अशोक के. बैंकर को पढ़ना हर बार नया अनुभव होता है। उनके पास जो चित्रण शैली है, जिसे वे शब्दों के माध्यम से व्यक्त करते हैं और दृश्यों को सजीव बना देते हैं, उसका जवाब नहीं। ‘दशराजन’ पढ़ने के बाद आप स्वयं उनकी दूसरी पुस्तकों को पढ़ना चाहेंगे। मेरे साथ तो यही हुआ। हालांकि उनके द्वारा लिखित ‘अयोध्या का राजकुमार’ की समीक्षा पहले की थी, लेकिन कई साल पहले पढ़ी 'दशराजन' को मैंने इसी महीने फिर पढ़ा। ये किताब आप पर जादू भी करती है, उकसाती है कि ‘मुझे पढ़ो’।
दशराजन कहानी है एक काबिले के मुखिया सुदास की जिसने 3400 ईसा पूर्व दस राजाओं से युद्ध लड़ा था। उसने पांच नदियों वाली मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था। यहां पांच नदियों की भूमि पंजाब का जिक्र है। इस युद्ध का वर्णन ऋग वेद के सातवें मंडल में है। गुरु वशिष्ठ की सहायता और कुशल रणनिति व अपने मुट्ठीभर सैनिकों में विश्वास से उसने युद्ध ही नहीं जीता बल्कि एक नए भारत की नींव रखी।
कहानी हर बार रोचक मोड़ पर ले जाती है। यहां भावनाओं को भी सहजता से बताया है। यहां परिवार और दूसरों के प्रति सम्मान को दर्शाया है। साथ ही उस निश्चय को भी जो एक राजा या परिवार के मुखिया को पालन करना चाहिए।
यह बात 'दशराजन' साबित कर देती है कि युद्ध का सजीव वर्णन पाठक को किताब में घुलने पर विवश कर देता है। शुरू करने के बाद आप किताब ख़त्म करके ही दम लेते हैं। हर घटना आगे होने वाली घटना की उत्सुकता पैदा करती है क्योंकि कहानी इस तरह बहती है कि आप एक पन्ने के बाद दूसरे पर स्वत: ही पहुंच जाते हैं। युद्ध केवल एक दिन चला, लेकिन बैंकर ने उसमें जान डाल कर यह साबित कर दिया कि वे सजीव चित्रण के महारथी यूं ही नहीं कहलाते। इसके अलावा घटनाओं के एक-एक पल की जानकारी आपको बेहद स्पष्ट व सरल तरीके से देते हैं।
किताब का एक अंश देखें : ‘सुदास बाहर निकला और तलवार घुमते हुए एक अनु सैनिक के सामने आ गया। उसने अपनी लौह-तलवार से अनु की कांस्य-तलवार पर वार किया। एक विशिष्ट आवाज़ के साथ कांस्य-तलवार टूट गयी और सुदास की लौह-तलवार अनु के सीने के पार हो गयी। तलवार उसके कवच को काटती हुई सरलता से उसके शरीर में घुस गयी जिससे वह व्यक्ति बुरी तरह घातक रूप से घायल हो गया। सुदास ने अपनी तलवार खींची तो मार्ग की मिट्टी पर रक्त छितर गया। सुदास मुड़ा और अगले सैनिक की तलवार पर चोट की जिसके प्रहार से उस सैनिक की तलवार मुड़ गयी। सैनिक वहीं रुक गया और अविश्वास एवं अचंभे से भरा अपने हाथ में पकड़ी मुड़ी हुई तलवार देखता रहा, फिर उसने चीखते हुए अपना छुरा निकाला। सुदास अपनी तलवार लेकर उसपर लपका और तलवार के एक वार से उसे लगभग सिर-रहित कर दिया। उसकी शक्तिशाली तलवार ने सैनिक के छुरे को मूठ से काट दिया और आसानी से उसके शरीर में घुस गयी। फिर सुदास ने अपनी तलवार से तीसरे व्यक्ति का कवच चीत्कार जैसी आवाज़ के साथ भेदकर तलवार उसके सीने में उतार दी। सैनिक अपनी मृत्यु के हथियार को घूरता हुआ सुदास की तलवार पर गिर गया।‘
यह पुस्तक अंग्रेजी में ‘टेन किंग्स’ के नाम से प्रकाशित हुई जिसका हिंदी में अनुवाद आशुतोष गर्ग ने किया है। उन्होंने अशोक बैंकर की लय के साथ पूरा न्याय किया है। उनकी अनुवाद कला भी इस किताब में जान डालती है। वे कहते हैं –‘मुझे इस उपन्यास के अनुवाद के दौरान इसका अनुवाद कम और युद्ध का प्रत्यक्ष दर्शक होने का आभास अधिक हो रहा था।‘ पिछले दिनों आयी ‘श्रीकृष्ण लीला’ का आशुतोष द्वारा किया हिंदी अनुवाद काफी सराहा जा रहा है। अब उनकी पुस्तक ‘अश्वत्थामा : महाभारत का शापित योद्धा’ इस जुलाई पढ़ने को मिलेगी। उनके द्वारा लिखित इस पुस्तक का पाठकों को बेसब्री से इंतज़ार है।
अशोक बैंकर शायद खुद उस जगह पहुँच जाते हैं जहां का उन्हें वर्णन करना है। वे आपको सजीव कहानी सुनाते हुआ मिलते हैं। ऐतिहासिक कहानी को रोचकता से प्रस्तुत करना भी एक कला है। उसके साथ संवाद भी कहानी को तेजी से आगे बढ़ाते हैं।
वे कहते हैं :’इस प्रकार हम अतीत में लौट सकते हैं और उस युद्ध को सजीवता और बेहतर विवरण के साथ दोबारा अनुभव कर सकते हैं।‘
‘पन्ने पलटिये। अतीत को जिंदा होते हुए देखिये।‘
‘और परुष्णि नदी के तट पर उस बारिश के दिन सुदास तथा उसके तृत्सु भारत के साथ पड़ाव डाल लीजिये।‘
अनुवाद : आशुतोष गर्ग
प्रकाशक: मंजुल प्रकाशन
पृष्ठ: 278
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