सुधा मूर्ति को पढ़ना अच्छा लगता है। उन्होंने सामाजिक घटनाओं को अपनी लेखनी में एक तरह से रचा-बसा लिया है। वे समाज और उसमें होने वाली उथलपुथल का बारीकी से निरीक्षण करने की कला को बखूबी जानती हैं।
‘महाश्वेता’ पढ़ने के बाद पाठक सोच में पड़ जाता है क्योंकि अनुपमा जैसे पात्र हमने आम जिंदगी में दूर से देखे जरुर हैं, लेकिन उनकी आपबीती उपन्यास पढ़कर साफ हो जाती है। यह मानवीय संवेदना और सामाजिक गठबंधन की एक रोचक कृति है।
श्वेतकुष्ठ रोग से पीड़ित एक युवती किस तरह अपनों और परायों के बीच समाज से संघर्ष करती है, यह ‘महाश्वेता’ में दिखाया गया है।
सुधा मूर्ति शुरू में लिखती हैं :
“मन की आग में समाज के तिरस्कार में मौन से उबलती हुई देश की ‘महाश्वेताओं’ को अर्पित.”
प्रेम पर बेहद संजीदगी से पुस्तक में लिखा है :
"प्रेम बाजार से खरीदी जाने वाली चीज नहीं है. दुकान पर रखकर बेचनेवाली वस्तु भी नहीं है. एक व्यक्ति पर पहली नजर पड़ते ही उसके सुख-दुःख में सम्मिलित होकर उसके साथ जिंदगी बिताने की उत्कट अभिलाषा, कामना अपने-आप मन में पैदा हो जाती है, जिसमें जिंदगी के, समाज के सारे बंधन तोड़कर उसको पाना ही एक लक्ष्य हो जाता है. यह कोई भी हो, कहीं भी हो, कैसे भी हो, मेरा प्रेम अचल है, हिमालय जैसा अटल है, सागर जैसा गहरा है और मानसरोवर जैसा साफ है."
इस किताब को पढ़ने के बाद मन में कई सवाल रह जाते हैं। समाज का नजरिया किस तरह बदला जाये? महिलाओं के बारे में या कुछ रोगों के बारे में लोग अभी जागरूक नहीं हुए या वे ऐसा जानबूझकर करते हैं? क्या हम खुद को पहचानने में देरी करते हैं? क्या इंसान संघर्ष से आगे बढ़ सकता है?
ऐसी कहानियां कम ही लिखी जाती हैं क्योंकि इन कथाओं को लिखने के लिए हर चीज को बारीक नज़र से देखना जरुरी है। साथ ही मानवीय संवेदनाओं की समझ होना कहानी को जीवंत बनाता है। सुधा मूर्ति जानती हैं कि लोग किस तरह दूसरों के साथ प्रेम, घ्रणा करते हैं। उन्होंने महसूस कर शब्दों को कहानी में रचा है। पढ़ने के दौरान हम भी उन्हें महसूस कर उसी रौ में बह जाते हैं।
सुधा मूर्ति की ‘डॉलर बहू’ को भला कौन भूल सकता है। ‘महाश्वेता’ पढ़ने के बाद भी आप वही कहेंगे।
लेखन करने से पूर्व शोध, लिखने का अनुशासन दोनों सुधा जानती हैं। सरल भाषा में अपनी बात कह देती हैं जो पाठक को पसंद भी है, और उत्साहित भी करता है।
सुधा मूर्ति की पुस्तकों की प्रतियां लाखों की संख्या में बिक चुकी हैं. उन्हें पद्मश्री सम्मान मिला है. कंप्यूटर साइंस में एम.टेक. किया और अपने पति नारायण मूर्ति के साथ इन्फोसिस की नींव रखी.
लेखिका : सुधा मूर्ति
प्रकाशक: प्रभात प्रकाशन
पृष्ठ: 172
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