पॉल थरु का नाम मैंने पहले नहीं सुना था। जब मैं किताबों की खोज कर रहा था तो मैंने उनकी किताब का कवर देखा। सच कहूं तो कवर देखकर मैं प्रभावित हो गया था।
यह बात जरुर किताबों के मामले में सही है कि किताब का पहला चेहरा उसका आवरण होता है। यह बात भी सही है कि किताब पढ़ने से पहले आवरण देखकर दिलचस्पी पैदा होती है। यह भी गलत नहीं कि आवरण एक कहानी है; वह सही मायने में पहली कहानी होती है।
मैं उन शाखाओं को देख रहा था जो मैंने पहले नहीं देखी थीं। वे मुझे बुला रही थीं, पुकारा जाना जारी था, ऐसा बिल्कुल नहीं था, बल्कि यह जरुर था कि उन्हें देखकर मुझे पुराने दिनों की याद आ रही थी। मैं अपने गांव की वादियों में खोने को हुआ कि मेरे मित्र ने मुझसे कहा कि किताबों की परख करते रहोगे या खरीददारी भी करोगे।
मैं कई साल से किताबों को ऑनलाइन खरीद रहा हूं। दुकानों या अन्य जगहों पर ज्यादातर किताबें उपलब्ध नहीं हैं या उनके दाम बहुत हैरान करने वाले होते हैं।
आवरण पर रेलगाड़ी जा रही है। हालांकि पॉल थरु के यात्रा-वृत्तांत का पहला अंग्रेजी संस्करण 1975 में प्रकाशित हुआ था। भारत में 2010 में हिंदी का पहला संस्करण पेंगुइन ने प्रकाशित किया। गजेन्द्र राठी ने हिन्दी अनुवाद किया है।
लेखक ने किताब में रेलगाड़ी से एशिया का सफर तय किया है। किताब का नाम भी उसी तरह है -‘द ग्रेट रेलवे बाज़ार।’
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पॉल थरु लिखते हैं:
‘बचपन से ही मैं बोस्टन और मेन में हमेशा ऐसी जगह रहा, जहां रेलगाड़ी के आनेजाने की आवाज सुनी जा सकती थी और शायद ही ऐसा हुआ हो कि ट्रेन के गुज़रने की आवाज़ सुनकर मैंने यह न सोचा हो कि काश! मैं भी इसमें बैठा होता। उन सीटियों की आवाज़ें मुझे सम्मोहित सा कर देती थीं; रेलगाड़ियां लगातार चलने वाले बाज़ार हैं, जो बिल्कुल समतल जमीन पर रेंगती रहती हैं चाहें कैसा भी भू-दृश्य क्यों न हो। वे हमेशा अपनी रफ्तार के साथ आपके मिज़ाज को दुरुस्त रखती हैं और आपके प्याले को भी बरकरार रखती हैं। ट्रेन में बैठे हुए आप खतरनाक जगहों पर भी बेफिक्र रह सकते हैं- ट्रेन आपको हवाई जहाज़ में होने वाले हादसों की चिंता या लंबी दूरी तक जानेवाली बसों में बैठे-बैठे गैस संबंधी होने वाली अटपटी बीमारियों या फिर कार में बैठे-बैठे शरीर के सुन्न हो जाने वाली स्थिति से बिल्कुल मुक्त रखती हैं। अगर कोई ट्रेन काफी बड़ी और आरामदायक है तो आपको किसी निश्चित स्थान की भी कोई जरुरत नहीं है: बस एक कोने वाली सीट आपके लिए काफी है, और फिर आप उन यात्रियों में से एक हो सकते हैं जो हमेशा सफर पर ही रहते हैं और आराम से पैर पसारकर सफर करते रहते हैं। उन्हें यह सोचने की जरुरत नहीं पड़ती कि काश मैं उस खुशनसीब इंसान जैसा होता जो इटालियन रेलवेज़ में ही रहता है क्योंकि वह रिटायर हो चुका है और उसके पास ‘फ्री पास’ है। कहीं और जाने के बजाय फर्स्ट क्लास में सफ़र करना ज्यादा बेहतर है, या जैसा कि अंग्रेज़ उपन्यासकार माइकल फ्रायन ने एक बार मैकलुहन की पंक्ति को अपने शब्दों में कुछ ऐसे लिखा,‘यात्रा एक लक्ष्य है।’ लेकिन मैंने एशिया को चुना और जब मुझे याद आया कि वह तो सिर्फ आधी दुनिया के फासले पर था तो मैं बहुत खुश हुआ।’
‘मैंने खिड़की से बाहर देखा तो एशिया ही था, और मैं पूर्व की ओर जाने वाली इन एक्सप्रेस रेलगाड़ियों में बैठकर इसे पार करता जा रहा था। जैसे ही हमने गुज़रे वक्त के बारे में सोचा तो हम ट्रेन के अंदर बाज़ार के बारे में सोचकर हैरान रह गये। एक ट्रेन में सबकुछ संभव है: लाजबाव खाना, खूब खाना और पीना, ताश खेलते लोगों को देखना, छुप-छुप कर प्रेम का इजहार करना, रात में भरपूर नींद लेना और खुद से ही बातें करने वाले अजनबी लोग, जो बिल्कुल रुसी लघु-कथाओं की तरह लगते थे। फिर मेरी इच्छा होती थी कि मैं हर उस ट्रेन में चढ़ जाऊं जो लंदन के विक्टोरिया स्टेशन की तरफ से टोक्यो सैंट्रल जाने के लिए आती दिखाई देती और शिमला जाने के लिए ब्रांच लाइन जो खैबर पास होते हुए तेजी से निकल जाती है, और कोई लाइन जो भारतीय रेलवे को उनसे जोड़ देती है जो सिलोन में है; मेंडले एक्सप्रेस, मलेशियन गोल्डन ऐरो, वियतनाम में मौजूद स्थानीय लोग और वे रेलगाड़ियां जिनके नाम बहुत खूबसूरत थे- ओरियेंट एक्सप्रेस, नाॅर्थ स्टार, ट्रांस-साइबेरियन।
मैंने ट्रेनें ढूंढ़ लीं; मुझे यात्री भी मिल गए।’
पॉल थरु ने कई यात्रा वृत्तांत लिखे हैं जिसमें डार्क स्टार सफारी, द किंगडम बाय द सी प्रमख हैं।
मैं यह महसूस कर रहा हूं कि यात्रायें हर बार अनोखापन लिए होती हैं। उनमें अनगिनत उतार-चढ़ाव और किस्से शामिल होते हैं। हम सफर तय करते हैं, हमारा सफर रोचक होता है और नहीं भी या मिलाजुला, लेकिन यादें रह जाती हैं।