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लाइफ मंत्रास: जीवन के सकारात्मक पहलुओं का दर्शन. |
सहारा ग्रुप के संस्थापक सुब्रत राय सहारा की पहली पुस्तक ‘लाइफ मंत्रास’ उनके दार्शनिक पहलुओं को दर्शाती है। जैसाकि किताब के शीर्षक से ही ज्ञात हो जाता है कि इसमें जीवन जीने की सीख है। तिहाड़ जेल में सहारा ने समय बिताया और उस दौरान उन्होंने जीवन को बारीकी से समझा होगा। उसे किताब की शक्ल देने आसान नहीं रहा, लेकिन सुब्रत राय ने किया। जब यह किताब छपी तो इसका विमोचन 5000 जगह पर एक साथ किया गया था। ये टॉप सेलर किताब रही है।
सुब्रत राय खुद लिखते हैं:
‘इस पुस्तक को पढ़ लेने के पश्चात आप निश्चित तौर पर पूरे विश्वास के साथ महसूस करेंगे कि जीवन में शांति, सच्चा सुख, आत्मसंतोष और संतुष्टि पाने तथा साथ ही भौतिक उपलब्धियों, सम्मान और प्यार के अर्थ में निरंतर प्रगतिशील बने रहने के लिए आपको इस दुनिया में किसी अन्य पर निर्भर रहने की जरुरत नहीं है। यह केवल आप पर निर्भर करता है। सब आपके अपने हाथ में है।’
यह सहारा की आत्मकथा नहीं है। वे कहते भी हैं:
‘मैं स्पष्ट कर दूं कि लाइफ मंत्रास मेरी आत्मकथा नहीं है और न ही किन्हीं सूत्रों या मंत्रों के प्रतिपादन का दावा करती है। यह ईश्वर के उस अनुपम उपहार यानि जीवन के प्रत्येक क्षण का आनंद लेते हुए सुखी, संतुष्ट और शांत रहने का मार्ग सुझाती है। यह पुस्तक मेरे जीवन भर के उन अनुभवों का निचोड़ है जो मैंने लोगों के रोजमर्रा के जीवन की समस्याओं और गुत्थियों को देखते-समझते और सुलझाते हुए प्राप्त किये हैं।’
इस पुस्तक को रुपा पब्लिकेशन्स ने बिना किसी संपादन आदि के मूल रुप में प्रकाशित किया है। सुब्रत राय ने अपनी बात कहने के लिए दर्शन का सहारा लिया है। हम उन्हें ऐसे व्यक्ति के बारे में जानते हैं जो सिर्फ व्यवसाय करना जानता है, लेकिन 1978 में मात्र 2000 रुपये और तीन साथियों के साथ शुरुआत करने वाला यह व्यक्ति धार्मिक बातें करता है, जीवन की सीख देता है और कई बार खुद को शांत मानता है, लेकिन संसार की पेचिदगियों में खो भी जाता है।
शिक्षा पर सुब्रत राय लिखते हैं:
‘जीवन में शिक्षित होना महत्वपूर्ण है, न कि सिर्फ साक्षर होना। स्कूल और कालेजों में हम कुछ विषयों में साक्षर होते हैं जिससे हमें अपनी जीविका के लिए उपयुक्त पेशा प्राप्त करने और उसे संभालने में मदद मिलती है। परंतु शांति, सुख और संतुष्टि का जीवन हमें समुचित जीवन ज्ञान और सही शिक्षा से ही प्राप्त होता है।’
‘यह कोई रॉकेट विज्ञान नहीं है। जीवन सरल है और इसको समझने की क्षमता प्राप्त करना भी सरल है। हमें चेतन प्रयासों द्वारा जीवन की सभी सच्चाईयों को अपने अवचेतन में प्रविष्ट करा देना चाहिए ताकि हमारा स्वभाव और व्यवहार हर समय, चौबीसों घंटे, तीन सौ पैंसठ दिन सकारात्मक, रचनात्मक, उत्पादक आदि बना रहे।’
यह पुस्तक पढ़ने के बाद मैंने महसूस किया कि हर व्यक्ति एक दार्शनिक है। उसे समय चाहिए कि वह अपने विचारों को महसूस कर उन्हें दूसरों को बताये। मैं मानता हूं कि सुब्रत राय ने जो महसूस किया वह लिखा या जो उनके मस्तिष्क में विचारों की गठरी खुलती गयी, वे उसके धागों से विचार बुनते गये। यह सरल भी है और पेचीदा भी क्योंकि जीवन दर्शन व्यापक विषय है। खुद को समझना, दूसरों के सामने स्वयं को प्रस्तुत करना शब्दों के माध्यम से; यकीनन यह काम उतना आसान नहीं।
एक बात और महत्वपूर्ण हो जाती है कि परिस्थितियां ऐसी बनीं कि सुब्रत राय सहारा तिहाड़ पहुंचे। शायद वे वहां न जाते तो यह किताब या उनके जीवन के बारे में उन्नत विचार हम न पढ़ पाते। कुछ लोग इसे नियति कहते हैं, कुछ ओर, लेकिन एक बात जो पक्की है कि जीवन को समझने के अपने-अपने नजरिये हैं और प्रेम, शांति तथा सच्चाई हमें हर मोड़ पर मिल सकती है।
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