इंसान और जानवर के मनोविज्ञान पर यह एक शानदार किताब है। कोरियाई लेखिका सुन-मि ह्वांग ने बड़े ही सरल मगर भावनात्मक लहजे में शब्दों को पिरोया है। उन्होंने रिश्तों की जुगलबंदी को पाठकों के सामने रखते समय हर बारीकी का ख्याल रखा है जिससे कहानी शब्दों की सजीवता के साथ मानो हमारे सामने चल रही हो।
सुन-मि ह्वांग की किताब ‘कुत्ता जिसने सपने देखने की हिम्मत की’ अंग्रेजी की बैस्टसैलर ‘द डॉग हू डेयर्ड टू ड्रीम’(The Dog Who Dared to Dream) का हिन्दी अनुवाद है। प्रगति सक्सेना का अनुवाद बेजोड़ है। यक़ीनन ऐसी किताबों का अनुवाद करने का अपना ही एक आनंद है। वहीं पाठक भी बार-बार किताब को पढ़ना चाहेंगे।
यह कहानी एक बूढ़े व्यक्ति और कुत्तों के बीच उसकी जिंदगी की है। बूढ़े की साइकिल मरम्मत की दुकान है। उसकी पत्नि मछलियां बेचती है। वे कुत्तों को भी बेचकर पैसा कमाते हैं। कहना गलत न होगा कि उनकी आर्थिक स्थिति सही नहीं है। यहां बूढ़ी बिल्ली भी है जिसका पात्र भूला नहीं जा सकता। एक मुर्गी और कुत्तों का व्यापारी भी है। इस कहानी में भावनात्मक पलों की झड़ी लगी हुई है। पढ़ते-पढ़ते जब आप कहानी में डूब जाते हैं तो आपकी आंखें बीच-बीच में नम जरुर हो सकती हैं। शायद यह संसार की उन गिनीचुनी कृतियों में एक है जिससे आप खुद को इतना जोड़ पायेंगे। यह भावनाओं के धागों में बुनी दिलचस्प कहानी है जिसे पढ़ना ज़िंदगी सीखना है।
कहानी की शुरुआत में शब्दों से चित्रण देखिये :‘सभी पिल्ले उन बुढ़ऊ को स्क्रीचर दद्दा पुकारते थे क्योंकि वे बहुत ज्यादा चीखते-चिल्लाते रहते थे। लेकिन इसमें कुछ उन नन्हें पिल्लों की भी गलती थी। वे समूह में घूमते और आसपास की चीज़ों को बर्बाद करते रहते, जूतों को चबा डालते, आंगन में रखे मिट्टी के बर्तनों पर जो ट्रे दादी मां रखतीं उससे खेलते, और ट्रे पर सूखती सभी मछिलयों को खा जाते, तुरई के सूखे टुकड़ों को कुतर जाते।’
लेखिका ने हर हरकत का सही वर्णन किया है। ऐसा लगता है जैसे सुन-मि ह्वांग ने यह कहानी जानवरों के बीच रहकर लिखी है। साथ ही उन्होंने बूढ़े इंसानों के संवाद बहुत सोच-समझकर लिखे हैं। वहीं कुत्तों के संवाद भी बेहद रोचक और मजेदार हैं।
बूढ़ी बिल्ली एक जगह कहती है :
‘छोटे बच्चे बड़े होते हैं और बूढ़े और थक जाते हैं। जब हम सर्दी के मौसम को झेलते हैं तभी हमें समझ आता है कि इसमें क्या छिपा है। सर्दियों में बहुत रहस्य छिपे होते हैं।’
स्क्रैग्ली नामक मादा कुत्ता के संघर्ष, हठ और सूझबूझ की यह कहानी पाठक को रिश्तों की अजीब, मजेदार लेकिन भावपूर्ण दास्तान सुनाती है। समय-समय पर मौतें होती रहती हैं जो खुशी को गम में बदलती रहती हैं।
किताब में लिखा है :
‘उनकी मां ने फिर विलाप किया। चर्च का संगीत धीरे-धीरे पूरे गांव में फैल गया। वह शाम बहुत उदास थी; बेबी को तेंदू के पेड़ के नीचे दफ़ना दिया गया और उसके बाद पास के इलाके में रहने वाला एक शख्स आया और चकत्ते वाले पिल्ले को अपने साथ ले गया।’
‘...कोरी ने दम तोड़ दिया। स्क्रैग्ली उसके थके हुए चेहरे को चाटती रही और उसकी बगल में ही खड़ी थी। दद्दा स्क्रीचर ने कोरी को एक कम्बल से ढंक दिया और कुछ समय के लिए स्क्रैग्ली को उसके साथ अकेला छोड़ दिया।’
‘उसके लिए बूढ़ी बिल्ली हमेशा से एक गुस्सा दिलाने वाली, घिनौनी-सी पड़ोसन थी, एक दोस्त तो कभी नहीं। लेकिन वह उसे लंबे समय से जानती थी।...उसकी आंखें भर आयीं। उसने अपने मुंह में बिल्ली के अब स्थिर और मुलायम शरीर को उठाया और बगल वाले घर की तरफ चल पड़ी। वह जानती थी कि बूढ़ी बिल्ली घर पर ही होना चाहेगी, मौत में भी।’
‘उनकी मां ने फिर विलाप किया। चर्च का संगीत धीरे-धीरे पूरे गांव में फैल गया। वह शाम बहुत उदास थी; बेबी को तेंदू के पेड़ के नीचे दफ़ना दिया गया और उसके बाद पास के इलाके में रहने वाला एक शख्स आया और चकत्ते वाले पिल्ले को अपने साथ ले गया।’
‘...कोरी ने दम तोड़ दिया। स्क्रैग्ली उसके थके हुए चेहरे को चाटती रही और उसकी बगल में ही खड़ी थी। दद्दा स्क्रीचर ने कोरी को एक कम्बल से ढंक दिया और कुछ समय के लिए स्क्रैग्ली को उसके साथ अकेला छोड़ दिया।’
‘उसके लिए बूढ़ी बिल्ली हमेशा से एक गुस्सा दिलाने वाली, घिनौनी-सी पड़ोसन थी, एक दोस्त तो कभी नहीं। लेकिन वह उसे लंबे समय से जानती थी।...उसकी आंखें भर आयीं। उसने अपने मुंह में बिल्ली के अब स्थिर और मुलायम शरीर को उठाया और बगल वाले घर की तरफ चल पड़ी। वह जानती थी कि बूढ़ी बिल्ली घर पर ही होना चाहेगी, मौत में भी।’
यह किताब हमारी जिंदगी को कुछ पलों के लिए सुकून से भी भरती है। कुछ समय के लिए ही सही लेकिन हम किताब पढ़ते समय बूढ़े आदमी और स्क्रैग्ली की दुनिया में पहुंच जाते हैं। बीच-बीच में हम मन ही मन मुस्कराते हैं, हंसते हैं, चौंकते हैं, निशब्द होते हैं, सोच में पड़ जाते हैं, और आंखों में नमीं भी लाते हैं। हर मौत की वजह होती है और लेखिका ने नरम हिस्सों का ऐसा सजीव चित्रण किया है कि दिल भर आता है। यह कहानी अपने में पूर्ण है। यहां इतना कुछ घट रहा होता है कि पाठक उसे पूरी दुनिया मान लेता है। विश्वास और हिम्मत के साथ जो किया जाता है उसका फल मिलता है, मगर जब परिस्थितियां बदल जायें तो कुछ भी हो सकता है। यह कहानी आपको खुद से जीतना सिखाती है। जज़्बातों की कद्र करना सिखाती है। साथ ही जिंदगी के रेशों को जोड़ना भी।
कहानी की शुरुआत जितनी अच्छी है अंत भी उतना ही रोचक :
‘दद्दा स्क्रीचर उसे बुलाते हुए सीढ़यां चढ़ रहे थे। उनके पीछे भागते-दौड़ते उसके पिल्ले आ रहे थे; उसका चित्तियों वाला भाई जो बगीचे में मर गया था और उसका सबसे पहला काला कमज़ोर पिल्ला। स्क्रैग्ली मुस्करायी और छलांग लगा कर उस तरफ दौड़ गयी। जिन पिल्लों को चलने का भी मौका नहीं मिला था वे अब सीढ़ियां चढ़ रहे थे, और उसके बुजुर्ग दोस्त उसे बुला रहे थे।’
सुन-मि ह्वांग कोरिया की बेहद लोकप्रिय लेखिका हैं. उनकी 40 से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. उनकी पुस्तक ‘द हैन हू ड्रीम्ड शी कुड फ्लाई’ (The Hen Who Dreamed She Could Fly) अन्तरराष्ट्रीय बैस्टसैलर है. कोरिया में 10 सालों तक सबसे ज्यादा बिकने वाली पुस्तकों की सूची में बनी रही.
'कुत्ता जिसने सपने देखने की हिम्मत की’
लेखिका : सुन-मि ह्वांग
अनुवाद :प्रगति सक्सेना
अनुवाद :प्रगति सक्सेना
प्रकाशक : राजपाल एंड सन्ज़
पृष्ठ : 160
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