देवदत्त पटनायक द्वारा कई सदियों से लिखी गयीं विभिन्न रामकथाओं तथा पौराणिक ग्रंथों में वर्णित सीता और रामचरित्र के प्रचीन और वर्तमान के बीच ‘सीता-रामायण का सचित्र पुनर्कथन’ पुस्तक में बहुत ही मनोरंजन और मौलिकता के साथ चित्रित कर वास्तव में पुस्तक को सभी वर्गों के पाठकों के पाठन योग्य बना दिया है।
एक जगह देवदत्त लिखते हैं:
‘बहुत कम विद्वान ही भारतीय मानसिकता के बीच, इस ढाई हजार वर्ष प्राचीन कथा का प्रभाव समझने में सफल रहे, विशेष तौर पर वे, जो महाकाव्य को तो अतार्किक मानते हैं परंतु आधुनिक शिक्षा को ऐसा साधन मानते हैं, जिससे लोगों को विवेकी बनाया जा सकता है।’
पुस्तक को राम के बजाय सीता शीर्षक देने के पीछे भी यही कारण जान पड़ता है कि जिस प्रकार जय सियाराम या सीताराम के साथ दोनों का नाम लिया जाता है, उसके पीछे भी सीता के महत्व का पता चलता है। यहां दोनों का महत्व और मर्यादायें अपनी सीमाओं में एक समान हैं। इसलिए यह राम कथा यदि सीता कथा कही जाये तो क्या दिक्कत है।
लेखक देवदत्त पटनायक ने सभी रामायणों की कथाओं का गूढ़ अध्ययन कर उन सभी को विभिन्नताओं से निकालकर पुस्तक में जिस प्रकार एकाकार कर सीता के चरित्र को पाठकों के सामने प्रस्तुत किया है, उससे सभी रामायणों को पढ़ने का रसास्वादन ‘सीता’ नामक पुस्तक पढ़ने से हो जाता है। यह पहली किताब है जिसमें गुरु गोविन्द सिंह द्वारा रचित रामायण का भी जिक्र है।
किताब कहती है:
‘यह पुस्तक सीता की परिकल्पना करते हुए राम तक पहुंचती है: पिता जनक, जिन्होंने उपनिषद में वर्णित ऋषियों का आतिथ्य निभाया था, के साथ बीता उनका बाल्यकाल; स्वयं के पूर्णयौवना होने पर भी, पति - जिन्होंने अपने जीवन के चौदह वर्ष एक ब्रह्मचारी के रुप में बिताने थे - के साथ उनका वन-गमन; लंका की स्त्रियों से उनका मेलजोल, उनके बीच आपस में बांटी गयी व्यंजन विधियां तथा नाना प्रकार के भाव; अयोध्या माता (धरती) तथा बहनों (वृक्षों) से उनका संबंध; अयोध्या के आत्मसंयमी राजकुमार को देवत्व की ओर ले जाते हुए, स्वच्छंद काली और सौम्य गौरी के रुप में उनकी भूमिका।’
देवदत्त पटनायक लेखन के साथ-साथ बेहतरीन चित्र बनाते हैं और व्याख्यान देते हैं। 1996 से अबतक वे 30 से ज्यादा किताबें लिख चुके हैं और सैकड़ों स्तंभ प्रकाशित हुए हैं। अपनी लाजवाब लेखन शैली की वजह से वे सर्वाधिक चर्चित लेखकों में शुमार हैं। कहां कौन सा शब्द जोड़ना है, यह बखूबी जानते हैं।
‘सीता-रामायण का सचित्र पुनर्कथन’ में उन्होंने दृश्यों को जीवंत किया है ताकि पाठकों को सबकुछ अपने सामने होता हुआ लगे। ऐसा लगता है जैसे देवदत्त ही वे हैं, जिन्होंने ‘रामायण’ को गहराई से समझा है और उसके भावों को खूबसूरती से उतारा है।
देवदत्त की ओर से साल 2017 का यह सबसे अनमोल उपहार है।
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