दीपक मशाल ने हमें सोचने पर मजबूर किया है कि हमारे आसपास जो बह रहा है वह अकेला नहीं है। उससे जिंदगी जुड़ी है। वो कहते हैं न कि भाव गोते लगाते हैं। दीपक ने हर नब्ज को पकड़ने की कोशिश की है। वे इसमें कामयाब हुए हैं। मैं उनकी एक-एक कहानी को पढ़ने के बाद कुछ समय तक मंथन करता हूं। उनकी यह विशेषता है कि वे आपको बांधकर रखने की कला में माहिर तो हैं, साथ ही वे पाठक को पढ़ते-पढ़ते यह सोचने पर भी मजबूर करते रहते हैं कि यह कहानी उसके आसपास गुजरी है या उसकी अपनी कहानी भी हो सकती है।
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‘खिड़कियों से’ : लेखक- दीपक मशाल. |
‘कहा जाता है कि प्रतिभा किसी इकलौते एकल-चमत्कार से नहीं, निरंतर उत्कृष्टता की चुनौतियों से भरी सफल-असफल यात्राओं से प्रमाणित होती है, दीपक मशाल की कथाएं यह विश्वास हमें सौंपती हैं।’
मैं समझता हूं कि जब आपके पास बहुत ऐसी बातें हों जो जहन में कूदफांद कर रही हों तो उस रोमांच को जीने का तरीका है उन्हें शब्दों के बल पर उतार देना। ये कहानियां छोटी जरुर हैं, लेकिन सबक इनमें अनगिनत हैं जो हमें अलग यात्रा पर ले जाते हैं।
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दीपक मशाल की किताब 'खिडकियों से' एक खूबसूरती से लिखा गया लघुकथा संग्रह है जो हमें बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता है. |
दीपक मशाल ने 'खिडकियों से' एक खुले आसमान का एहसास कराया है। उन्होंने छोटी कहानियों से ऐसी बातें कह दीं जिन्हें भूलना नामुमकिन है। शब्दों से लेखक ने ऐसे भाव पैदा किये हैं कि पाठक आनंदित हो उठता है। उसे लगता है जैसे वह वास्तव में अपने इर्द-गिर्द पात्रों को महसूस कर रहा है। मशाल साहब के शब्द और उन्हें कहने का लहजा सरल है जो स्वत: ही हमें आखिरी पन्ने तक उत्सुक बनाये रखता है। कथाओं की अंतिम पंक्ति तक उत्सुकता जगती है, ..और पाठक को क्या चाहिये।
मैं दीपक को उनकी इस कृति को उन पाठकों को जरुर पढ़ने के लिए कहूंगा जो कुछ नया पढ़ना चाहते हैं। ऐसे पाठक जो शब्दों में खोकर कुछ पाने की लालसा रखते हैं, वे इसे जरुर पढ़ें।
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