ज़िन्दगी के खट्टे-मीठे अनुभवों को रोचकता से बताने वाली खूबसूरत कहानियां

पुस्तक समाज के उलझे रेशों, भ्रष्टाचार, रिश्ते-नाते, आदि पर पाठक को अलग तरह से सोचने पर विवश करती है.

भोपाल में प्रधान आयकर आयुक्त के पद पर सेवारत आर.के. पालीवाल सृजनात्मक लेखन में सिद्धहस्त हैं। उपन्यास, कहानी तथा कविता लेखन में सफलता हासिल कर हाल ही में ‘शंभूनाथ का तिलिस्म एवं अन्य कहानियां’ नामक उनका कहानी संग्रह मंजुल पब्लिशिंग हाउस द्वारा प्रकाशित किया गया है। इसमें कुल 15 कहानियां हैं जिनमें मानव जीवन तथा आधुनिक समाज से जुड़े विभिन्न मसले, कार्यव्यवहार, मावनीय संवेदनायें तथा कई खट्टे-मीठे लेकिन मौलिक अनुभवों को बहुत ही जीवंत शैली में लिखा गया है। ये कहानियां एक दूसरे से बिल्कुल अलग विषय पर लिखी गयी हैं तथा अनूठापन लिए हैं।

पुस्तक की पहली कहानी पढ़ने के बाद आप लेखक आर.के. पालीवाल की लेखन कला में हर पल पैदा होने वाली सादगी के मुरीद हो सकते हैं। सरल शब्द, कोई लागलपेट नहीं और शालीनता के साथ अपनी बात कह देते हैं। तसल्ली से पढ़ी जाने वाली यह पुस्तक पाठक को हर कहानी के बाद संतुष्टी का एहसास कराती है। आप मुस्कान से और खुली आंखों से दुनिया देखने की कोशिश करते हैं या पहले से बेहतर स्वयं को पाते हैं। हर कहानी अपना वजन रखती है।

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इन कहानियों में लेखक ने सरकारी महकमे में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर किया है. नौकरशाही की विद्रूपताओं को उकेरा है. गरीबी से जूझने का जज़्बा दिखाया है. आधुनिक युवा दिलों में पनपने वाली मुहब्बत और नफ़रत को बख़ूबी बयां किया है. वृद्धों की उपेक्षा का मार्मिक चित्रण किया है. कुदरत के नज़ारों का मनोहारी खाका खींचा है. शिक्षा के महत्व को रेखांकित किया है. धन की लिप्सा और उसके उपयोग पर सार्थक बहस छेड़ने की कोशिश की है. साथ ही नशे और वासना के जाल में फंसकर होने वाले अनैतिक कृत्यों का बेबाकी के साथ खुलासा किया है तथा समाज में प्रचलित अंधविश्वासों पर भी चोट की है.
इस संग्रह की कहानियां ज़िन्दगी के खुरदरे यथार्थ और कल्पनाशीलता की उड़ान के इर्द-गिर्द घूमती हैं. ये आपके दिल को स्पर्श करती हैं, कहीं हंसाती-गुदगुदाती हैं, मानवीय संवेदना व करुणा से ओतप्रोत कर देती हैं और अंत में आपको ऐसे मोड़ पर छोड़ देती हैं, जहां आप गंभीरता से सोचने को विवश हो जाते हैं.

किताब का शीर्षक ‘शंभूनाथ का तिलिस्म एवं अन्य कहानियां’ रोचक है। यह उत्सुकता जगाता है। पाठक शायद शीर्षक पढ़कर अलग-अलग कल्पनाएं करने लगता है। ऐसा भी लग सकता है कहानियां चमत्कार या तिलिस्मी दुनिया से संबंध रखती हैं। मगर जब आप पुस्तक को पढ़ना शुरु करते हैं तो सभी सवालों के जबाव मिलने लगते हैं। समाज के कई अनजान रहस्यों से पर्दा उठने लगता है, जानी-पहचानी बातें नये सिरे से उजागर होने लगती हैं।

‘शंभूनाथ का तिलिस्म’ पुस्तक की लंबी कहानी है जिसे पढ़कर आनंद आता है। कहानी का अंश देखें: ‘कोई साफ नहीं बता सकता है कि शंभूनाथ आखिर कितने पानी में है। अपने किन गुणों से वह चार साल से प्राधिकरण के मुखिया की दुधारु कुर्सी से चिपका हुआ है? कैसे उसने एक साथ विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और पत्रकारिता जगत के चार महान स्तंभों को साथ रखा है?’

"एक दिन में हम कितनी बार मूड बदलते हैं? कभी हँसने खिलखिलाने का मन करता है, तो किसी पल दुनिया में आग लगाने का तो किसी क्षण ख़ुद को ही समाप्त करने का आत्मघाती ख्याल घर कर जाता है दिमाग में."
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लेखक ने उम्रदराज़ों की व्यथा भी लिखी है। उन्होंने एक वृद्ध का जिक्र किया है जिनके अपने पराये की तरह पेश आ रहे हैं और उनके मित्र उनका हालचाल जानने को बेचैन हैं। सामाजिक तानेबाने में रिश्तों की उलझनों को सरलता से लेखक ने दिखाया है। यह बताने की कोशिश की है कि ज़िन्दगी उसी तरह चलती है; बुढ़ापा उसी तरह बेबस और उदास है। अपनापन दिल से किया जाता है, और रिश्ते कई बार स्वार्थ पर टिके होते हैं।

पायल की कहानी समाज की मजबूरियों और परिस्थितियों का सच्चा चित्रण है। दुविधा का संसार जहां ज़िंदगी कुलांचे नहीं मार सकती, यदि वह ऐसा करती है तो एक अनचाहा बोझ और भारीपन इंसान पर हावी होता है। कहानी के पात्र आपसी उलझन में हैं। वे उनसे पार पाना चाहते हैं। ऐसा क्यों हुआ कि एक लड़की को भयानक दलदल में धंसना पड़ा? ऐसा क्यों हुआ कि दो सहेलियों को बिछड़ना पड़ा?

अंधविश्वास पर लेखक आर.के. पालीवाल ने करारी चोट की है। ‘सुबह का सपना’ कहानी में उन्होंने रमन्ना के माध्यम से समाज पर प्रहार किया है। पुस्तक की यह आखिरी कहानी भी है। शंकर उससे कहता है -‘रमन्ना तू भी अंधविश्वास की भेंट चढ़ गया रे।’

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‘शंभूनाथ का तिलिस्म एवं अन्य कहानियां’ :
🔵 ज़िन्दगी में कभी-कभार ऐसे पल आते हैं जब यथार्थ इतने नाटकीय अंदाज़ में ज़ाहिर होता है कि उसपर विश्वास करना मुश्किल होता है. (बारिश की छतरी)
🔵 आदमी जल्दबाज़ी करता है और औरत ठोक-बजाकर ही किसी निर्णय पर पहुंचती है. (ताक-झाँक)
🔵 दोस्त! कभी-कभी हमारी एक बड़ी ग़लती पूरी उम्र तबाह कर देती है. (अपने पराये)
🔵 विपत्ति के समय दिमाग में एक से एक बुरे और व्यर्थ के डर उपजते हैं. चेतना को पाला मार जाता है. (भगवान! पायल को बचाना है)
🔵 बड़े खानदान के लोग भी डाउन टू अर्थ होते हैं. छोटे लोगों की तरह हल्दी की गांठ मिलने पर पंसारी नहीं बनते. (शम्भूनाथ का तिलिस्म)

‘उसका चेहरा’, ‘सीली राख’, ‘बारिश की छतरी’, ‘मुआवज़ा’, ‘अचानक एक दिन’ सहित सभी कहानियां पुस्तक को बेजोड़ बनाती हैं। कहानियां लिखने की सुलझी हुई कला से हमारा परिचय कराती हैं। किताब समाज के उलझे रेशों, तिकड़मबाजी, भ्रष्टाचार, रिश्ते-नाते, आदि पर पाठक को अलग तरह से सोचने पर विवश करती है। थोड़ा मंथन, फिर अगली कहानी और उसपर भी चर्चा करने को प्रेरित करती ये कहानियां शानदार और वास्तविक हैं। ये ज़िन्दगी के खट्टे-मीठे अनुभवों को रोचकता से बताने वाली खूबसूरत कहानियां हैं।

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आर.के. पालीवाल अपनी कृतियों से हिंदी को समृद्ध बनाने में पिछले तीन दशक से योगदान दे रहे हैं तथा आपकी कृतियों को विभिन्न पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका है.
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‘शंभूनाथ का तिलिस्म एवं अन्य कहानियां’
लेखक : आर.के. पालीवाल
प्रकाशक : मंजुल प्रकाशन
पृष्ठ : 172
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