सचिन तेंदुलकर ने क्रिकेट को जिया है। उनके लिए यह केवल खेल नहीं, बल्कि जुनून है। खेल के साथ ज़िंदगी और ज़िंदगी के साथ खेल -दोनों चीज़ें जुड़ी हैं। खेल को ज़िंदगी मानकर सचिन तेंदुलकर ने इतिहास रचे, पुराने रिकाॅर्ड तोड़े, अपने रिकाॅर्ड स्थापित किए। यह महान क्रिकेटर की खूबी है। उनकी आत्मकथा उनसे हमारा वास्तविक परिचय कराती है। उनकी ज़िंदगी के वे हिस्से जो हमने कभी नहीं सुने, यह किताब हमें उस वक्त से मिलाती है। हम उन्हें बचपन से जानना शुरु कर देते हैं। उनकी मजेदार शरारतों पर मुस्कराते हैं। वे नटखट हो सकते हैं, वे गलत नहीं हो सकते। हम उनके साथ क्रिकेट के सफ़र पर निकल पड़ते हैं। उनकी खेलती दुनिया, उनकी ज़िंदगी के लम्हे अब हमारे भी हैं। बार-बार उनके जीवन के रंगों को उत्साह के साथ पढ़ना अच्छा लगता है। यह पुस्तक जितनी उनके फैंस के लिए है, उतनी हर किसी के लिए है। उनकी यात्रा भारतीयों की यात्रा है। यह नटखट बच्चे से ‘महान’ सचिन बनने की शानदार कहानी है।
‘सचिन तेंदुलकर: मेरी आत्मकथा’ अंग्रेज़ी में लिखी पुस्तक ‘Sachin Tendulkar : Playing it my Way, My Autobiography’ का हिन्दी अनुवाद है। पुस्तक को सचिन तेंदुलकर ने बोरिया मजूमदार के साथ मिलकर लिखा है। अनुवादक डाॅ. सुधीर दीक्षित हैं। मंजुल प्रकाशन ने हैशे इंडिया के सहयोग से इस पुस्तक को प्रकाशित किया है।
‘16 साल की उम्र में पहले टेस्ट से लेकर उनके 100वें अंतर्राष्ट्रीय शतक तक और उस भावनात्मक अंतिम विदाई तक, जिसने देश को थाम सा दिया था।’
‘जब मुंबई के एक शरारती बच्चे की अतिरिक्त ऊर्जा को क्रिकेट की ओर मोड़ा गया, तो परिणाम स्कूल बल्लेबाज़ी के रिकाॅर्डतोड़ कीर्तिमान के रुप में सामने आए, जिससे एक ऐतिहासिक क्रिकेट करियर शुरु हुआ। जल्द ही सचिन तेंदुलकर भारतीय बल्लेबाज़ी की बुनियाद बन गए और क्रिकेट को समर्पित देश के दीवाने लोग उनके खेल को गौर से देखने लगे।’
‘किसी क्रिकेटर से कभी इतनी ज्यादा उम्मीदें नहीं की गयीं; किसी क्रिकेटर ने कभी इतने उच्च स्तर पर इतने लंबे समय तक और इतनी बढ़िया शैली में प्रदर्शन नहीं किया -उन्होंने किसी भी दूसरे खिलाड़ी से ज़्यादा रन और शतक बनाए हैं, टैस्ट मैचों में भी और एक दिवसीय मैचों में भी। और शायद केवल एक ही क्रिकेट खिलाड़ी सदमे से ग्रस्त देश को एक सूत्र में ला सकता था, जब उन्होंने मुंबई को थर्राने वाले आतंकवादी हमलों के ठीक बाद टैस्ट शतक लगाया।’
‘भारत के लिए उनकी कई उपलब्धियों में विश्व कप जीतना और विश्व टैस्ट रैंकिंग में भारत को शिखर पर पहुंचाना शामिल था। लेकिन वे कुंठा और असफलता के दौर से भी गुज़रे हैं -चोटों से लेकर विश्व कप से बाहर होने तक, और प्रेस की तीखी आलोचना के शिकार बनने तक, ख़ास तौर पर कप्तान के रुप में उनके दुखद कार्यकाल के दौरान।’
‘उनकी मशहूर शख्सियत के बावजूद, सचिन तेंदुलकर हमेशा बहुत निजि इंसान रहे हैं, अपने परिवार तथा देश के प्रति समर्पित। वे पहली बार अपने व्यक्तिगत जीवन के बारे में विस्तार से रोचक जानकारी दे रहे हैं और एक अनूठे खेल जीवन का सच्चा व सरस वर्णन पेश कर रहे हैं।’

इस पुस्तक में पहली बार सचिन तेंदुलकर के निजि जीवन को करीब से जानने का मौका मिलता है। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि सचिन के करियर में उतार-चढ़ाव नहीं आये। वे भी भयंकर परिस्थितियों से दो-चार हुए हैं। संघर्ष के बिना हीरे नहीं बनते। बाइस गज पर उस समय मानसिक दबाव का बेहतर ढंग से मुकाबला करना और अपना सबसे श्रेष्ठ देना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं। खेल के हर पहलू के मायने हैं। क्रिकेट खेल नहीं यहां धर्म है और सचिन तेंदुलकर को ‘क्रिकेट का भगवान’ यूं ही नहीं कहा जाता।
यह आत्मकथा खेल के अंदर और बाहर के रोचक किस्सों को समेटे हुए है। किसी भी क्रिकेटर से इतनी उम्मीदें नहीं की गयीं जितनीं सचिन से की जाती थीं। उनके मैदान में पहुंचते ही जैसे साथी बल्लेबाज नये उत्साह से भर जाता और वह अपना और बेहतर देने की कोशिश करता। यह सचिन की विशेषता रही है कि वे हर माहौल को अपना बना लेते हैं, दूसरों को प्रेरित करते हैं तथा उनका साथ होना टीम का मनोबल कई गुना बढ़ा देता है।
पुस्तक को 28 अध्याय में इस तरह लिखा गया है कि पाठकों तक सचिन तेंदुलकर जो अपने जीवन के जाने-अनजाने, रोचक, खास पहलू पहुंचाना चाह रहे हैं, पहुंचें।
अंतिम अध्याय में सचिन लिखते हैं: ‘जब मैं अपनी दूसरी पारी शुरु करता हूं, तो मैं ठीक वहीं करुंगा, जो मैंने तब किया था, जब मैं ग्यारह साल का था: हर पल को जियो और आनंद लो। मैं नहीं जानता कि मेरा जीवन कहां जा रहा है, न ही मैं किसी चीज़ की भविष्यवाणी करना चाहता हूं। मैं तो बस चीज़ों को उसी तरह लूंगा, जिस तरह वे आती हैं, जैसा मैंने अपनी पहली पारी खेलते वक्त किया था। लेकिन एक फर्क है। जब मैं जीवन में आगे बढ़ता हूं, तो मैं हमेशा इस संतुष्टि के साथ जिऊंगा कि मैंने अपनी पहली पारी अपने अंदाज़ में खेली और मैं अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ने में कामयाब रहा हूं, जिस पर मैं पलटकर गर्व से देख सकता हूं।’
सचिन तेंदुलकर ने पुस्तक में अपने राज़ खोले हैं जिनसे दुनिया अंजान थी। शर्मीला, सार्वजनिक तौर पर कम बोलने वाला, विवादों से दूर शख्स, बेबाकी से अपने अनछुए पहलुओं की परतों को एक-एक कर खोलता हुआ दिखाई देगा। वे अपने पैर हमेशा से ही जमीन पर रखने के लिए जाने जाते हैं, और इस पुस्तक में भी आपको उनके बारे में बहुत कुछ ऐसा पढ़ने को मिलेगा।
क्रिकेट की दुनिया से परे की दुनिया के विषय में सचिन ने काफी लिखा है। उन्होंने चित्रों को हमसे साझा किया है जिनमें से कई हम पहली बार इस किताब के ज़रिये देखेंगे। उनकी दुनिया में दाखिल होने के लिए हमें कोई खास तैयारी की ज़रुरत नहीं, सिर्फ पन्नों को पलटना है।
बेशक यह किताब हमारे लिए और उस महान क्रिकेटर को फिर से जिंदगी की पिच पर यादों को समेटते हुए पाती है जो हम सबका प्यारा है!
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'सचिन तेंदुलकर: मेरी आत्मकथा’
'सचिन तेंदुलकर: मेरी आत्मकथा’
लेखक : सचिन तेंदुलकर
प्रकाशक : मंजुल प्रकाशन
पृष्ठ : 506
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