वीरगाथाएं अक्सर अपना प्रभाव छोड़ जाती हैं। रचना बिष्ट रावत की पुस्तकों में भारतीय सैनिकों का पराक्रम, उत्साह और जिंदादिली के नजारे देखने को मिलते हैं। रचना मात्र लेखिका नहीं, बल्कि वे तो इतिहास की जड़ों का भी बारीकी से अध्ययन करती हैं। इसलिए उनकी लिखी हर पुस्तक एक अहम दस्तावेज़ है जिसे 'वीरों की गाथाओं का वास्तविक दस्तावेज़' कहा जा सकता है।
‘1965 भारत-पाक की वीरगाथाएं’ रचना बिष्ट रावत द्वारा अंग्रेजी में लिखी पुस्तक ‘1965 : Stories from the Second Indo-Pak War’ का हिन्दी अनुवाद है। अनुवादक नितिन माथुर हैं।
रचना बिष्ट रावत की नयी पुस्तक -'Shoot, Dive, Fly: Stories of Grit and Adventure from the Indian Army' आ रही है.
पुस्तक में हाजी पीर की लड़ाई, असल उत्तर की लड़ाई, फिल्लौरा की लड़ाई, बर्की की लड़ाई व डोगराई की लड़ाई पर विस्तार से लिखा गया है। उस दौरान हमारे वीर सिपाहियों की सच्ची कहानियों को यहां उकेरा है। उन घातक व दिल दहला देने वाले हमलों का भी जिक्र किया गया है जिन्हें पढ़ने के बाद हमें अपने सैनिकों के अदम्य साहस, सूझबूझ तथा हर परिस्थिति से निपटने की काबिलियत का पता चलता है। साथ ही प्रेरणा मिलती है कि हम भी देश के लिए कुछ ऐसा करें जो आनेवाली पीढि़यां हमें याद रखें और सच्ची देशभक्ति की भावना का परिचय भी मिलता है।
किताब कहती है: ‘भारत व पाकिस्तान के बीच हुए सन् 1965 के ऐतिहासिक युद्ध को पचास वर्ष से अधिक हो गए हैं। यह पुस्तक उस युद्ध के वीरों, हुतात्माओं और उनके पराक्रम की शौर्यगाथा है। 1 सितंबर, 1965 को पाकिस्तान द्वारा जम्मू व कश्मीर के छंब जिले पर हमले में ऐसे युद्ध की शुरुआत हुई, जिसमें बड़े पैमाने पर हथियारों व सैन्य-शक्ति का उपयोग किया गया। यह भारतीय सेना के सैनिकों का साहस व कुर्बानियां ही थीं, जिनके कारण हमने पाकिस्तानी घुसपैठ का समुचित उत्तर देते हुए देश को जबरदस्त सैन्य विजय दिलाई।’
‘सन् 1965 के भारत-पाक युद्ध में भारतीय सेना द्वारा लड़ी गयी पांच प्रमुख लड़ाइयों के ऐतिहासिक तथ्य और एक्शन-प्लान तथा युद्ध में लड़नेवाले सेवानिवृत्त सैनिकों के साक्षात्कारों द्वारा उन घटनाओं का भी विवरण दिया गया है, जिनका आज तक कभी खुलासा नहीं हुआ।’
‘युद्ध-इतिहास की यह पुस्तक हमारे सैनिकों के अप्रतिम युद्ध-कौशल और उनके पराक्रम को नमन-वंदन करने का एक विनम्र प्रयास है।’
रचना बिष्ट रावत लिखती हैं: ‘वे (मेजर जनरल शौकीन चौहान) चाहते थे कि हम सन् 1965 में भारतीय सेना द्वारा लड़े गए पांच सबसे अधिक जीवटवाले युद्धों का वर्णन करनेवाली पुस्तक लिखें। वे चाहते थे कि यह पुस्तक पूरे शोध के बाद लिखी जाए। और अगस्त में युद्ध की पचासवीं सालगिरह से पहले तैयार हो जाए। इसका अर्थ यह था कि मेरे पास पढ़ने, शोध करने, भ्रमण, साक्षात्कार व लगभग 50,000 शब्द लिखने के लिए केवल चार माह तथा प्रकाशक के पास इसके संपादन, टाइप-सेट, डिजाइन व छपाई के लिए मात्र एक महीने का समय था। मैंने पहली बार यह महसूस किया कि किस तरह प्रेरणादायक नेतृत्व होने पर व्यक्ति असंभव कार्य का बीड़ा उठाने पर भी सहमत हो जाता है।’
यकीनन इतने कम समय में इस तरह की पुस्तक लिखना बेहद जटिल काम है, लेकिन लेखिका ने मुश्किल काम का बीड़ा उठाया। उनके अथक श्रम, शोध, रचनात्मकता, लंबी यात्रायें, विश्वास, प्रेरणा के बाद असंभव-सा लगने वाला कार्य पूरा हो पाया।
ऐसी पुस्तक पढ़ने के कई कारण हो सकते हैं। सबसे बड़ा कारण युद्ध भूमि की वो दास्ताने हैं जो इससे पूर्व यादों में ही जिंदा थीं। रचना बिष्ट रावत उन दफन हो चुके राज़ों को काफी हद तक निकाल कर बाहर ला सकीं। उनका प्रयास देश को अनमोल तोहफा है।
रचना बिष्ट की पहली पुस्तक ----- शूरवीर : परमवीर चक्र विजेताओं की रोचक और दिलचस्प कहानियां जो प्रेरणा से भरी हैं
किताब में युद्ध की हैरान करने वाली कहानियों का उल्लेख किया गया है। पाकिस्तानी मेजर रिजवी ने युद्ध विराम के बाद लांस नायक लाखा की ‘जान बचाने का हर संभव प्रयास किया। उन्होंने अपने जवानों को तेज आवाज़ में आदेश दिया कि अपने हेलमेट से इतनी बहादुरी से लड़ रहे निहत्थे सैनिक को नहीं मारना है। लेकिन युद्ध के कोलाहल में उनका आदेश अनसुना रह गया और लाखा सिंह को गोली मार दी गयी।’
पुस्तक में फ्लाइट लैफ्टिनेंट एल.के. दत्ता (अभिनेत्री लारा दत्ता के पिता) का किस्सा भी दर्ज है।
पैराट्रूपर हीरा लाल धमाके में बुरी तरह जख्मी होने और अंतडियां बाहर निकलने के बाद भी ग्रेनेड गन चला रहे थे।
हालांकि हाजी पीर की लड़ाई में भारत ने पाकिस्तान को परास्त किया लेकिन ‘भारत ने युद्ध के मैदान में जो कुछ भी जीता था, वह सब उसने ताशकंद में खो दिया। हाजी पीर पर्वत पर इतनी सारी बटालियनों ने अदम्य साहस सहित जो लड़ाई लड़ी, जिसमें उसके वीर सैनिकों ने अपना जीवन कुर्बान किया, सन् 1966 में हुए ताशकंद घोषणा-पत्र में वह सब पाकिस्तान को वापस लौटा दिया गया।’
पुस्तक में रोचक किस्सों को खूबसूरती के साथ लिखा गया है जिनसे हर हिन्दुस्तानी का अपनी सेना के लिए सिर फक्र से और ऊंचा हो जाता है। ये कहानियां बार-बार पढ़ी जानी चाहिएं और हर पीढ़ी को इन्हें पढ़कर युद्ध की परिस्थितियों को महसूस करना चाहिए।
हवलदार अब्दुल हमीद ने दुश्मन के छह टैंक तबाह किये, लेकिन ‘सातवें टैंक तथा हमीद की जीप दोनों ने एक-दूसरे को ध्वस्त कर दिया।’ उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
रचना ने युद्ध के विभिन्न पहलुओं का वर्णन किया है। एक जगह उन्होंने लेफ्टिनेंट जनरल जिमी वोहरा की पत्नि से मुलाकात का जिक्र करते हुए लिखा है: ‘वे (श्रीमती वोहरा) अकसर अन्य सैनिकों के परिवारों से मिलने जातीं और उन्हें ढांढस देतीं कि उनके घर के पुरुष जल्दी ही सुरक्षित वापस लौट आयेंगे। ‘लेकिन सच तो यही है कि सभी वापस नहीं लौट सकते।’ उन्होंने धीमे से कहा। ‘हमने अपने लड़के खोए; कम उम्र में लड़कियों के सुहाग उजड़ गए। लेकिन लड़ाई तो ऐसी ही होती है।’
1965 की लड़ाई इतिहास में दिलचस्प तरह से भी दर्ज हुई है। इस युद्ध में हजारों टैंकों ने हिस्सा लिया जिसमें महज तीन दिन में ही पाकिस्तान के 75 टैंक या तो नष्ट किये गये या कब्जा लिये गये थे। खेमकरण के बिखीविंद गांव में भारतीय सेना ने पाक के छोड़े गए व क्षतिग्रस्त टैंकों का कतार लगाकर प्रदर्शन किया। इस युद्ध में ‘पैटन टैंकों का कब्रिस्तान’ भी बना क्योंकि इतने टैंक उससे पहले कभी तबाह नहीं हुए थे।
पुस्तक में दुर्लभ चित्र भी देखने को मिलेंगे जिनसे आप स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं कि युद्ध के हालात उस समय कैसे रहे होंगे। किस तरह की परिस्थितियों में हमारे जाबांज सैनिक दुश्मनों से मुकाबला करते रहे और जवानों के गर्व से चौड़े सीने और मुस्कराते चेहरे भी देखने को मिलेंगे।
लेफ्टिनेंट कर्नल अनंत सिंह ने रात में किये जाने हमले की रुपरेखा बहुत ही बहादुरी से अपने जवानों से बतायी:‘आज हाथियां नाल साड्डी बरात जाउगी और ऐसी आतिशबाजी होएगी के दिवाली भी पिछे पा जाउगी। बर्की दुलहन दी तरह है। तुस्सी आज दूल्हा हो। शेरो, तगड़े हो जाओ, आज बर्की विहाओनी है।’
4 सिख बटालियन के जवानों को उनकी बहादुरी के लिए 12 सितंबर, 1897 से याद किया जाता है। उन्हें ‘सारागढ़ी बटालियन’ के नाम से भी जाना जाता है। उस समय केवल 21 जवानों ने 10,000 से भी ज्यादा अफगान व ओरकर्जइ कबीले के लड़ाकों से मुकाबला किया था। सारागढ़ी गांव पाकिस्तान में है।
रचना बिष्ट रावत ने इतिहास के उन नर्म हिस्सों को टटोला है। उन्होंने अपने साक्षात्कारों और शोधों से जो जानकारियां एकत्रित की हैं, उस वजह से पुस्तक में हमें युद्ध की जमीन पर घटने वाली अधिकतर घटनाओं का आंखों देखा हाल पढ़ने को मिलता है।
पुस्तक में लेफ्टिनेंट जनरल रणजीत सिंह दयाल, कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद, लेफ्टिनेंट कर्नल आर्देशिर बुर्जोरजी तारापोर, सूबेदार अजित सिंह, ब्रिगेडियर डेसमंड यूजीन हायडे जैसे नायकों की वीरगाथायें विस्तार से पढ़ने को मिलती हैं। साथ ही उन वीर जवानों के शौर्य के किस्से भी भरे पड़े हैं जिन्होंने खुद को खुशी-खुशी बलिदान कर दिया।
पूर्व रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर लिखते हैं: ‘यह पुस्तक आपको एक क्षण के लिए हमारी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सीमाओं को सुरक्षित रखनेवाले हमारे सैनिकों के साहस व बलिदान की याद जरुर दिलाएगी।’
यह पुस्तक हर भारतीय की अपनी किताब है, अपना दस्तावेज है।
रचना बिष्ट रावत ने पत्रकारिता की शुरुआत 'द स्टेट्समैन' से की। उन्होंने डेक्कन हेरल्ड, इंडियन एक्सप्रेस, आउटलुक, फेमिना आदि के साथ काम किया और खूब लिखा। रचना पहली भारतीय हैं जिन्हें 2005 में हैरी ब्रिटेन फेलो के लिए चुना गया। 2006 में उन्हें कॉमनवेल्थ प्रेस क्वार्टर्लीज़ रोल्स रॉयस अवार्ड दिया गया।
'1965 भारत-पाक की वीरगाथाएं'
लेखिका : रचना बिष्ट रावत
अनुवाद : नितिन माथुर
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन
पृष्ठ : 200
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