सानिया मिर्ज़ा ने सफलता के शिखर को महसूस किया है। उन्होंने खेल को इस तरह जिया है मानो वे खेल के लिए बनी हों और खेल उनकी रगों में दौड़ता हो। यकीनन सानिया के लिए ये सब बातें सही हैं। उनकी आत्मकथा पढ़ने के बाद आप उस खिलाड़ी के बनने की कहानी जान जाते हैं तो कुछ समय के लिए हम रुक कर उन संघर्षों को पुनः स्मरण करते हैं जिन्होंने सानिया को 'सनसनी' बनाया। उस विश्वास के बल पर सानिया आगे बढ़ीं जो उन्होंने खुद से किया क्योंकि वे जान चुकी थीं कि टैनिस उनका जीवन है। जब उन्होंने पहली बार बचपन में रैकेट थामा तो उनका प्रेम शुरु हो गया था।
सानिया मिर्ज़ा की आत्मकथा ‘संघर्ष से मिली सफलता’ उनकी अंग्रेजी पुस्तक ‘Ace Against Odds’ का हिन्दी अनुवाद है। सानिया ने अपने पिता इमरान मिर्जा और शिवानी गुप्ता के साथ इस पुस्तक को लिखा है। पुस्तक का हिन्दी अनुवाद डा. सुधीर दीक्षित ने किया है।
प्रस्तावना विश्व की जानीमानी टैनिस खिलाड़ी मार्टिना हिंगिस ने लिखी है। वे सानिया के साथ जोड़ी बनाकर इतिहास रच चुकी हैं। वे सानिया के बारे में लिखती हैं: ‘मैं ‘अद्भुत’ सानिया का वर्णन करने की कोशिश करना चाहती हूं, जिनका टेनिस मेरे ख्याल से जादूई है, लगभग रहस्मय है। यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि लंबे समय तक वह संसार की सर्वश्रेष्ठ डबल्स खिलाडि़यों में से एक रही हैं। इसी तरह यह भी एक तथ्य है कि इस पृथ्वी की तीन अरब महिलाओं में सबसे अच्छा फोरहैंड उन्हीं के पास है।’
चौदह वर्ष की उम्र में टैनिस जगत के मशहूर नाम महेश भूपति से सानिया मिर्ज़ा की पहली मुलाकात हुई। वे उनके साथ दो ग्रैंड स्लैम खिताब भी जीतने का सौभाग्य प्राप्त कर चुके हैं। किताब की भूमिका में भूपति लिखते हैं: ‘जीवन में खास बनने के लिए इंसान को बहुत सी मुश्किलों और पीड़ा से गुज़रना होता है। सानिया के जीवन में ये काफी रहे हैं, चाहे यह उनके खिलाफ जारी हुआ फतवा हो, उनके ऑपरेशन हों, उनके निजि जीवन की लगातार र्सावजनिक जांच हो या बस चंद लोग हों, जो पूछते हैं कि उन्हें स्कर्ट पहनकर टैनिस खेलने की क्या जरुरत है। उन्होंने हमेशा विपत्ति का सामना उन्हीं सिद्धांतों के सहारे किया है, जिनपर उनके जीवन की बुनियाद टिकी है -एकल मानसिकता की एकाग्रता, आत्मविश्वास और आत्मसम्मान।’
सानिया अपने जीवन के शुरुआती दिनों का खूबसूरती से वर्णन करती हैं। वे बिना झिझक के उन सारी बातों को कड़ी की तरह जोड़कर खुद के बनने की बात बताती हैं। वे अपने परिवार की कहानी बताती हैं। परिवार अमेरिका जाकर बसता है, फिर अगले साल वहां से भारत लौट आता है। लेकिन सानिया का टैनिस से पहला परिचय अमेरिका में ही हुआ था।
एक जगह सानिया लिखती हैं: ‘मम्मी-डैडी बस गुजारे लायक ही कमा पा रहे थे और उन्हें यह बात भी कचोट रही थी कि मेरा जीवन अटका हुआ है।’
किताब में पाठक को सानिया मिर्जा के निजि जीवन की वे सब रोचक जानकारियां मिलेंगी जिन्हें एक आत्मकथा में होना चाहिए। सानिया ने लिखा है कि किस तरह उनके दादा-दादी की असमय मृत्यु के बाद उनके पिता इमरान मिर्जा ने क्रिकेट खेलना बंद कर दिया था। वे एक अच्छे खिलाड़ी थे जो शायद भविष्य में और आगे जा सकते थे। उन्होंने बेटी के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया था।
सानिया अच्छी तैराक हैं लेकिन वे बचपन में रोलर-स्केटिंग भी कर रही थीं। लेकिन एक हादसे के बाद उनका सारा ध्यान टैनिस पर आ गया। किताब में उस हादसे का जिक्र है।
हैदराबाद में प्रिंटिंग प्रेस शुरु करने के बाद मिर्जा परिवार ने बेटी के सपने पूरे करने शुरु कर दिये थे। मां प्रेस का काम संभालतीं तो पिता निर्माण कारोबार में व्यस्त थे, लेकिन सानिया के प्रशिक्षण में कमी नहीं आने दी।
सानिया लिखती हैं: ‘मैंने डैडी से उस उम्र में ही यह सीख लिया था कि खेल हर व्यक्ति की दिनचर्या का अनिवार्य हिस्सा होना चाहिए। उनका मानना था कि अगर सात वर्ष की उम्र में कोई लड़की हार-जीत को संभालना सीख लेती है, तो वह तीस वर्ष की उम्र में जिंदगी की सारी समस्याओं से ज्यादा अच्छी तरह निबट सकेगी -निश्चित रुप से उस लड़की से ज्यादा अच्छी तरह, जिसने कभी कोई खेल नहीं खेला।’
किताब में सानिया मिर्ज़ा ने उस अनुभव को साझा किया है जब वे बेहद खतरनाक स्थिति में फंस गये थे, उनकी जान भी जा सकती थी। ‘अविस्मरणीय अनुभव’ नामक अध्याय में वे कहती हैं कि हमने अपनी कार अंदर से लॉक की और चीखती भीड़ को चीरते हुए निकल गए, जबकि कई लोग हमारा रास्ता रोकने की कोशिश कर रहे थे।’
सानिया की कहानी किसी शानदार सफर की तरह चलती है। कई जगह आप दांत भींच कर पढ़ रहे होते हैं, तो कई जगह चेहरे पर मुस्कान के भाव तैर रहे होते हैं। कुछ जगह आप भावुक भी हो सकते हैं या खुशी से आंखें नम हो सकती हैं।
यह किताब प्रेरणादायक सीखों से भरी पड़ी है। एक जगह सानिया लिखती हैं: ‘खेल में करियर बनाने का निर्णय एक बड़ा दांव है, भावनात्मक दृष्टि से भी और आर्थिक दृष्टि से भी। इसमें जोखिम बहुत ऊंचे होते हैं। जब कोई विद्यार्थी किसी मेडिकल स्कूल में दाखिला लेने के लिए पैसे देती है, तो थोड़ी गारंटी रहती है कि पांच वर्ष बाद वह डॉक्टर बनकर बाहर निकलेगी। जिस पेशे ने मेरा मन मोह लिया था, उसमें ऐसी कोई गारंटी नहीं थी।’
सानिया ने 8 सितंबर 2005 का जिक्र करते हुए लिखा है: ‘उस दिन की घटनाओं ने एक तरह से मेरे जीवन की दशा ही बदल दी। मेरे बारे में संसार की अनुभूति रातोंरात बदल गयी।’ उन्होंने शोहरत के साथ-साथ विवादों का तफसील से जिक्र किया है।
सानिया ने पुस्तक में बताया है कि सफलता की सीढि़यां आसान नहीं होतीं। वे कहती हैं: ‘मैंने शोहरत के बारे में जो सबसे अहम चीज सीखी है, वह यह है कि कई लोगों की मान्यता के विपरीत इससे जीवन आसान नहीं होता है।’
पत्रकार संजय झा के एक लेख का हवाला दिया है, उन्होंने लिखा: ‘मिर्जा व्यक्तित्व संकल्प की एक परी कथा है, यह अंदरुनी साहस की गाथा है, कई अजेय बाधाओं के खिलाफ संघर्ष करने और भारी सफलता हासिल करने की कथा है।’
बरखा दत्त के एक लेख को तो उन्होंने संभाल कर रखा है जिसमें लिखा है: ‘वह(सानिया) भारत को अबतक मिली एकमात्र महिला खेल प्रतीक हैं। और उसपर हमारी विरोधी प्रतिक्रियायें इस बारे में कुछ बताती हैं कि हम उन महिलाओं पर कैसी प्रतिक्रिया करते हैं, जो परंपरा की लीक से हटकर पथप्रदर्शक होती है और अपने असली स्वरुप में रहने से नहीं डरती हैं। यह तो लगभग वैसा ही है, मानो हम एक साथ उनकी प्रशंसा और नफरत करते हैं।’
सानिया ने अपने पति शोएब मलिक का जिक्र तफसील से किया है। उन्होंने निजि जीवन के कई राजों को सार्वजनिक करने की कोशिश की है जिनसे उनका जीवन बहुत हद तक प्रभावित हुआ। पत्रकारों के साथ उनका आमना-सामना और उनके बारे में लिखे गये लेख भी इस आत्मकथा को रोचक बनाते हैं। बेबाक अंदाज में लिखे ये पन्ने हमें पर्दे के पीछे की उन सच्चाईयों से रुबरु कराते हैं जिन्हें जानकर हैरानी होना लाजिमी है।
सानिया मिर्ज़ा किताब के आखिरी पन्ने में कहती हैं: ‘मैंने हमेशा सपना देखने की हिम्मत की, क्योंकि मैं मानती हूं कि सपने ही वह बीज हैं, जो हमें सफलता की ओर ले जाते हैं। सिर्फ सपने देखना ही काफी नहीं होता। आपको बरसों तक कड़ी मेहनत से उस दिशा में काम करना पड़ता है, ताकि आप अंततः ऐसे परिणाम दे सकें, जिनसे फर्क पड़े।’
सानिया मिर्ज़ा की पुस्तक पढ़कर हम यह दावा कर सकते हैं कि संघर्ष से सफलता जरुर मिलती है। इसलिए किताब पढि़ये और सानिया के सफर की दास्तान को करीब से जानिये।
'संघर्ष से मिली सफ़लता’
लेखिका : सानिया मिर्ज़ा
अनुवाद : डॉ. सुधीर दीक्षित
प्रकाशक : मंजुल प्रकाशन/हार्पर कॉलिंस पब्लिशर्स
पृष्ठ : 258
अनुवाद : डॉ. सुधीर दीक्षित
प्रकाशक : मंजुल प्रकाशन/हार्पर कॉलिंस पब्लिशर्स
पृष्ठ : 258
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