उन्होंने हाथ आती जीत को अपने निर्णय से छिटक दिया। पुस्तक में ‘बहुत नजदीक, फिर भी बहुत दूर’ अध्याय दिया हुआ है जिसमें मिल्खा हर चीज पर विस्तार से चर्चा करते हैं।

1964 में मिल्खा सिंह ने खिलाड़ी के तौर पर अपना करियर पूरा किया। सन्यास के साथ उन्होंने घोषणा भी की कि जो भी खिलाड़ी ओलंपिक खेलों में उनके 45.6 सेकंड के रिकॉर्ड को तोड़ेगा उसे वे दो लाख रुपये का ईनाम देंगे। अभी तक ऐसा नहीं हुआ है। लेकिन उनका कहना है कि यह ईनाम उनके जाने के बाद उनके बेटे जीव मिल्खा द्वारा दिया जायेगा।

मिल्खा सिंह की यह किताब जरुरी किताबों की सूची में रखी जानी चाहिए। इसे हर किसी को पढ़ना चाहिए और जानना चाहिए कि संघर्ष और हौंसला क्या कर सकता है।

मिल्खा सिंह पर बनी फिल्म आपने देखी हो या नहीं, मगर उनकी यह जीवनी आपको जोश से भर देगी। उनकी यात्रा में शामिल होकर इस महान व्यक्तित्व को और सम्मान दिया जा सकता है।

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'भाग मिल्खा, भाग
लेखक : मिल्खा सिंह
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन
पृष्ठ : 152
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