‘अश्वत्थामा’ : महाभारत के शापित योद्धा के अनछुए पहलुओं की कथा

अश्वत्थामा जिसे उपेक्षित किया जाता रहा है, आशुतोष ने उसके साथ न्याय किया है.

आशुतोष गर्ग को पढ़ना हर बार मजेदार होता है। अभी तक मैंने उनके अनुवाद पढ़ें हैं। ‘अश्वत्थामा’ उनकी पहली पुस्तक है। आशुतोष के पास जो शैली है वह बांधकर रखती है। चर्चित पुस्तक  'दशराजन' का अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद आशुतोष ने ही किया है। उन्होंने करीब 15 चर्चित किताबों का अनुवाद किया है जिन्हें खूब सराहना मिली है।

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एक अच्छे और परिपक्व लेखक की विशेषता है कि वह भाषा को सरल रखे और ऐसे शब्दों तथा वाक्यों का प्रयोग करे जिससे पाठक उसके कहे मुताबिक किसी अदृश्य जादू की तरह कहानी के साथ बहा चला जाये। वही अनुभव आशुतोष अपने पाठकों को दिला रहे हैं।

‘अश्वत्थामा’ कहानी है महाभारत के शापित योद्धा की जो अमर है और कृष्ण के शाप के कारण हज़ारों वर्षों से अपना घावों से भरा जर्जर शरीर लिए भटक रहा है। इस किताब में वह अपनी कथा सुना रहा है। वह बता रहा है उन किस्सों को जिनसे हम अनजान हैं। वह बता रहा है अपने दर्द को जिसने उसकी जिंदगी नर्क से बदतर कर दी है।

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एक जगह अश्वत्थामा कहता है :
‘मेरा जीवन पशु से बदतर हो गया है और मैं स्वयं जीवित होकर भी किसी सड़े-गले शव से अधिक कुछ नहीं हूं। यूं कहने को, मैं चिरंजीवी हूं, अमर हूं किंतु पूर्ण सत्य यह है कि मैं शापित हूं, कलंकित हूं और इस विशाल पृथ्वी पर कोई ऐसा मनुष्य नहीं जो मेरे दुख को कम कर सके। यह मेरे अपयश की पराकाष्टा है कि समूची पृथ्वी पर आपको मेरे नाम का कोई दूसरा व्यक्ति नहीं मिलेगा।‘

लेखक ने महाभारत की कथा को एक मुख्य किरदार की नज़रों से हमारे सामने प्रस्तुत किया है। आशुतोष गर्ग ने संक्षिप्त तरीके से महाभारत रची है। यह आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने इसे कर दिखाया। उस काल के कई अनछुए पहलुओं को बताया। साथ ही रिश्तों, समाज और विचारों के द्वन्द को अपनी तरह से प्रस्तुत किया है जो बेहद रोचक है।

हर घटना के बाद पाठक को आगे पढ़ने की जिज्ञासा होती है।

अश्वत्थामा जिसे उपेक्षित किया जाता रहा है, आशुतोष ने उसके साथ न्याय किया है। साथ ही कहानी में एक बड़ा सन्देश भी छिपा है। अश्वत्थामा के माध्यम से कृष्ण ने बुराई और अच्छाई के परिणामों को स्पष्ट किया है। इसका उद्देश्य समाज को आईना दिखाना है।

ऐसी कहानियां लिखी जानी चाहिये क्योंकि इन्हें पढ़कर हम उन चरित्रों को करीब से जान सकते हैं जिन्हें इतिहास में पीछे धकेल दिया गया या फिर वे आने वाले समय में छिप जाते।

आशुतोष कहते हैं : ‘मैं आपको अश्वत्थामा के पास लिए चलता हूं, जो किसी अज्ञात निर्जन वन में आपको अपने दृष्टिकोण से महाभारत की ऐतिहासिक कथा और मन की व्यथा सुनाने को उत्सुक बैठा है।‘

..तो आप भी बनिए अश्वत्थामा की कथा के संगी और सफ़र कीजिये उसके साथ एक अलग संसार में।

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‘अश्वत्थामा’
लेखक : आशुतोष गर्ग
प्रकाशक: मंजुल प्रकाशन
पृष्ठ: 198
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